बेसिक्स की अवधारणा एवं तैयारी-2

Afeias
26 Jan 2015
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बेसिक्स क्यों

 ऊपरी तौर पर देखने से तो बेसिक्स का ज्ञान एक प्रकार से बचकाना ज्ञान मालूम पड़ता है। और यह है भी। लेकिन इसके साथ एक बड़ी विचित्र बात है। वह यह कि किसी भी विषय की गहराई तक पहुँचने के लिए उस विषय के बेसिक को जानना जरूरी है और किसी भी विषय की बेसिक को जानने के लिए उस बेसिक्स की गहराई में उतरना जरूरी है। यह तो कुछ उसी तरह की बात हो गई कि मुर्गी पहले आयी या अंडा। लेकिन यह कोई मुष्किल काम नहीं है। मुझे लगता है कि दो भागों में लिखा गया यह लेख जैसे ही पूरा होगा, आप इस पहेली को स्वयं ही सुलझा लेंगे। आखिर में कुछ बातें आपके लिए भी छोड़ी ही जानी चाहिए न।

आइंस्टीन ने ज्ञान की परिभाषा देते हुए एक विचित्र किन्तु बहुत सही बात यह कही थी कि ‘‘पढ़ा हुआ सब कुछ भूल जाने के बाद जो बच जाता है, वही ज्ञान है।’’ इसमें बेसिक्स के बहुत गहरे सूत्र छिपे हुए हैं और उसके महत्व भी। दरअसल होता यह है कि जब तक हमें अपना पढ़ा हुआ याद रहता है, तब तक वह स्मृति बार-बार हमारे ज्ञान में हस्तक्षेप करके वहाँ अपनी उपस्थिति दर्ज कराती रहती है। जबकि होना यह चाहिए कि वह हमें मजबूत बनाकर हमसे दूर चली जाए। उदाहरण के तौर पर जब हम भोजन करते हैं, तो उसके जो भी विटामिन, प्रोटीन जैसे तत्व होते हैं, वे हमारी कोषिकाओं के हिस्से बन जाते हैं और वह भोजन, जिसे हमने खाया था, गायब हो जाता है। रसोई घर में जब भोजन बन जाता है, तो रोटी एक आटे से तो बनी हुई होती है, लेकिन वहाँ आटा नहीं होता। बेसिक्स बस इसी तरह का काम करते हैं। यदि आपने पुस्तकीय ज्ञान के साथ के अपने संबंध को यह रूप दे दिया, तो आइंस्टिन का यह विचार तुरन्त आपकी पकड़ में आ जाएगा और आप चमत्कृत हो उठेंगे। सच तो यह है कि तभी आप जान भी सकेंगे कि बेसिक्स जैसे सरल बातों की समझ सचमुच कितनी जादूई होती है। अब मैं अपनी इस बात को केवल सिविल सेवा परीक्षा केे सन्दर्भ में ही रखना चाहूंगा।

चाहे आप प्रारम्भिक परीक्षा के प्रष्न-पत्र को उठाकर देख लें या मुख्य परीक्षा के, वे आपको परेशान  करते हैं। वे इस मायने में परेशान  करते हैं कि जब आप उन्हें पढ़ते हैं, तो थोड़ी देर के लिए दिमाग घूम जाता है। समझ में नहीं आता कि यूपीएससी हमसे जानना क्या चाह रहा है। पूछा गया प्रश्न पकड़ में नहीं आता और जब तक वह पकड़ में आएगा नहीं, तब तक आप उसके साथ कुछ विशेष  कर नहीं सकेंगे। अब यहाँ सवाल यह है कि क्या ये प्रश्न किसी के भी पकड़ में नहीं आते? और यदि कुछ लोगों की पकड़ में आते हैं, जो कि आते ही हैं, तो फिर सवाल यह है कि कुछ लोगों की पकड़ में क्यों आते हैं। इससे सिद्ध होता है कि प्रष्न ऐसा नहीं है, जो पकड़ में ही न आए। मुश्किल हमारे साथ है कि वे हमारी पकड़ में नहीं आ रहे हैं। और इसका स्पष्ट प्रमुख कारण है-विषय के बेसिक्स पर पकड़ का न होना। जैसे ही विषय की बेसिक्स पर आपकी पकड़ बनेगी, प्रश्न  समझ में आने लगेंगे। यह इसका पहला लाभ है।

