मुख्य परीक्षा का मूल है विष्लेषणात्मकता-1
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सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने वाले परीक्षार्थियों को यह बात बहुत अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि यह परीक्षा आपकी विश्वविद्यालयीन परीक्षा और यहाँ तक कि राज्यों की सिविल सेवा परीक्षाओं से बिल्कुल भिन्न है, बावजूद इसके कि पेटर्न काफी कुछ मिलता-जुलता है। इस भिन्नता को न जानने के कारण ही परीक्षार्थी लम्बे समय से तैयारी करते हैं और खूब डटकर तैयारी करते हैं लेकिन परिणाम उन्हें लिस्ट में स्थान नहीं दिला पाती। यह सचमुच कम आश्चर्य और यहाँ तक कि दुख की बात नहीं है कि प्री-क्वालिफाई करने वाले परीक्षार्थी मुख्य परीक्षा में 15 प्रतिशत नम्बर लाते हुए देखे गये हैं और ऐसे परीक्षार्थियों की संख्या कम नहीं है। इसलिए इसे समझना सिविल सेवा परीक्षा को क्वालिपाई करने के लिए अनिवार्य मालूम पड़ता है कि वह कौन-सी केन्द्रीय बात है, जो मुख्य परीक्षा तक पहुँचते-पहुँचते इतनी अधिक बदल चुकी होती है कि अच्छी-खासी तैयारी करके प्री-क्वालिफाई करने वाले विद्यार्थी को भी इसकी थाह नहीं लग पाती। हम इस शीर्षक के कुछ भागों में इसे जानने की कोशिश करेंगे।
बेहतर होगा कि हम इसे संक्षिप्त में न जानकर थोड़ा विस्तार से जानें, क्योंकि इसी में सिविल सेवा परीक्षा की सफलता का सारा रहस्य निहित है और मुझे ऐसा लगता है कि इतने महत्वपूर्ण तथ्य को बहुत संक्षिप्त में जानने की कोशिश एक प्रकार से न केवल आधी-अधूरी कोशिश ही होगी बल्कि कहीं-कहीं एक नाकाम कोशिश भी होगी इसलिए मैं आपसे इस विषय को विस्तार से बताये जाने की इजाजत चाहूँगा मुझे लगता है कि तभी आप इसे अच्छी तरह समझकर आत्मसात कर सकेगा और ऐसा करने के बाद ही आप इसे व्यवहार में ला सकंेगे। तो मैं सबसे पहले आता हूँ हमारे शिक्षा के सम्पूर्ण स्वरूप तथा उसके पीछे छिपे हुए सूक्ष्म किन्तु अत्यन्त महत्वपूर्ण तथ्यों पर।
हमारी पूरी पढ़ाई के मुख्यतः चार स्तर होते हैं। पहला स्तर मिडिल स्कूल तक का स्तर होता है। इस स्तर को मैं शिक्षा का एक ऐसा स्तर मानता हूँ, जब हमें महत्वपूर्ण विषयों की जानकारियाँ दी जाती हैं। यह सूचना प्रदान करने का स्तर है। यहाँ से लेकर हायर सेकेण्डरी तक की पढ़ाई ऐसी पढ़ाई होती है, जिसमें विद्यार्थियों में समझ विकसित की जाती है। यानी कि मिडिल क्लास तक की सूचनाओं को इस तरह बताया जाता है कि विद्यार्थी मंे अपने विषय की समझ पैदा हो सके।
