शिशु मृत्यु को रोकने के प्रयास

Afeias
23 Jan 2020
A+ A-

Date:23-01-20

To Download Click Here.

भारत में प्रतिदिन एक वर्ष से कम आयु की शिशु मृत्यु संख्या 2350 है। इनमें से औसतन 172 राजस्थान और 98 गुजरात से है।

2014 में जन्में प्रति 1000 बच्चों में से 39 ने एक वर्ष पूरा नहीं किया। यह संख्या घटकर 33 पर आ गई है। 2017 में यूनिसेफ के अनुमान के अनुसार भारत में 8,02,000 बच्चों की मृत्यु हुई। हाल ही में कोटा और राजकोट में लगातार हो रही बच्चों की मृत्यु को विश्व में सर्वाधिक माना गया है।

शिशु मृत्यु की बढ़ती दर का कारण

  • जनवरी 1, 2020 को भारत में जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या विश्व के कुल जन्में बच्चों का 17% है।
  • शिशु-मृत्यु दर के पीछे माताओं का कम पढ़ा-लिखा होना एक बड़ा कारण माना जाता है।
  • शिक्षा के स्तर के अलावा माताओं में कुपोषण से जन्मी रक्ताल्पता को भी कारण माना जाता है।
  • माताओं का कम उम्र होना भी एक कारण है।
  • बच्चों का जन्म अस्पताल में हुआ या घर में, यह भी मायने रखता है।
  • यूनीसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार अनपढ़ माताओं की अपेक्षा 8 साल की शिक्षा प्राप्त माताओं के शिशुओं के नवजात काल में मृत्यु की संभावना 32% और उसके बाद के समय में 52% कम हो जाती है।
  • 20 वर्ष से कम उम्र की माताओं के शिशुओं और बालकों की मृत्यु दर सबसे अधिक पाई जाती है। जबकि 20-24 वर्ष की उम्र की माताओं में शिशु मृत्यु दर सबसे कम है। 25-34 उम्र के बीच की माताओं में यह कमतर की जा सकती है। इस उम्र के बाद यह फिर से बढ़ जाती है।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 के अनुसार केवल 78.9% प्रसव अस्पताल में होते है। 21.1% प्रसव में स्वच्छता के स्तर की कोई गारंटी नहीं होती है। कुछ मामलों में तो यह प्रशिक्षित नर्स की सहायता के बगैर ही किए जाते हैं।
  • अस्पतालों से बाहर हुए प्रसव में टीकाकरण पर भी ध्यान नहीं दिया जाता है। स्वास्थ्य मंत्रालय के टीकाकरण कार्यक्रम “मिशन इंद्रधनुष” की व्यापक सफलता के बाद भी यह 87% पर ही है। इसका अर्थ है कि देश में 33 लाख बच्चों को अभी भी जीवनरक्षक टीके नहीं लग पाते हैं।

सरकारी प्रयास

प्रत्येक जिला व उप जिला अस्पताल में स्पेशल न्यूबोर्न केयर यूनिट बनाए गए है। यहाँ योग्य चिकित्सक और नर्सें 24 घंटे उपलब्ध रहते हैं। देश के 996 न्यूबोर्न यूनिट में प्रतिवर्ष लगभग 10 लाख बच्चों को भर्ती कराया जाता है। मृत्यु दर की अधिकता मेडिकल कॉलेजों से जुड़े न्यूबोर्न यूनिट में देखी जाती है, क्योंकि अक्सर दूर-दराज के क्षेत्रों से माता-पिता बिल्कुल अंतिम विकल्प के तौर पर बच्चों को अस्पताल लाते हैं। यह डॉक्टरों के लिए चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

शिशु मृत्यु दर को नियंत्रण में लाने के लिए सरकार प्रयासरत है, और उम्मीद की जा सकती है कि भविष्य में ये प्रयास सफल होंगे।

‘द इंडियन एक्सप्रेस‘ में प्रकाशित अवंतिका घोष के लेख पर आधारित। 7 जनवरी, 2020