मुख्य परीक्षा में जितने भी विषय हैं (निबन्ध और भाषा के पेपर्स को छोड़कर), आप उन सभी के चरित्र को जानने की कोशिश  कीजिए। अधिकांष प्रश्नों  के साथ विष्लेषण कीजिए, व्याख्या कीजिए, समालोचनात्मक व्याख्या कीजिए, आदि-आदि शब्द जुड़े होते हैं। साफ है कि वे आपसे तथ्यों की जानकारी नहीं मांग रहे हैं, बल्कि उन तथ्यों का सहारा लेकर आपसे विष्लेषणात्मक ज्ञान की मांग कर रहे हैं। यानी कि यू.पी.एस.सी. आपके दिमाग की तर्क-शक्ति का परीक्षण करना चाह रही है। तर्कवान मस्तिष्क डल नहीं होता, वह आलसी नहीं होता और जिसका मस्तिष्क आलसी नहीं होगा, वह व्यक्ति भी आलसी नहीं होगा। किसी भी देष को ऊर्जावान, स्मार्ट और गतिषील प्रषासकों की ही जरूरत होती है। जाहिर है कि केवल वे ही मस्तिष्क तर्कषील हो सकते हैं और उन्हीं मस्तिष्क के पास विष्लेषण की क्षमता हो सकती है, जिनके पास विषय के बेसिक्स की समझ होगी।

मुख्य परीक्षा के कई प्रश्नों  में आपसे आपके विचार मांग लिए जाते हैं। उदाहरण के लिए सामान्य अध्ययन का एक प्रश्न   है ‘‘अवैध धन स्थानांतरण देष की आर्थिक प्रभुसत्ता के लिए एक गंभीर सुरक्षा जोखिम होता है। भारत के लिए इसका क्या महत्व है और इस खतरे से बचने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए?’’ अब इसमें ‘क्या कदम उठाए जाने चाहिए’ वाला अंष आपसे आपके अपने विचारों की मांग कर रहा है। इस बारे में आपके अपने विचार तब तक नहीं बनेंगे, जब तक आपको अवैध धन तथा उसके स्थानांतरण की पूरी पद्धति मालूम न हो। इसमें कोई दो राय नहीं कि यदि आपको केवल यही बेसिक्स मालूम हैं, तो इसी के आधार पर आप इस प्रश्न का सटीक उत्तर प्रस्तुत कर देंगे। स्पष्ट है कि किसी भी विषय पर मौलिक विचार और अपने निष्कर्ष तभी निकलते हैं, जब हमें बेसिक्स की जानकारी हो।

अब चौथी और अंतिम बात यह कि इस तथ्य की कभी अनदेखी न करें कि ज्ञान ठोस पदार्थ की तरह नहीं, बल्कि द्रव पदार्थ की तरह होता है। यह लगातार बढ़ता है और बढ़ने की प्रक्रिया में यह कहीं से कहीं पहुँच जाता है और वहाँ पहुँचकर उनसे घुल-मिलकर कुछ नया पदार्थ बना देता है। और फिर से यह बना हुआ नया पदार्थ फिर से बहकर कहीं और पहुँचकर किसी अन्य से घुल-मिलकर कुछ अन्य नए की रचना कर देता है। ज्ञान की यह प्रक्रिया सदियों से जारी है, सदियों तक जारी रहेगी और इसी प्रक्रिया के तहत हम ज्ञान की इस ऊँचाई तक पहुँच पाए हैं। लेकिन सूचनाओं के साथ ऐसा नहीं होता। अधिकांष सूचनाएं ठोस पदार्थ की तरह होती हैं। वे एक ही जगह पर टिकी रहती हैं। इनका इस्तेमाल सजावट के लिए तो किया जा सकता है, लेकिन किसी दूसरे के साथ मिलाकर एक नए पदार्थ की रचना के लिए नहीं किया जा सकता। लेकिन यहाँ याद रखिए कि इसी सूचना को ज्ञान में परिवर्तित करके हम उसे द्रव में बदलते हैं, ठीक वैसे ही जैसे कि बर्फ को; जो ठोस रूप में होता है, पिघलाकर द्रव रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। जैसे ही आपके पास विषय के बेसिक्स की समझ आती है, आपके पास वह कला भी आ जाती है कि कैसे आप सूचनाओं को ज्ञान में परिवर्तित करके उसे प्रवाहषील बना देंगे। ज्ञान का अस्तित्व अलग से नहीं होता। वह सूचनाओं में ही समाया रहता है। क्या आपको नहीं लगता कि इस क्षमता को हासिल करके ही आप सिविल सेवा परीक्षा के प्रष्नों के उस तरह के उत्तर दे सकेंगे, जिसे यू.पी.एस.सी. ने ‘‘संगत, सार्थक और सारगर्भित’’ उत्तर कहा है।