इसके बाद शुरू होता है तीसरा वह महत्वपूर्ण स्तर, जिसका संबंध सिविल सेवा परीक्षा के सबसे चुनौती भरे चरण से है और वह चरण मुख्य परीक्षा का है। ग्रेज्यूएशन की पढ़ाई के तीन सालों के दौरान सही मायनों में विद्यार्थियों में अपने विषय की विश्लेषणात्मक क्षमता विकसित की जाती है। यह की जाती है या नहीं, यह अलग बात है, लेकिन की जानी चाहिए। यह स्वाभाविक अपेक्षा है। ऐसा होना ही चाहिए अन्यथा ग्रेज्युएशन का मतलब ही कुछ नहीं रह जाता। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि शिक्षा के इस सबसे महत्वपूर्ण चरण को भी एक प्रकार से सूचना और समझ का ही चरण बना दिया गया है। सच तो यह है कि इसमें भी समझ कम है, सूचना अधिक। और बस यही कमी सिविल सेवा परीक्षार्थी के लिए धीमा जहर बन जाती है।
अंतिम और चौथा चरण पोस्ट ग्रेज्युएशन का है, जो मूलतः विशेषज्ञता का चरण है। यह किसी एक विषय में निष्णात करने की कोशिश है, इतना निष्णात करने कि कोशिश की उसकी विश्लेषण करने की क्षमता मौलिक तथ्य स्थापित करने तक पहुँच जाए। इस प्रकार शिक्षा के चार चरण ज्ञान की दृष्टि से हमें निम्न तथ्य देने वाले सिद्ध होने चाहिए-
- सूचना (मिडिल स्कूल तक),
समझ (हायर सेकेण्डरी तक),
समीक्षा (ग्रेज्युएशन तक) तथा
मौलिकता (पोस्ट ग्रेज्युएशन)।
यह बहुत सोच-समझकर, लम्बे अवलोकन एवं अनुभवों के बाद तैयार की गई अध्यापन की अत्यन्त वैज्ञानिक पद्धति है। यह एक ऐसी वैज्ञानिक पद्धति है, जो एक विद्यार्थी के मनोविज्ञान से सीधे मेल खाती है। यह मनोविज्ञान चेतना की क्रमशः विकसित होती हुई क्षमता के अनुकुल बैठती है। शुरू में हमारी चेतना ऐसी नहीं होती कि वह किसी भी घटना या ज्ञान के टुकड़े को सीधे समझ सके। जब उसके पास कुछ सूचनाएँ इकट्ठी हो जाती हैं, तो इन सूचनाओं को जोड़कर वह इन्हें समीक्षा में तब्दील कर लेता है। हायर सेकण्डरी तक पहुँचते-पहुँचते उसकी चेतना की क्षमता इस लायक हो जाती है कि वह ऐसा कर सके।
लेकिन क्या किसी भी विषय की सूचना और समझ ही अपने-आप में पर्याप्त होती है? चेतना की सही क्षमता का प्रमाण उसकी स्मरण शक्ति में नहीं बल्कि उसकी विश्लेषणात्मक शक्ति में होता है। यही वह क्षमता है, जो विषय को नया आयाम देती है और इसे आगे भी बढ़ाती है। विश्लेषण के समुद्र मंथन से ही उस विषय में छिपे हुए अलग-अलग तरह के रत्न बाहर निकलते हैं और बाद में फिर इन निकले हुए रत्नों का मंथन होने लगता है। इसी प्रक्रिया के तहत ही कोई भी विषय निरन्तर आगे बढ़ता रहता है अन्यथा वह वहीं रुक गया होता जहाँ से इसकी शुरूआत हुई थी।
यहाँ हमें इस बात को कतई नहीं भूलना चाहिए कि ग्रेज्युएशन स्तर की यह विश्लेषणात्मक क्षमता तब तक नहीं आ सकती जब तक हमारे पास विषय के संबंध में सूचनाएँ न हों और अपने विषय की बहुत अच्छी और मूलभूत गहरी समझ न हो। हायर सेकेण्डरी तक की परीक्षा हमारी चेतना को ये सारी चीज़ें प्रदान कर हमें विश्लेषण करने लायक बना देता है। अब यहबात अलग है कि हमने स्वयं को इस लायक बनाया है अथवा नहीं। यदि आपने स्वयं को इस लायक बना लिया है, तो मानकर चलिए कि आपके सिविल सेवा के परीक्षा के घोड़े पर जीन कसी हुई है। आपके बस बैठने भर की देरी है, घोड़ा