चुनावों में धन की शक्ति के दुरुपयोग पर नियंत्रण

Afeias
26 Dec 2016
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Date: 26-12-16

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हम विश्व के सबसे बड़े प्रजातंत्र के नागरिक होने पर गर्व करते हैं। हम लोगों में से ऐसे बहुत कम हैं, जो अपनी पसंद के राजनीतिक दल को वित्तीय सहायता देने के बारे में सोचते हैं। ज्यादातर लोग इसे राजनीतिक दलों की ही समस्या मानकर उन पर ही छोड़ देते हैं कि ये दल किसी भी तरह से अपने आर्थिक पक्ष को मजबूत करें। इसका असर यह होता है कि ये दल ऐसे लोगों के दबाव में आ जाते हैं, जो सत्ता में आने के बाद राजनैतिक दल को वैध-अवैध सभी प्रकार की गतिविधियों से उन्हें लाभ पहुंचाने को बाध्य करते हें।

राजनैतिक दलों को अधिकतर काले धन के रूप में चंदा मिलता है। इस काले धन का उपयोग वे मतदाताओं को रिझाने में करते हैं। 2010 से चुनाव आयोग ने इस प्रकार की गतिविधि को रोकने के लिए चुनाव खर्च की सीमा निर्धारित कर दी है। राजनैतिक दलों ने इसकी भी काट निकाल ली है और वे काले धन का प्रयोग अब चुनाव के कुछ हफ्तों पहले ही करने लगते हैं, ताकि वे चुनाव खर्च की सीमा का उल्लंघन करने के दोषी न बनें।

नोटबंदी और मुद्रारहित लेन-देन के कारण फिलहाल पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों पर बहुत अच्छा प्रभाव पड़ेगा। साथ ही जिस प्रकार चुनाव आयोग ने राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले 20,000 रुपये से कम के चंदे को चैक द्वारा दिया जाना निर्धारित किया है, उससे चुनावी खर्च में पारदर्शिता को बहुत बढ़ाया जा सकेगा। अनुमान लगाया जाता है कि अभी तक राजनैतिक दलों को लगभग 1000 करोड़ रुपये प्रतिवर्ष का दान नकदी में दिया जाता था। नोटबंदी और इलैक्ट्रानिक लेन-देन से अब इस पर बहुत अंकुश लग जाएगा।

प्रधानमंत्री ने अपने दल के सभी सांसदों और विधायकों को आठ नवम्बर के बाद से अपने खाते का ब्यौरा देने का जो आदेश दिया है, उससे भी अवैध दान पर नजर रखी जा सकेगी।राजनैतिक दलों का बहुत-सा काला धन बेनामी संपत्ति के रूप में भी है। सरकार का अगला कदम ऐसी संपत्तियों की जाँच करना होगा। इससे भी चुनावों में काले धन का उपयोग बहुत कम हो जाएगा।

चुनाव में काले धन को रोकने के लिए सरकार द्वारा किए जा रहे इन उपायों के अलावा कुछ और सुझाव हैं, जिन्हें अमल में लाया जा सकता है।

  • राजनैतिक दलों के खर्च की उच्चतम सीमा तय की जानी चाहिए। इसी प्रकार उम्मीदवारों की भी चुनावी खर्च की सीमा निर्धारित हो।
  • राजनैतिक दलों को सरकार से वित्तीय सहायता दी जाए। इस निधि का स्वतंत्र ऑडिट हो। कोई भी राजनैतिक दल निजी दान स्वीकार न करे।
  • राजनैतिक दलों की कार्यप्रणाली प्रजातांत्रिक हो। उसमें पारदर्शिता हो। इसे सूचना के अधिकार के अंतर्गत लाया जाए।
  • राष्ट्रीय स्तर पर एक चुनावी फंड बना दिया जाए। इसमें कर मुक्त दान राशि जमा करने की छूट हो। इसका संचालन चुनाव आयोग या अन्य कोई निष्पक्ष समूह करे।
  • किसी चुनाव में धनराशि का दुरुपयोग पाए जाने पर वहाँ के चुनावों को रद्द करने का चुनाव आयोग का प्रस्ताव स्वीकार किया जाए।
  • संगीन अपराधों में लिप्त व्यक्तियों को चुनाव लड़ने
    से रोका जाए। गौरतलब है कि वर्तमान सरकार इस पर कानून बनाने पर विचार कर रही है।
  • चुनाव आयोग को ऐसे राजनैतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने का अधिकार हो, जिन्होंने दस वर्षों से कोई चुनाव नहीं लड़ा है, परन्तु फिर भी कर में छूट का लाभ ले रहे हैं।
  • रुपये के दम पर प्रचारित की गई खबरों को चुनावी अपराध की श्रेणी में रखकर इसके लिए दो साल की सजा का प्रावधान होना चाहिए।

दिसम्बर 2015 में नई दिल्ली में चुनाव आयोग ने चुनावों में पारदर्शिता और धन की शक्ति के प्रयोग पर इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डेमोक्रेसी एण्ड इलैक्टोरल असिसटेंस के साथ मिलकर सार्क देशोंका एक सम्मेलन किया था। इस सम्मेलन में सभी सदस्य देशों ने चुनावों में पारदर्शिता लाने के लिए एक मत से सहमति दिखाई। ये देश जल्द ही इसे लागू करने का प्रयास करेंगे। चूंकि भारत वृहद् स्तर पर चुनावों का आयोजन करता है, इसलिए उसका उत्तरदायित्व और अधिक बढ़ जाता है।

कानून मंत्रालय को चाहिए कि वह जल्द से जल्द चुनाव आयोग को उन अधिकारों से मंडित करे, जो चुनावों में धन की शक्ति के दुरुपयोग को रोकने के लिए जरूरी हैं।

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एस.वाई.कुरैशी के लेख पर आधारित।

 

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