अर्थव्यवस्था की पतंग कैसे उड़ सकती है

Afeias
29 Aug 2019
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Date:29-08-19

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भारत की अर्थव्यवस्था को 5 खरब डॉलर तक ले जाने की महत्वाकांक्षा के लिए कई सुधारों की आवश्यकता है। भाजपा सरकार ने अपने प्रथम कार्यकाल में जीएसटी, रेरा तथा दिवालियापन संहिता आदि कानूनों पर काम किया है। इनको सही ढंग से कार्यरूप में लाने हेतु अनेक ढांचागत परिवर्तनों की आवश्यकता है। निजी निवेश बढ़ना बाकी है। मांग की मंदी से निपटने के लिए मौद्रिक एवं राजकोषीय नीति का विस्तार आवश्यक है। राजकोषीय घाटे और मुद्रास्फीति के लक्ष्य के साथ ऐसा विस्तार करके मांग बढ़ाने की संभावनाएं भी सीमित ही हैं।

अतः द्वितीय सोपान के सुधारों में पूरा ध्यान निर्यात आधारित निवेश पर होना चाहिए। इस मामले में दक्षिण कोरिया और चीन से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। 1965 में 700 डॉलर की प्रतिव्यक्ति आय को 1996 में कोरिया ने 16,230 डॉलर पर पहुँचा दिया। इन 31 वर्षों में उसने 10.7 प्रतिशत की औसत वार्षिक प्रगति की। चीन के साथ भी लगभग यही स्थिति रही है। भारत को अपने आर्थिक लक्ष्य की पूर्ति के लिए क्या करना चाहिए?

  • हाल ही की कुछ घटनाओं से तरलता का अभाव हो गया है। बैंक और म्यूच्युल फंड कंपनियां गैर बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों को कर्ज नहीं देना चाहते। सार्वजनिक बैंकों के पास पूंजी की कमी से तरलता का संकट और भी बढ़ जाता है। अतः क्रेडिट फ्लो को बनाए रखना समय की मांग है। भारत का वित्तीय क्षेत्र अधिकतर बैंकों पर ही निर्भर करता है। बांड बाजार पर अमेरिका के 80 प्रतिशत की तुलना में भारत की निर्भरता मात्र 20 प्रतिशत है। भारत को बैंकों पर बढ़ते बोझ को कम करने के लिए कार्पोरेट बांड बाजार पर निर्भरता बढ़ाने पर जोर देना चाहिए।
  • राजकोषीय घाटे के लक्ष्य का देखते हुए एक प्रत्यक्ष कीनेसियन राजकोषीय विस्तार सीमित हो सकता है। (अर्थशास्त्री जॉन कीन्स के अनुसार सरकार को चाहिए कि प्रगति के लिए मांग को बढ़ाए। उनका मानना था कि किसी अर्थव्यवस्था की प्रगति के लिए उपभोक्ता-मांग ही प्राथमिक प्ररेक शक्ति होती है)। अतः परिसम्पत्ति मुद्रीकरण और पुनर्चक्रण जैसे नवीन विचारों को अपनाकर सरकार के पूंजीगत व्यय के लिए निधि जुटाई जा सकती है। बिल्ड- ऑपरेट ट्रांसफर और टोल ऑपरेट-ट्रांसफर के साथ विमानतलों, सड़क, बिजली ट्रांसमीशन ग्रिड और गैस पाइन लाइन आदि से निधि जुटाई जा सकती है।

नीति आयोग ने 46 केन्द्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के रणनीतिक विनिवेश का प्रस्ताव रखा है। इस पर तेजी से काम होना चाहिए। सरकार को व्यावसायिक उपक्रम से निकलकर एक उत्प्रेरक और सुविधा प्रदान करने की भूमिका में आना चाहिए।