सरपट दौड़ने लगेगा। लेकिन यदि आपने अपने-आपको इस तरह तैयार नहीं किया है, तो फिर घोड़े पर बैठने की जल्दबाजी करने से घोड़े का सरपट दौड़ना तो दूर की बात है, वह एक कदम भी आगे नहीं चलेगा। लाखों की संख्या में बैठने वाले विद्यार्थियों में कुछ हजार ही ऐसे होते हैं, जिनके घोड़ों पर जीन कसी हुई होती है और उनमें से जिनके घोड़े तेज दौड़ लगाते हैं, वे वह आगे निकल जाते हैं।
परीक्षा की मांग
हो सकता है कि आप सोच रहे हों कि ऊपर बताई गई इन बातों का भला सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी से क्या लेना-देना। मेरा मानना है कि इसका बहुत लेना-देना है और शायद सबसे ज्यादा, क्योंकि अपनी पूरी तैयारी को इन तथ्यों से जोड़े बिना आपकी सफलता कहीं न कहीं संदिग्ध ही बनी रहेगी। अब हम देखते हैं कि यू.पी.एस.सी आपसे क्या अपेक्षाएं रखता है। ये अपेक्षाएं मूलतः तीन तरह की हैं-
ऽ जनरल इंग्लिश व जनरल हिन्दी में यूपीएसी आपसे दसवीें के स्तर की मांग करता है। चूँकि ये भाषा से संबंधित पेपर हैं और इसे केवल क्वालिफाई करना होता है, इसलिए इस बारे में मैं विशेष बात करने की आवश्यकता नहीं समझता।
ऽ दूसरी अपेक्षा सामान्य अध्ययन के पेपर्स के बारे में है। यू.पी.एस.सी. इस बारे में केवल इतना ही इशारा करता है कि ‘एक सामान्य पढ़े-लिखे व्यक्ति से जो अपेक्षा की जाती है’ अब सवाल है कि हम किसे सामान्य व्यक्ति मानेंगे? यदि हम उनकी इस अपेक्षा को जनरल इंग्लिश और जनरल लेंग्वेज से जोड़कर जानना चाहें, तो यह लेवल बारहवीं के आसपास का बनता है। ऐसा इसलिए भी, क्योंकि वैकल्पिक विषयों का लेवल ऑनर्स डिग्री रखा गया है। हालांकि इस आधार पर आप सामान्य अध्ययन को ग्रेज्यूएट लेवल का भी मान सकते हैं। लेकिन वह सही नहीं होगा। क्योंकि तब यह लेवल ‘‘सामान्य व्यक्ति’’ शब्द से मेल नहीं खाएगा। इसलिए इसे हायर सेकेण्डरी के लेवल का माना जाना चाहिए और सामान्य अध्ययन के पेपर्स को देखने के बाद यह सही भी मालूम पड़ता है, खासकर मुख्य परीक्षा के पेपर्स को देखने पर।
लेकिन यहाँ एक बहुत महत्वपूर्ण अपेक्षा है, जिसकी अक्सर लोग अनदेखी कर जाते हैं। यहाँ आपको दो तथ्यों पर ध्यान देना होगा। इसमें संदेह नहीं कि विषय का लेवल तो बारहवीं के स्तर का है, लेकिन जो परीक्षार्थी परीक्षा दे रहा है, उसकी न्यूनतम योग्यता ग्रेज्युएशन की है। इसका मतलब यह हुआ कि बारहवीं के ज्ञान की जिस समझ की अपेक्षा एक स्नातक से की जानी चाहिए, वह लेवल। लोगों से गलती यह होती है कि वे इसे विशुद्ध रूप से बारहवीं के स्तर का मान लेते हैं और इस बात को भूला देते हैं कि परीक्षा देने वाला विद्यार्थी ग्रेज्यूएट हो चुका है। इस गलती का बहुत बड़ा खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ता है। इस तथ्य को अच्छी तरह नोट कर लिया जाना चाहिए।