बेसिक्स की चुनौतियाँ

यह मूलतः ‘पढ़ने की प्रक्रिया’ (त्मंकपदह च्तवबमेेद्ध को ‘सीखने की प्रक्रिया’ ;स्मंतदपदह च्तवबमेेद्ध में बदलने की कूंजी है। इसलिए प्रक्रिया के इस परिवर्तन के दौरान जितनी भी बाधाएं आती हैं, उन सभी को हम बेसिक्स की चुनौतियाँ मान सकते हैं। चूँकि ज्ञान की यह पूरी प्रक्रिया बुद्धि और मन से जुड़ी हुई है, इसलिए स्वाभाविक ही है कि इससे जुड़ी अधिकांष चुनौतियों का संबंध बुद्धि और मन के विज्ञान से ही होगा।

आप जानते हैं कि मन बहुत ही सूक्ष्म तरीके से काम करता है। विचारों केे स्तर पर उठी हुई एकदम छोटी-सी लहर को भी पहचान और पकड़कर मन उसके अनुसार आपके लिए काम करना शुरू कर देता है। हालांकि यह बात हम सबकी पकड़ में आसानी से आती नहीं है, लेकिन इससे लर्निंग प्रोसेस को कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप मन की इस सूक्ष्म कार्य-पद्धति को पकड़ पा रहे हैं या नहीं। तो आइए, हम यहाँ बेसिक्स को समझने के दौरान आने वाली सबसे महत्वपूर्ण चुनौतियों को जानने की कोषिष करते हैं। यहाँ मैं यह बात विषेष रूप से कहना चाहूँगा कि यदि आप इन चुनौतियों को केवल पढ़कर छोड़ देंगे, तो यह ज्ञान आपकी कोई मदद नहीं करेगा। आपको सलाह दी जाती है कि आप इन सभी चुनौतियों को; और विषेषकर मनोविज्ञान से जुड़ी चुनौतियों को एक-एक करके ध्यान से पढ़ें और इन सभी को अपने ऊपर एप्लाय करके भी देखें कि इन चुनौतियों से आपका किस तरह साक्षात्कार होता है। तभी आप इससे कुछ लाभ उठा सकेंगे।