  • साथी राष्ट्रों की तुलना में भारत में ऋण की वास्तविक लागत काफी ज्यादा है। पूंजी की लागत को नीचे लाने के लिए आरबीआई क्रमिक रूप से दर में बड़ी कटौती करे। मौद्रिक संचरण तंत्र में तरलता तभी आएगी।
  • कृषि जैसे क्षेत्रों में बड़े सुधार की आवश्यकता है। अत्यावश्यक वस्तु अधिनियम, उत्पाद समिति अधिनियम आदि के बंधन हटाकर किसानों को मुक्त छोड़ा जाना चाहिए। या फिर इन अधिनियमों को कृषि उत्पाद और पशुपालन विपणन अधिनियम एवं भूमि पट्टा अधिनियम जैसे आधुनिक नियमनों से बदला जाना चाहिए।
  • वेल्यू चेन में निवेश की आवश्यकता है। इससे निर्यात एवं घरेलू खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को लाभ मिलेगा। आजीविका के लिए वृत्ति पर निर्भरता को कम करना होगा।
  • विश्व की अधिकांश आर्थिक गतिविधियां शहरों में ही सम्पन्न होती हैं। हमें अपने नगरों को स्मार्ट, धारणीय और नवोन्मेषोन्मुख बनाना होगा। इनसे रोजगार के अवसर पनपेंगे।
  • इस दिशा में विनिर्माण की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। श्रम आधारित उद्योगों का विकास करके निर्यात बढ़ाया जा सकता है। इसके लिए हमारे उद्योगों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा के योग्य बनाना होगा। इसके लिए बिजली बिल श्रम और भूमि कानूनों को युक्तिसंगत बनाना होगा।
  • रेलवे और विद्युत क्षेत्रों को गतिशील और जीवंत बनाने की जरूरत है। इसमें डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर के माध्यम से सब्सिडी देने तथा वितरण में पब्लिक प्राइवेट पाटर्नरशिप को लाने से सुधार हो सकता है।

रेलवे सुधारों से सकल घरेलू आय में 1 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो सकती है। यात्री किराया बढ़ाना, माल भाड़े के लिए अलग व्यवस्था करना तथा स्टेशन विकास में निजी क्षेत्र को लाने से प्रगति जल्दी हो सकेगी।

  • वस्त्र उद्योग में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। कृषि कर्म छोड़ने वालों के लिए इसमें जगह बनाई जा सकती है। अभी 95 प्रतिशत फाइबर छोटे स्तर के उद्योगों में तैयार होता है। इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के लिए बड़े स्तर के टैक्सटाइल पार्क बनाए जाएं, जिसमें उद्यमियों को उद्यम लगाने और चलाने की सामान्य सुविधाएं दी जानी चाहिए।
  • खनन में भी तत्काल सुधार की आवश्यकता है। कोयला क्षेत्र में व्यावसायिक उत्खनन को बढ़ावा देने से तेल और गैस की खेाज और उत्पादन किया जा सकेगा। साथ ही जीवाश्म ईंधन पर हमारी निर्भरता कम हो सकेगी।
  • पर्यटन में रोजगार और विकास के अवसरों की अपार संभावनाएं हैं। हमारे देश में सर्किट की कमी है। उदाहरण के लिए बुद्ध सर्किट का निर्माण करके पूर्वी एशिया के पर्यटकों को आकर्षित किया जा सकता है। होटल किराए और वीज़ा फीस में कमी करने की जरूरत है।

आने वाले वर्षों में 8-9 प्रतिशत की दर से विकास के लिए ऐसे ढांचागत सुधार किए जाने चाहिए, जो घरेलू निवेश को बढ़ावा दें।

स्थिरता, पूर्वानुमान और सुसंगत नीतियों से निवेशकों का विश्वास बढ़ाया जा सकता है। कुल-मिलाकर हर क्षेत्र में निजी निवेश को बढ़ाने की आवश्यकता है।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित अमिताभ कांत के लेख पर आधारित। 5 अगस्त, 2019

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