ऽ तीसरी अपेक्षा वैकल्पिक विषयों से जुड़ी हुई है। बहुत से विश्वविद्यालयों में ऑनर्स डिग्री हैं ही नहीं। सीधे सरल शब्दों में आप इसे पोस्ट ग्रेज्युएशन का लेवल कह सकते हैं। यह आपके विषय की विशेषज्ञता का लेवल है। आपसे वैकल्पिक विषयों में इसी स्तर की उम्मीद की जाती है।
परीक्षा का स्वरूप
मित्रो, अब मैं न तो बहुत अधिक उलझाना चाहूँगा और न ही उबाना। अब मैं सीधे इस बात पर आता हूँ कि इससे पहले बताई गई बातों का सीधे-सीधे क्या संबंध आपकी तैयारी करने की रणनीति से है। सबसे पहले हम प्रारम्भिक परीक्षा को लेते हैं और इसके दोनों ही पेपर्स को। सुविधा के लिए हम जी.एस. की बात करें। इसमें अलग-अलग विषयों से प्रश्न पूछे जाते हैं। क्या आपने उन प्रश्नों के चरित्र को बहुत ध्यान से जानने की कोशिश की है? ज्यादातर स्टूडेन्टस् इसकी जरूरत ही नहीं समझते, जबकि इस तरह की कोशिशें आपकी तैयारी का एक वैज्ञानिक रूप देने में बहुत महत्वपूर्ण मदद करते हैं। चलिए मैं बताता हूँ। जी.एस. में जितने भी प्रश्न पूछे जाते हैं, वे केवल दो तरह के होते हैं-
ऽ सूचना पर आधारित तथा
ऽ समझ पर आधारित।
इसमें सूचना पर आधारित प्रश्नों का प्रतिशत 30 से 35 होता है तथा समझ पर आधारित प्रश्नों का प्रतिशत 65 से 70. तक। उदाहरण के लिए सन् 2014 का एक प्रश्न है- ’’लार्ड कर्जन द्वारा सन् 1905 में किया गया बंगाल का विभाजन कब समाप्त किया गया।’’ अब इसमें आपकी समझ ज्यादा काम नहीं आ सकती। यहाँ सूचना काम आएगी। आपको मालूम होना चाहिए कि कब इस विभाजन की समाप्ति की घोषण की गई। जबकि ठीक इसके बाद का अगला प्रश्न था-’’भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का सन् 1929 का अधिवेशन स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास में इसलिए उल्लेखनीय क्योंकि …।’’ इसके चार विकल्प दिए गए हैं। ऊपरी तौर पर देखने से तो यह प्रश्न आपको सूचना पर आधारित लगेगा, लेकिन जब आप इसके विकल्पों को पढ़ेंगे, तो वहाँ सूचनाएं आपको हथियार डालती हुई जान पड़ेंगी। इस प्रश्न के सही उत्तर तक आप तभी पहुँच सकेंगे जब आपके पास हमारे स्वतंत्रता आन्दोलन की समझ हो और उनके जो चारों विकल्प दिए गए हैं, उन पर आपकी पकड़ हो। अन्यथा दिए गए विकल्पों की भूल-भूलैया आपको सही स्थान तक पहुँचने नहीं देगी। मैंने यहाँ जानबूझकर दोनों ही प्रश्न इतिहास के ही लिए हैं ताकि आपके मन में यह संदेह न रह जाये कि इतिहास से तो केवल सूचना पर आधारित प्रश्न ही पूछे जा सकते हैं।
जाहिर है कि आपकी प्रारम्भिक परीक्षा में सफलता के लिए आपके हायर सेकण्डरी तक की पढ़ाई मददगार साबित होगी। यानी कि इन बारह वर्षों के दौरान आपने जिस पद्धति से भी पढ़ाई की है, वही पद्धति यहाँ आपकी मदद करेगी, बशर्ते कि आपने उस पद्धति से पढ़ाई की हो। सूचना के स्तर तक तो रटना काम आ जाता है, लेकिन समझ के स्तर पर नहीं। ऐसा नहीं है कि समझ के स्तर पर सूचनाओं की कोई भूमिका रह ही नहीं जाती। बिना सूचनाओं के समझ विकसित हो सकेगी, इस बारे मंे सोचना मूर्खता होगी। साथ ही यह भी सोचना मूर्खता होगी कि केवल सूचनाओं के दम पर ही समझ विकसित हो सकेगी। यह कैसे हो सकती, इसके बारे में मैं इससे पहले के दो अंकों में बेेसिक्स वाले लेखों में बता चुका हूँ।