  • जैसा कि मैं पहले बता चुका हूँ ‘मैं जानता हूँ’ की सोच गलतफहमियों से भरी होती है। यह सबसे खतरनाक सोच होती है, जो भविष्य में आपके लर्निंग की यात्रा की भ्रूण-हत्या कर देती है। इस गलत विचार को ‘मुझे जानना है’ के विचार से रिप्लेस करना होगा। ठीक है कि आप जानते हैं, लेकिन यह भी उतना ही ठीक है कि अभी बहुत कुछ जानना है, क्योंकि जानने का कभी कोई अंत नहीं होता। ज्ञान के क्षेत्र की यह सच्चाई आपके गड़बड़ाये हुए मनोविज्ञान को संतुलित करने के लिए एक रामबाण औषधि हो सकती है।
  • ऽ इस तथ्य की कतई अनदेखी न करें कि ‘सरल सबसे कठिन होता है’। यदि आपका दिमाग किसी काम को बहुत आसान मान लेता है, तो यह मानकर चलिए कि आपने शुरूआत करने से पहले ही अपनी असफलता की घोषणा कर दी है। मैं तो यह मानता हूँ कि आप जो पा सकते थे, और आपने जो पाया है, यदि इसके बीच का फासला बहुत अधिक है, तो यह भी एक प्रकार की असफलता ही है, बावजूद इसके कि आप सफल हो गए हैं।ज्ञान के क्षेत्र के इस महत्वपूर्ण तथ्य को भी हमेषा याद रखें कि यह न तो लम्बाई- चौड़ाई में निहित होती है और न ही सतह पर। इसका संबंध गहराई से होता है और गहराई कहीं भी खत्म नहीं होती। इसलिए सतह पर आपको जो बहुत सरलता दिखाई दे रही है, वह सामान्य लोगों के लिए है। सिविल सर्वेन्ट बनने के लिए आपको इन सामान्य लोगों से काफी कुछ श्रेष्ठ बनना ही पड़ेगा। इसके लिए आपको सतह से नीचे उतरना पड़ेगा और आप जैसे-जैसे नीचे उतरते जाएंगे, आपकी जटिलताओं से मुठभेड़ होने लगेगी। लेकिन शरूआत सतह से ही करनी पड़ती है। यदि आप अपने मनोविज्ञान को इस विचार के अनुकुल सेट कर लेंगे, तभी आपका दिमाग सतह की कठोर पपड़ी को तोड़कर उसके अन्दर प्रवेष कर सकेगा। अन्यथा तो लाखों-करोड़ों लोग जीवन भर इस सतह पर ही चहलकदमी करते रहते हैं।
  • अभी तक आपने औपचारिक षिक्षा के लिए जो कुछ भी किया है, उसके केेन्द्र में था-परीक्षा पास करना। जाहिर है कि जब उद्देष्य ही परीक्षा पास करना होता है, तो हमारे पढ़ने की पद्धति के केन्द्र में भी यही बात होगी कि ‘परीक्षा में क्या-क्या पूछा जा सकता है।’ यदि आपको यह लगता है कि परीक्षा में बेसिक्स से अधिक प्रष्न नहीं आते, तो आपको गलत नहीं लग रहा है। लेकिन औपचारिक षिक्षा की यही सच्चाई सिविल सेवा परीक्षा को बहुत अधिक कठिन बना देती है, क्योंकि बेसिक्स को हमने यूं ही छोड़ दिया था। क्या आपको नहीं लगता कि ऐसा करके हम सचमुच कितनी बड़ी भूल कर चुके होते हैं? लेकिन यदि यही भूल आप सिविल सेवा की परीक्षा में करेंगे, तो यकीन मानिए कि यू.पी.एस.सी. आपको सफल बनाने की भूल कभी नहीं करेगा। यदि आपको बेसिक्स पर पकड़ बनानी है, तो इस तथ्य को भूलना ही पड़ेगा कि ‘‘इससे परीक्षा में तो प्रष्न पूछे ही नहीं जाते हैं।’’
  • निष्चित रूप से ऐसी किताबों की काफी कमी है, जो बेसिक्स को बहुत खोल-खोलकर, उलट-पुलटकर, उदाहरण दे-देकर विस्तार के साथ समझाती हों। किताबों का सारा जोर कुल-मिलाकर सिलेबस पर होता है कि कैसे ज्यादा से ज्यादा सिलेबस को कम से कम पृष्ठों में समेट दिया जाए। और यहीं बेसिक्स के विस्तार की संभावनाएं समाप्त हो जाती हैं। निसंदेह रूप से ऐसी किताबों की कमी से निपटना एक बड़ी चुनौती है और फिलहाल मैं इस बात के लिए माफी चाहूँगा कि मैं स्वयं भी इस स्थिति में नहीं हूँ कि आपको बता सकूँ कि आप इस चुनौती से किस प्रकार निपटेंगे।
  • हाँ, लेकिन बेसिक्स की अच्छी किताबों से निपटने का एक तरीका बेसिक्स के अच्छे जानकारों से निर्देषन प्राप्त करना हो सकता है। लेकिन यह भी इतना आसान नहीं है। षिक्षक बहुत मिलेंगे। बहुत से ऐसे भी मिलेंगे, जो इस बारे में आपका निर्देषन करने का दावा करें। किन्तु आपको यह स्वयं देखना होगा कि उनके ये दावे आपकी कितनी मदद कर पा रहे हैं। यदि बेसिक्स को समझकर आपमें उसे एप्लाय करने की क्षमता आ रही हो, तो मान लें कि वे आपके लिए निष्चित रूप से मददगार होंगे। फिर आपको उन्हें छोड़ना नहीं चाहिए। अन्यथा नए की तलाश में न तो आलस्य करना चाहिए और न ही कोई संकोच, क्योंकि यह आपकी जरूरत है और आपकी यह जरूरत सीधे-सीधे आपकी जिन्दगी के सपनों सेे जुड़ी हुई है।

