स्किल इंडिया का पुनर्निर्माण किया जाना चाहिए

Afeias
20 Feb 2019
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Date:20-02-19

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भारत में कौशल विकास एजेंडा ने तब गति पकड़ी थी, जब सरकार ने 2013 में नेशनल स्किल्स डेवलपमेंट फ्रेमवर्क कार्यक्रम की शुरूआत की थी। यह एक क्षमता आधारित ऐसा मंच है, जो ज्ञान, कौशल और रुचि के अनुसार किसी की योग्यता को प्रमाणित करता है। सरकार ने इसे दिसम्बर 2018 तक लागू किए जाने का लक्ष्य रखा था। कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय ने सभी प्रशिक्षण/शैक्षणिक कार्यक्रमों/पाठ्यक्रमों के लिए इस कार्यक्रम का अनुपालन करना आवश्यक कर दिया है।

इस प्रकार के कार्यक्रम को 47 देशों में चलाया जा रहा है।

भारत में इस कार्यक्रम के कार्यान्वयन की परख कौशल विकास से जुड़ी राष्ट्रीय प्रतियागिताओं और मंत्रालय द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रम ‘इंडिया स्किल्स्’ के माध्यम से की जा सकती है। रशिया में इस वर्ष होने वाली 45वीं विश्व कौशल प्रतियोगिता के लिए भारत से टीमों को चुना जाना है।

कौशल विकास के लिए पाँच स्तम्भ तैयार किए गए हैं।

  1. उच्च माध्यमिक स्कूल या पॉलिटेक्निक
  2. औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान
  3. राष्ट्रीय कौशल विकास निगम
  4. 16 मंत्रालयों द्वारा उपलब्ध अल्पकालीन प्रशिक्षण, तथा
  5. उद्यमिता आधारित प्रशिक्षण
  • इंडिया स्किल्स कार्यक्रम सभी सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों, इंजीनियरिंग कॉलेज, स्किल इंडिया योजनाओं, निजी क्षेत्र सरकारी कॉलेजों और स्कूल छोड़ देने वालों के लिए खुला हुआ है।

स्किल इंडिया के सभी पाठ्यक्रमों में नेशनल स्किल क्वालीफिकेशन फ्रेमवर्क का अनुपालन किया जाना आवश्यक है।

इसके बावजूद इसकी राष्ट्रीय स्तरीय प्रतियोगिता में अधिकांश प्रतिभागी उन निजी क्षेत्र और औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों से ही आए थे, जहाँ एन एस क्यू एफ कार्यक्रम नहीं हैं। 20 प्रतिशत से भी कम प्रतिभागी कौशल विकास निगम के अल्पकालीन पाठ्यक्रम से आए थे। इसका अर्थ है कि निगम को कुछ विस्तृत कार्यक्रम भी चलाने चाहिए, जिससे इनके प्रशिक्षु इतने तैयार हो जाएं कि वे अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग ले सकें।

  • अगर राष्ट्रीय स्तर की कौशल विकास प्रतियोगिता को एन एस क्यू एफ आधारित संस्थानों के लिए ही रखा गया होता, तो यह बुरी तरह से असफल रहती। इसका अर्थ है कि इसका अनुपालन करने वाले संस्थान ठीक प्रकार से इसे स्वीकार नहीं कर पाए हैं।

दूसरे, एन एस क्यू एफ के पाठ्यक्रम में ऐसी कोई विभाजक परिभाषा नहीं है, जो प्रगति को निर्दिष्ट कर सके।

इस कार्यक्रम के तृतीय स्तर के व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में सैद्धांतिक और व्यावहारिक ज्ञान में कोई तालमेल नहीं है।

इस कार्यक्रम में नए पाठ्यक्रमों की शुरूआत करने के लिए मानव विकास मंत्रालय और कौशल विकास मंत्रालय में कोई तादात्म्य नहीं बन पा रहा है।

कांउसिल की संख्या कम की जाए

भारत में सैक्टर स्किल कांऊसिल (एसएससी) की संख्या 38 है। विश्व में अलग-अलग क्षेत्रों जैसे-निर्माण और भवन तकनीक, परिवहन और लॉजिस्टक आदि क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धाएं होती रहती हैं। 2018 की ऐसी ही प्रतियोगिता में केवल 19 एस एस सी ने भाग लिया था। इसका पहला कारण तो यही है कि एक क्षेत्र से जुड़ा एक ही एस एस सी होना चाहिए। ज्यादा कांऊसिल होने की वजह से उनका आउटपुट कम मिल पाता है। दूसरे, बहुत से एस एस सी का पाठ्यक्रम ही ऐसा है, जो उन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने योग्य ही नहीं बना पाता।

इसके लिए विभिन्न क्षेत्रों को भारत के राष्ट्रीय औद्योगिक वर्गीकरण में समेकित किया जाना चाहिए। इससे उनकी गुणवत्ता में सुधार होगा, बेहतर परिणाम प्राप्त होंगे, पारिस्थितिकीय में मजबूती आएगी और प्रशिक्षुओं की क्षमता का आकलन करने में मदद मिलेगी।

इस  बारे में जर्मनी से भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है। वहाँ मात्र 340 व्यावसायिक समूहों में कौशल को बांटा गया है। व्यावसायिक शिक्षा को कौशल के अनुसार विस्तृत रूप प्रदान किया जाना चाहिए। इनसे प्रशिक्षण लिए हुए युवा इतने सक्षम हों कि वे बदलती तकनीकों और बदलते रोजगार अवसरों के अनुसार अपने को ढाल सकें। अगर भारत को विश्व कौशल प्रतियोगिताओं में अपना स्थान बनाना है, तो हमें स्किल इंडिया का पुर्निर्माण करना होगा।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित संतोष मेहरोत्रा और आशुतोष प्रताप के लेख पर आधारित। 17 जनवरी, 2019