परीक्षा का दूसरा चरण मुख्य परीक्षा का चरण है। इस चरण के सबसे चुनौती भरे पेपर्स होते हैं- जनरल स्टडीज़ के चार पेपर। आप शायद इन चारों पेपर्स की खतरनाक चुनौती का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि सन् 2014 के रिजल्ट में टॉप करने वाले परीक्षार्थी को भी इसमें मात्र लगभग 38 प्रतिशत नम्बर ही मिल पाए। यह डरावना आकड़ा यह सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है कि ये चारों पेपर बहुत कठिन होते हैं। लेकिन क्या सत्य यही है? मैं कहूँगा कि यह सत्य नहीं है। आकड़े डरावने जरूर हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं कि आकड़े सच को ही बताते हों। दरअसल, आकड़ों का सच विषय की कठिनता को बताने वाला सच नहीं है, बल्कि प्रश्नों के स्वरूप को समझने की ऊहापोह का सच है और उसका यह सच विश्लेषण करने की क्षमता से सीधे-सीधे जुड़ा हुआ है। अन्यथा तो जहाँ तक ज्ञान के लेवल की बात है, वह तो बारहवीं के स्तर का ही है। हाँ, विश्लेषण की क्षमता ग्रेज्युएशन के स्तर की होनी चाहिए, जिसकी विद्यार्थियों में बहुत अधिक कमी देखी जाती है। इसलिए मैं मुख्य परीक्षा को हमारी शिक्षा पद्धति के उस तीसरे सबसे महत्वपूर्ण चरण से जुड़ा हुआ मानता हूँ, जब आपके अन्दर विश्लेषण करने की क्षमता पैदा करने की कोशिश की जाती है।
मुख्य परीक्षा के अंतर्गत ही जहाँ तक निबन्ध का सवाल है, निश्चित रूप से इसका स्तर ग्रेज्युएशन का ही माना जाना चाहिए। निबन्ध का सीधा-सीधा कोई गहरा संबंध विश्लेषणात्मक क्षमता से नहीं होता। इसका अधिकांश भाग विषय से संबंधित सूचनाओं और उस विषय के प्रति परीक्षार्थी की समझ से होता है। इसकी जो सबसे बड़ी चुनौती होती है, वह यह कि आप अपनी सूचनाओं और अपनी समझ में कितना सुन्दर तालमेल बैठाते हुए अपनी बात को कितने खूबसूरत अंदाज में पेश कर पाते हैं। यहाँ दरअसल ज्ञान की भूमिका गौण होती है और अभिव्यक्त करने की कला की भूमिका प्रमुख। इसके बारे में हम कभी बाद में अलग से विस्तारपूर्वक बात करेंगे।
अब हम आते हैं ऑप्शनल पेपर पर, जिसे आप अपने लिए अपने हिसाब से चुनते हैं। ध्यान दीजिए कि यह पूरी तरह से आपकी अपनी ही पसन्द का विषय है। इसे आपने ही चुना है। तो यदि आपसे आपकी अपनी पसन्द के विषय पर यू.पी.एस.