बेसिक्स की तैयारी के तरीके

मित्रो, मैं जानता हूँ कि दरअसल आपकी मुख्य जरूरत यही है कि आपको बेसिक्स की तैयारी करने के तरीके बताए जाएं। तो फिर मैंने बेवजह इतनी सारी अन्य बातें क्यों कीं? क्या यह बेहतर नहीं होता कि मैं यहीं से अपनी बात शुरु करता। इससे न केवल आपके ही समय की बचत होती, बल्कि खुद मेरा भी तो समय बचता? क्या आप ऐसा नहीं सोच रहे हैं? यदि आप ऐसा सोच रहे हैं, तो यह इस बात का सबूत है कि अभी भी आपके दिमाग में बेसिक्स की अवधारणा स्पष्ट नहीं हुई है। ऐसे में मेरी सलाह है कि आप इसे आगे न पढ़ें। फिर भी यदि यह आपकी जरूरत ही है, तो बेहतर होगा कि इस विषय पर फिर से शुरू से पढ़ें। न केवल पढ़ें ही, बल्कि उस पर बार-बार विचार भी करें। वस्तुतः इस चेप्टर का संबंध ही इस बात से है कि किसी भी विषय की मूल अवधारणाओं को समझे बिना आप उस विषय को समझ ही नहीं सकते। इसे आप यूँ भी कह सकते हैं कि इस चेप्टर के बारे में इससे पहले आपने जो कुछ भी पढ़ा है, वह मुख्यतः ‘बेसिक्स की तैयारी कैसे करें’ विषय का बेसिक्स ही है। इस तथ्य की जाँच के लिए मैं आपको एक होमवर्क देना चाहूँगा। अभी तक आपको ज्ञात हो गया है कि बेसिक्स क्या होते हैं, उसकी क्या-क्या चुनौतियाँ हैं। इतना जानने के बाद अब आप अपनी तरफ से इस प्रष्न का उत्तर लिखने की कोषिष करें कि ‘‘बेसिक्स की तैयारी कैसे की जाती है।’’ आप जितनी सम्पूर्णता के साथ इस प्रष्न का उत्तर लिख लेंगे, वह इस बात का मापदण्ड होगा कि आप बेसिक्स के बेसिक्स को कितना समझ पाए हैं। मुझे पूरा विष्वास है कि अब आप इसके बारे में जो कुछ भी लिखेंगे, वह उस बात से भिन्न होगा, जो अन्यथा आप इससे पहले लिखते। क्या ऐसा नहीं है?

अब मैं आपको उन उपायों की तरफ ले जाना चाहूँगा, जो उपाय बेसिक्स की तैयारी में आपकी मदद करेंगे। यहाँ मैं इस बात को स्पष्ट करना चाहूँगा कि इनमें से कोई भी एक उपाय पर्याप्त नहीं है। यहाँ जितने भी उपाय बताए जा रहे हैं, उनमें से कोई भी किसी का भी विकल्प नहीं है, स्थानापन्न नहीं है। ये सभी एक-दूसरे के सहयोगी हैं। कोई उपाय कहीं लागू होता है, तो कहीं कोई। कहीं तो कई-कई उपाय भी लागू होते हैं। इसलिए आपको इन सभी उपायों के प्रति एक समग्र दृष्टि रखनी होगी।

