अफ्रीका-भारत संबंध

Afeias
18 May 2018
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Date:18-05-18

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अफ्रीका में उपनिवेशवाद बहुत पुरानी बात हो गई है। उपनिवेश-काल के पश्चात् की विचारधारा के द्वंद्व भी अब बीत चले हैं। अब तो राजनैतिक और आर्थिक स्थिरता की नाव पर सवार ऐसे महाद्वीप का उदय हो रहा है, जो चीन और भारत दोनों से ही संबंध बढ़ाना चाहता है।

अफ्रीकी देश चीन के अलावा विकल्प ढूंढ रहे हैं, और भारत का मित्रतापूर्ण व्यवहार उन्हें अपने अनुकूल दिखाई पड़ रहा है। भारत-अफ्रीका के संबंधों में लगातार नजदीकी बढ़ाने के लिए कुछ प्रयास किए गए हैं।

  • केवल अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन बहुराष्ट्रीय भागीदारी का निर्वाह नहीं कर सकते। सम्मेलनों के पश्चात् उनमें किए गए वायदों और घोषणाओं पर अमल आवश्यक होता है। अक्टूबर 2015 में दिल्ली में अफ्रीका के विभिन्न देशों के चालीस राष्ट्राध्यक्षों के साथ भारत-अफ्रीका का तृतीय सम्मेलन सम्पन्न हुआ था। इसके द्वारा कॉमनवेल्थ और गुट निरपेक्ष आंदोलन की याद ताजा हो गई थी। सम्मेलन के बाद हमारे देश के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति एवं अन्य शीर्ष नेताओं ने कई अफ्रीकी देशों की यात्रा की है। इससे संबंधों की निरन्तरता को बनाए रखने में मदद मिली है।

ब्राजील-रशिया-भारत-चीन और दक्षिण अफ्रीका के संयुक्त सम्मेलन में हमारे प्रधानमंत्री की आगामी यात्रा तय है। इसके साथ ही उत्तरी अफ्रीका की भी यात्रा की योजना है।

  • भारत ने अफ्रीका के साथ-साथ अनेक विकासशील देशों का नेतृत्च किया है। अफ्रीकी देशों के साधन सम्पन्न होने के साथ-साथ वह पीछे हटता गया। अफ्रीकी देशों के अनेक वि़द्यार्थी भारत में पढ़ने आते रहे हैं। भारत की ओर से अफ्रीकी देशों में कई विकास योजनाएं भी चलाई गई हैं। जबकि चीन ने अपनी अर्थव्यवस्था को समृद्ध करने की दृष्टि से ही अफ्रीकी देशों की ओर हाथ बढ़ाया है।
  • विश्व शक्ति एवं सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य बनने के लिए भारत की महत्वाकांक्षाएं अफ्रीका से सहयोग की उम्मीद रखती है।

अफ्रीका की हिन्द एवं अटलांटिक महासागर के साथ लगती समुद्री रेखा का भारत के लिए रणनीतिक महत्व है। ईस्लामिक स्टेट ने अपना आधार अफ्रीका में बनाना शुरू कर दिया है, और यह भारत के लिए बड़ा खतरा हो सकता है। अब यह उचित नहीं है कि भारत महाद्वीपीय एवं उप महाद्वीपीय संबंधो को कायम रखने में और ढील दे।

  • अंतराष्ट्रीय सौर समझौते के द्वारा भारत अफ्रीका की कई जन आधारित योजनाओं को सहायता पहुंचा सकता है। अब भारत को अफ्रीकी देशों के साथ दीर्घकालीन साझेदारी निभाने के लिए क्षेत्रीय आधार पर काम करना होगा।

उत्तरी अफ्रीका पश्चिम से भिन्न है, और दक्षिण भी अन्य अफ्रीकी देशों से भिन्न है। अतः भारत को उनकी आवश्यकताओं एवं उनकी विशेषताओं के अनुरूप उनसे ऐसे संबंध जोड़ने होंगे, जिससे भारत को भी शक्ति मिले।

कई अफ्रीकी देशों ने चीन से संबंधों का स्वागत किया है। परन्तु उन्होंने चीन के विकल्प के रूप में भारत के स्थान को कम नहीं किया हैं।

  • अफ्रीकी देशों की आवश्यकता व्यापक है, और भारत अकेला उन सबकी पूर्ति नहीं कर सकता। अतः भारत ने जापान के साथ मिलकर पूर्वी एवं उत्तरी अफ्रीका के देशों के साथ साझेदारी की शुरुआत की हैं

सम्मेलनों और साझेदारियों के मद्देनजर अब भारत को इन्हें कार्यरूप में परिणत करके दिखाना होगा।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में दीपांजन रॉय चैधरी के लेख पर आधारित। 5 मई, 2018