सी बड़ी-बड़ी अपेक्षाएं रखता है, तो क्या ऐसा करना गलत होगा? इस पर आपको विचार करना ही चाहिए। किसी भी विद्यार्थी को यदि इस प्रकार चुनने की स्वतंत्रता दी जाए, तो निश्चित रूप से वह अपने लिए सर्वोत्तम को ही चुनेगा। यह भी मानी हुई बात है कि जो विद्यार्थी अपने सर्वोत्तम को चुनेगा, वह अपने सर्वोत्तम का प्रदर्शन भी करेगा। ऐसा होना ही चाहिए। तो अब सवाल यह है कि वह कौन-सा तत्व है, जो किसी भी विषय में सर्वोत्तमता को प्रमाणित कर सकता है? जाहिर है कि उसकी मौलिकता। एक ही विषय को कई-कई स्टूडेन्टस् पढ़ते हैं और एक जैसी कई-कई किताबों से पढ़ते हैं। इसलिए अधिकांश स्टूडेन्ट लिखेंगे भी कमोवेश एक जैसा ही। इनमें से प्रत्येक उत्तम होगा। लेकिन यू.पी.एस.सी. आपसे सर्वोत्तम की अपेक्षा कर रहा है और आपकी मौलिकता का गुण ही वह तत्व है, जो आपको इन उत्तमों के बीच में सबसे उत्तम बना सकेगा।
मित्रो, शायद अब आप विस्तार में मेरे जाने के कारणों को थोड़ा-थोड़ा समझ गए होंगे। वस्तुतः मैं आपको यह विश्वास दिलाना चाह रहा हूँ कि सिविल सेवा परीक्षा अपनी परीक्षा के विभिन्न चरणों में, भिन्न-भिन्न विषयों के भिन्न-भिन्न तरीकों से आपका जो मूल्यांकन करती है और आपका मूल्यांकन करने के लिए आपसे जो अपेक्षाएं करती है, उनके बीज आपके अन्दर पहले से ही मौजूद हैं। आपको अलग से बीजों की थैली खरीदकर लाने की जरूरत नहीं है। आपको करना केवल इतना है कि आप अपने अन्दर सुप्त पड़े हुए उन बीजों को पहचानें और पहचानकर उन्हें अंकुरित करने में लग जाएं। विश्वास कीजिए कि यूपीएससी की सारी अपेक्षाएं अत्यन्त व्यावहारिक हैं। इनमें नया कुछ भी नहीं है। वे सब वही हैं, जो पहले से ही आपके पास हैं। गड़बड़ी केवल यह हुई है कि उसे आप भूल चुके हैं। मैं यहाँ भूले हुए को याद दिलाने की कोशिश कर रहा हूँ।
प्रश्नों का स्वरूप
यहाँ मेरा सरोकार केवल मुख्य परीक्षा के प्रश्नों से है और वह भी सामान्य अध्ययन के चारों पेपर्स के प्रश्नों से। निश्चित रूप से यदि आप चाहें, तो इस स्वरूप को काफी कुछ मानविकीय विषयों के आप्शनल पेपर्स पर भी लागू कर सकते हैं। चूंकि नए पैटर्न के अंतर्गत सन् 2013 की ही मुख्य परीक्षा सम्पन्न हुई है इसलिए इस विश्लेषण का आधार सन् 2013 के पेपर्स ही हैं। मुझे नहीं लगता कि सन् 2014 के पेपर्स का स्वरूप इससे कोई बहुत अलग होगा। इसलिए यदि आप चाहें, तो इस बारे में निश्चिन्त हो सकते हैं।
सामान्य अध्ययन के पेपर्स में तीन तरह के प्रश्नों के स्वरूप देखने को मिलते हैं। ये स्वरूप हैं-(1) ऐसे प्रश्न, जिनमें विश्लेषण की जरूरत नहीं होती। प्रश्न सीधे-सीधे पूछे जाते हैं और इसे आप उस श्रेणी का मान सकते हैं, जिनसे आपका साक्षात्कार कॉलेज की परीक्षा के दौरान होता रहा है। उदाहरण के लिए ‘‘संसार के शहरी निवास स्थानों में ताप-द्वीपों के बनने के कारण बताइए।’’ या फिर ‘‘आरम्भिक भारतीय शिला लेखों में अंकित ‘ताण्डव’ नृत्य की विवेचना कीजिए।’’ आप कह सकते हैं कि इस श्रेणी के प्रश्न मुख्यतः सूचना और समझ पर आधारित होते हैं। जब प्रश्नों में चित्रण कीजिए, परिचय दीजिए, अन्तर बताइए, विवेचना कीजिए तथा तुलना कीजिए जैसे निर्देश होते हैं, तो आपको मान लेना चाहिए कि इनमें विश्लेषण की जरूरत नहीं है। सिविल सेवा में भी ऐसे प्रश्न पूछे जाते हैं, लेकिन इनका प्रतिशत काफी कम होता है, अधिकतम 15 प्रतिशत ही।
