न्यायाधीशों का मूल्यांकन कैसे हो?
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देश में लंबे समय से न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में चर्चा और विवाद चल रहे हैं। फिलहाल न्यायाधीशों से जुड़ा गुजरात उच्च न्यायालय का ऐसा मामला सामने आया है, जिसने उनके कार्यकाल में उनके प्रदर्शन को आँकने के तरीकों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। हाल ही में गुजरात उच्च न्यायालय ने 17 जजों को पूर्व सेवानिवृत्ति का आदेश यह कहकर दे दिया कि उनका कामकाज ठीक नहीं है या उनका प्रदर्शन अनुकूल नहीं है। अधीनस्थ न्यायालय के न्यायाधीशों के प्रदर्शन को आँकने के लिए एक तय मापदंड है। लेकिन क्या ये पर्याप्त हैं?
- कुछ तथ्य
- देश में अधीनस्थ न्यायालय के न्यायाधीशों के प्रदर्शन का आकलन करने के लिए उनकी वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (Annual Confidential Report) बनाई जाती है। इसे अधीनस्थ न्यायालय के ही वरिष्ठ न्यायाधीश तैयार करते हैं। सच्चाई यह है कि न तो नियमित रूप से इन रिपोर्ट को तैयार किया जाता है, न ही मूल्यांकन में पारदर्शिता है। पारदर्शिता की कमी के कारण ही अधीनस्थ न्यायालय किसी न्यायाधीश की ईमानदारी पर ऊंगली उठाने का एक मामला सर्वोच्च न्यायालय तक भी पहुँच गया। ऐसे विवाद बताते हैं कि अधीनस्थ न्यायालयों में मूल्यांकन की प्रक्रिया अनेक खामियों से ग्रस्त है।
- उच्च श्रेणी न्यायालयों के न्यायाधीशों के मूल्यांकन के लिए कोई प्रक्रिया ही नहीं है।
- न्यायाधीशों के मूल्यांकन की प्रक्रिया में सुधार के लिए 2013 में कानून मंत्रालय ने कुछ सुझाव दिए थे। इन सुझावों पर न तो कोई ठोस कदम उठाए गए और न ही कोई बदलाव किए गए।
- कुछ समय पहले न्यायिक नीतियों के लिए बने विधि केंद्र ने भी इस मामले पर सर्वेक्षण किया। इस समिति के प्रत्येक व्यक्ति ने कहा है कि सभी न्यायाधीशों, खासकर उच्च श्रेणी न्यायालयों के न्यायाधीशों के कामकाज में मूल्यांकन की उचित प्रक्रिया होनी चाहिए। इससे न्यायाधीशों के काम में पारदर्शिता और जवाबदेही आएगी। उनका प्रदर्शन बेहतर होगा।
- क्या किया जा सकता है?
सर्वाधिक समीक्षा एवं मूल्यांकन के जरिए न्यायधीशों के प्रदर्शन को आँकना पूरे विश्व में सामान्य रूप से प्रचलित है। इस प्रक्रिया को ‘न्यायिक मूल्यांकन’ (Judicial Performance Evaluation) के नाम से जाना जाता है। इस प्रक्रिया की शुरुआत संयुक्त राज्य अमेरिका में की गई थी।इस प्रक्रिया में आम जनता को किसी खास न्यायाधीश को आगे बढ़ने से रोकने (Petention) के लिए वोट करने का अधिकार दिया जाता है। अमेरिका के अधिकांश राज्यों ने इस प्रणाली को अपना लिया है।यूरोपीय संघ में यूरोपाीय कमीशन है, जो सदस्य राष्ट्रों के न्यायालयों की सर्वाधिक समीक्षा करता है। इस समीक्षा में न्यायालय द्वारा निपटाए गए प्रकरण की संख्या, उनकी लागत एवं न्यायालय के बजट को देखा जाता है। इस समीझा के अंत में एक वार्षिक रिपोर्ट प्रकाशित की जाती है, जिसमें न्यायालयीन कार्यों के आधार पर सदस्य राष्ट्रों को रैंक दिया जाता है।
- भारत के लिए क्या सही है
- न्यायिक प्रदर्शन के मूल्यांकन (JPE) के द्वारा अगर न्यायाधीशों का मूल्यांकन किया जाता है, तो वह निःसंदेह गुणवत्ता में अच्छा होने के साथ-साथ प्रकरणों का समाधान ढूंढने की संख्या की दृष्टि से भी अच्छा होगा।
- भारत में अमेरिका की तरह न्यायाधीश चुने नहीं जाते हैं। वे एक प्रतियोगी परीक्षा के द्वारा चयनित होते हैं। अतः अमेरिका में जिस तरह न्यायाधीशों को रिटेन्शन वोटिंग से पहले जनता के समक्ष अपने कार्यों की सूचनाएं रखनी होती हैं, वह भारत में कारगर नहीं हो सकता।
- इसलिए भारत में न्यायिक मूल्यांकन (JPE) को न्यायिक दायरे में ही चलाया जा सकता है। मद्रास उच्च न्यायालय ने इसी वर्ष न्यायाधीशों के कार्य की गुणवत्ता और संख्या; दोनों के मूल्यांकन की प्रक्रिया तैयार करके समीक्षा की है।
मद्रास उच्च न्यायालय की इस समीक्षा प्रक्रिया का विरोध यह कहकर किया जा रहा है कि इससे न्यायाधीशों पर केस निपटाने का दबाव बढ़ेगा और वे उचित न्याय करने की अपेक्षा केस को निपटाने पर अधिक ध्यान देंगे।न्यायाधीशों के कार्यों की समीक्षा की प्रक्रिया चाहे कुछ भी हो, उसका अंतिम लक्ष्य न्याय की गुणवत्ता को बनाए रखना होना चाहिए। मूल्यांकन की प्रक्रिया निश्चित करने के लिए न्यायाधीशों, वकीलों, शिक्षाविदों एवं सामान्य नागरिकों में से कुछ लोगों को लेकर परामर्श किया जाना चाहिए। इन चर्चाओं से जो भी निष्कर्ष सामने आएं, उनमें पारदर्शिता अवश्य होनी चाहिए। इन सबसे भारत की न्यायिक व्यवस्था में जवाबदेही बढ़ेगी और वह सुचारू रूप से काम करेगी।
‘दि हिन्दू’ में प्रकाशित मेधा श्रीवास्तव के लेख पर आधारित।