देश का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र : खनन

Afeias
27 Jan 2020
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Date:27-01-20

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केंद्रीय मंत्रिमंडल ने खनिज कानून संशोधन अध्यादेश 2020 को मंजूरी दे दी है। भारत में कोयले की मांग काफी अधिक है, लेकिन बड़े पैमाने पर इसका आयात किया जाता है। यह अध्यादेश सभी क्षेत्रों के लिए कोयला खनन को खोलने और कोयला खदानों की नीलामी के नियम को आसान करेगा।

46 खानों की खनन पट्टे की अवधि 31 मार्च 2020 को समाप्त हो रही है। इस अध्यादेश से इनकी नीलामी का रास्ता साफ हो जाएगा। नीलामी की अनुमति से उत्पादन कार्य जारी रखते हुए इनका आसानी से हस्तांतरण किया जा सकेगा। साथ ही इससे विदेशी मुद्रा की बचत होगी, रोजगार के अवसर बढ़ेंगे और निवेश भी बढ़ेगा।

सरकार के इस स्वागतयोग्य निर्णय के अलावा भी भारतीय खनन उद्योग को प्रतिस्पर्धी बनाने की दिशा में कई कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।

  • प्रचलित प्रचुर मात्रा में पाए जाने वाले खनिज के अलावा भी अन्य खनिजों की खोज के लिए आकर्षक प्रोत्साहन राशि दी जानी चाहिए। पिछले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में निजी भागीदारी बहुत कम हो गई है।

खोज से लेकर खनन लाइसेंस प्राप्त करने, किसी भी स्तर पर लाइसेंस को बेचने, और खोजकर्ता कंपनियों की सरकार तक पहुँच को आसान बनाना होगा।

  • नीलामी की प्रक्रिया को दक्ष और प्रभावशाली बनाए जाने की जरूरत है। दो स्तरीय ऑनलाइन इलेक्ट्रॉनिक तंत्र को एक स्तरीय बनाया जाना चाहिए।
  • पर्यावरण और वन संबंधी अनुमति का रास्ता आसान हो।
  • अंतरराष्ट्रीय मानदण्डों को देखते हुए रॉयल्टी दरें तय की जाएं। भारत में ये बहुत ऊँची हैं।
  • सरकार को चाहिए कि वह खनन के क्षेत्र में वैश्विक चाल को देखते हुए नीतियां तय करे। स्मार्ट माइन्स, समुद्री खनन और खनन के कार्यबल के बदलते संयोजन को देखते हुए कदम उठाए जाएं । क्षेत्र को देशी और विदेशी निवेश के लिए खोले जोने से इसमें विकास के साथ-साथ दूर दराज के क्षेत्रों में रोज़गार की संभावनाएं बहुत बढ़ गई हैं। अध्यादेश से 2020 में निरस्त हो रही माइनिंग लीज़ के लिए पर्यावरण और वन अनुमति भी बढ़ गई है।

देश में 72% बिजली उत्पादन कोयले पर निर्भर है। अतः खनन उद्योग तो देश के लिए जीवन रेखा की तरह है। साथ ही कई उत्पादित वस्तुओं और कृषि इनपुट का आधार खनिज होते है। अतः राष्ट्रहित में इस उद्योग के लिए उपयुक्त नीतियों का निर्माण किया जाना चाहिए, जिससे देश की ऊर्जा और कच्चे माल की सुरक्षा बनी रहे।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स‘ में प्रकाशित चंद्रजीत बनर्जी के लेख पर आधारित। 10 जनवरी, 2020