(2) दूसरी श्रेणी में वे प्रश्न आते हैं, जिनमें विश्लेषण तो करना होता है, लेकिन वह विश्लेषण बहुत गहरा नहीं होता। आपसे सूचना और समझ के स्तर से थोड़ा और गहराई में जाने की मांग की जाती है। इस तरह के प्रश्नों में जो निर्देशात्मक शब्द होते हैं, उन्हें हम पुष्टि कीजिए, आंकलन कीजिए, समीक्षा कीजिए, आलोचना कीजिए, टिप्पणी कीजिए, औचित्य सिद्ध कीजिए, विवेचना कीजिए आदि-आदि शब्दों में देख सकते हैं। उदाहरण के लिए ‘‘राष्ट्रीय लोकपाल कितना भी प्रबल क्यों न हो, सार्वजनिक मामलों में अनैतिकता की समस्याओं का समाधान नहीं हो सकता।’’ विवेचना कीजिए।
(3) तीसरे स्तर के प्रश्न गहरे विश्लेषण की मांग करते हैं। निश्चित रूप से यह विश्लेषणात्मक क्षमता की अंतिम स्थिति होती है। इस तरह के प्रश्नों की सबसे अच्छी पहचान यह होती है कि इस तरह के प्रश्नों में एक साथ दो निर्देशात्मक शब्द प्रयोग में लाए जाते हैं; जैसे- समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिए, समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए, विवेचनात्मक टिप्पणी कीजिए आदि-आदि। उदाहरण के लिए वित्तीय दायित्व और बजट प्रबंधन (एफ.आर.बी.एम.) अधिनियम 2003 को प्रारम्भ करने के क्या कारण थे। उसके प्रावधानों और उनकी प्रभाविता का समालोचनात्मक विवेचन कीजिए।
इन तीन तरह के प्रश्नों में से जो पहली श्रेणी के प्रश्न हैं,उनके लिए इतनी प्रखर विश्लेषणात्मक क्षमता की आवश्यकता नहीं होती। विद्यार्थी ऐसे प्रश्नों को आसानी से हल भी कर लेते हैं, क्योंकि ऐसा वे पहले से करते आ रहे हैं। उनके सामने संकट तब खड़ा होता है, जब वे दूसरी और तीसरी श्रेणी के प्रश्नों को हल करते हैं। वैसे सच तो यह है कि उनके सामने संकट खड़ा होता ही नहीं, क्योंकि वे ‘‘सब धान बाइस पसेरी’’ के सिद्धान्त को अपनाते हुए इन प्रश्नों को भी उसी तरह हेण्डल करने लगते हैं, जैसे कि उन्होंने पहली श्रेणी के प्रश्नों को किया था। यही उनकी असफलता का सबसे बड़ा कारण बन जाता है। और यही मुख्य परीक्षा की सबसे बड़ी चुनौती है। यह चुनौती सीधे-सीधे स्टूडेन्ट की विश्लेषणात्मक क्षमता से जुड़ी हुई है। अगले अंकों में हम इसी क्षमता के बारे में विस्तार से बातें करेंगे। तब तक के लिए आप इस लेख को बार-बार पढ़े, समझने की कोशिश करें और फिर इस लेख के समानान्तर खुद को रखकर खुद की स्थिति को भी समझने की कोशिश करें। ऐसा करने से आप इसे अच्छी तरह आत्मसात कर पाएंगे। यही वह भूमिका होगी, जिसकी पृष्ठभूमि में आप अगले अंक के लेख को अच्छी तरह पचा सकेंगे। तब तक के लिए अलविदा।