अखिल भारतीय न्यायिक सेवाओं की सार्थकता
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हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय के 50 वर्ष पूरे होने के अवसर पर प्रधानमंत्री ने अखिल भारतीय न्यायिक सेवाओं के माध्यम से न्यायाधीशों की नियुक्ति की संभावना व्यक्त की। यहाँ एक सवाल जरूर उठ खड़ा होता है कि न्यायाधाीशों के खाली पदों को भरने की बात तो बार-बार की जाती है, परंतु उनकी नियुक्ति में प्रतिभा की कोई बात नहीं की जाती। अखिल भारतीय न्यायिक सेवा न्यायपालिका की इस कमी को पूरा करेगी।
- अखिल भारतीय न्यायिक सेवाओं के शुरुआत की आवश्यकता क्यों है?
- पदों के लिए प्रतिभावान उम्मीदवारों के चयन की कोई प्रक्रिया ही नहीं है।
- अधीनस्थ न्यायालयों में भर्तियां राज्य सरकार द्वारा की जाती हैं। राज्य न्यायिक सेवाएं इतनी आकर्षक नहीं होती कि कानून के प्रतिभावान छात्र उसमें प्रवेश चाहें। दूसरे, वे अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की मुसीबत मोल नहीं लेना चाहते। वे गरिमायुक्त बार प्रैक्टिस करना अधिक पसंद करते हैं। इस कारण अधीनस्थ न्यायालयों में ले-देकर औसत प्रतिभा वाले लोग ही अधिक पाए जाते हैं। अधीनस्थ न्यायालयों से पदोन्नत होकर उच्च न्यायालय में जाने वाले एक तिहाई न्यायाधीश औसत दर्जे के ही होते हैं। इसका पूरा खामियाजा वादियों को भुगतना पड़ता है।
- न्यायालयों में कानून-स्नातकों को आकर्षित करने के लिए और भी कई रास्ते हो सकते थे। इनको आजमाने की कोशिश भी की गई। फ्रेंच मॉडल में अन्य विशेषज्ञता के अध्ययन की तरह ही कानून के विद्र्यार्थियों के लिए न्यायाधीश का एक अलग विशेषज्ञता-पाठ्यक्रम होता है। भारत में भी ‘न्यायाधीश’ के लिए एक वर्ष के पाठ्क्रम का प्रस्ताव रखा गया। परंतु यह प्रांरभ नहीं हो पाया।
- इन्हीं सब कारणों के चलते न्यायिक सेवाओं की आवश्यकता बहुत समय से महसूस की जा रही थी, जिसकी सिफारिश भारतीय विधि आयोग ने अपनी 116 वीं रिपोर्ट में की है।
- सेवाओं की सार्थकता क्या होगी?
- अगर उचित वेतन, सुविधाओं तथा पदोन्नति आदि को ध्यान में रखते हुए इसका खाका तैयार किया जाए, तो ये सेवाएं नौजवान कानून-स्नातकों के लिए आकर्षक रोजगार का केंद्र बन जाएंगी।
- नियुक्ति प्रक्रिया में एकरूपता होने से इसके द्वारा चुने गये न्यायिक अधिकारी प्रतिभावान होंगे। इससे उच्च न्यायालयों का स्तर बढ़ेगा। साथ ही अधीनस्थ न्यायालयों से पदोन्नत होकर उच्च न्यायालयों में आने वाले एक-तिहाई न्यायधीशों का स्तर भी अपेक्षाकृत बेहतर होगा।
- उच्च न्यायालय के कुछ न्यायाधीशों को सर्वोच्च न्यायालय में भी लिया जाता है। जाहिर है कि इनके स्तर में भी सुधार होगा।
- नीचे से लेकर ऊपरी स्तर तक मुकदमों के फैसले और न्याय के विधान में परिवर्तन करने होंगे। ये परिवर्तन न्याय की गुणवत्ता को सुधारेंगे।
- कैरियर की दृष्टि से चलने वाली न्यायिक सेवाओं को गंभीरता से लिया जाएगा। इन सेवाओं में चयनित लोग अधिक पेशेवर दृष्टिकोण के होंगे। उनमें जवाबदेही होगी। आम जनता के लिए न्याय पाना आसान हो जाएगा।
- अखिल भारतीय न्यायिक सेवाओं को शुरु करने में कुछ संदेह भी है
- समस्त क्षेत्रीय भाषाओं का ज्ञान न होने के कारण चयनित व्यक्ति किस सीमा तक निष्पक्ष न्याय कर पाएगा?
- राज्य सेवाओं से आए लोगों के लिए पदोन्नति के अवसर कम हो जाएंगे।
- इन सेवाओं के कारण अधीनस्थ न्यायालयों पर उच्च न्यायालय का नियंत्रण बहुत कम हो जाएगा। इससे न्यायालयों की स्वतंत्रता पर प्रभाव पड़ेगा।
- बहरहाल न्यायालयों में रिक्त पदों पर भर्ती को लेकर दशकों से मांग की जा रही है। समय आ गया है कि लंबित पड़े लाखों मामलों को निपटाने के लिए जल्द ही कोई ठोस कदम उठाया जाए।
‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित अजित प्रकाश शाह के लेख पर आधारित।
नोट :– लेखक दिल्ली एवं मद्रास उच्च न्यायालयों के उच्च न्यायाधीश एवं विधि आयोग के अध्यक्ष रह चुके हैं।
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