  • सामान्यतः किसी भी पुस्तक के शुरू के दो या तीन चेप्टर के विषय बेसिक्स से संबंधित होते हैं; विषेषकर मानवीकीय विषयों में। इन दो-तीन अध्यायों में उस विषय को समझाने की कोषिष होती है- विषय की परिभाषा के द्वारा, उसकी विषेषताओं के द्वारा, उसके गुण-दोषों के द्वारा, उसके आलोचनात्मक परीक्षण के द्वारा तथा अन्य विषयों के साथ उसके संबंधों के द्वारा आदि-आदि। सच पूछिए तो इसमें उस विषय का पूरा चरित्र निहित होता है। ऐसे चेप्टर रटने के लिए होते ही नहीं हैं, जबकि इन्हें रटा जाता है। धोखा तो तब होता है, जब स्टूडेन्ट उसकी परिभाषा को शब्दषः रटकर खुद को उस विषय का अच्छा ज्ञाता समझ बैठता है। साथ ही यह धोखा उस समय और अधिक बढ़ जाता है, जब उसे आभास होता है कि ‘अरे! इसे तो याद करने में कुछ भी नहीं है।’ मैं मानता हूँ कि इस अध्याय पर सबसे ज्यादा समय लगाया जाना चाहिए।
  • किसी भी विषय का ज्ञान क्रमबद्ध तरीके से विकसित होता है, क्योंकि पहले का स्थापित ज्ञान ही बाद के ज्ञान के जन्म का कारण बनता है। इसलिए यह बहुत जरूरी होता है कि किसी भी विषय को न तो बीच से पढ़ा जाए और न ही उन्हें खंडित कर-करके। ऐसा करके हम विभिन्न अध्यायों में अन्तर्निहित उनकी अंतर्गंता को समाप्त कर देते हैं। फलस्वरूप उनमें असामंजस्यता आ जाती है। क्रमबद्धता बेसिक्स को जानने का उसी तरह एक अभिन्न अंग है, जैसे कि आप क्ष, त्र और ज्ञ को तब तक नहीं समझ सकते, जब तक कि आप च, छ और ज को नहीं समझ लेते।
  • बहुत से विषय ऐसे होते हैं, जिनमें नक्षे दिए होते हैं, चित्र होते हैं, ग्राफ्स होते हैं, तालिकाएं होती हैं। स्टूडेन्ट इन पर बिल्कुल ध्यान नहीं देते हैं। वे इसे सजावट की वस्तु मान लेते हैं, जो एक बहुत बड़ी भूल है। मैं इसे गन्ने की खेती को एक गिलास रस के रूप में समेट लेने जैसा मानता हूँ। ये बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। केवल इस दृष्टि से नहीं कि इनमें बताए गए तथ्यों का सार निहित है, बल्कि इस रूप में भी कि इनमें हमारे मस्तिष्क में बिम्ब रचने की अद्भुत क्षमता होती है। मैं तो सापेक्षता के सिद्धान्त को तब तक पढ़ना शुरू नहीं करूंगा, जब तक मेरी आंखें आइंस्टीन के चित्र को मेरे दिमाग पर चस्पा न कर दें। मुझे समझ में नहीं आता कि भूगोल और इतिहास जैसे विषयों को नक्शे के बिना भला कैसे पढ़ा जा सकता है।
  • यह तो हुई कागज पर उकेरे गए चित्रों की बात। लेकिन क्या ऐसे ही चित्र इस धरती पर जीवन्त रूप से उकेरे हुए नहीं मिलते? मिलते हैं, खूब मिलते हैं, और इन उकेरे गए चित्रों को मैं ‘जीवन्त मॉडल’ कहना चाहूँगा। मित्रो, मैं आपको फिर से याद दिलाना चाहूँगा कि प्रत्येक विषय जीवन्त विषय होता है। उसकी साँसें जीवन्त समाज में धड़कती हैं। इस तथ्य का ज्ञान आपकी मुलाकात समाज के जीवन मॉडल्स से कराकर बेसिक संबंधी आपकी समझ को एक नई ऊँचाई प्रदान कर देगा। क्या आपको नहीं लगता कि आप परिवार के द्वारा समाज को समझ सकते हैं? यदि आपने मनुष्य को समझ लिया, तो आपने मनोविज्ञान को जान लिया और यदि आपने परिवार को समझ लिया तो पूरे समाज को समझ लिया। आप बाजार जाते हैं। क्या वहाँ आपको अर्थशास्त्र के मॉडल दिखाई नहीं पड़ते? आप गांव में, नगर में या शहर में रह रहे हैं। आप यात्राएं करते हैं। आपके चारों ओर वह प्रकृति बिखरी हुई है, जो साल में न जाने कितनी बार नए-नए रूप धारण करती रहती है। क्या आपने कभी इस बिखरी हुई प्रकृति को अपनी भूगोल की किताब के फैले हुए विशाल पृष्ठों की तरह देखा है? जब आप कलेक्ट्रेट में जाते हैं, तो वहाँ प्रशासन मौजूद रहता है और जब चुनाव होते हैं, तो हमारा संविधान। ये अलग नहीं हैं। ये किसी भी विषय के जीवन्त मॉडल हैं और आप अपनी दृष्टि को बदलकर, इन मॉडल्स को जीवित करके इन्हें अपने लिए जीती-जागती, धड़कती और बोलती हुई किताब बना सकते हैं।
  • इसी से जुड़ी हुई एक अन्य बात है। आप कई लोगों के विचार पढ़ते हैं-अर्थशास्त्र में, समाजशास्त्र में, लोक प्रशासन में, राजनीति विज्ञान में, फिलासफी में तथा अन्य भी लगभग सभी विषयों में। आप इनके विचारों को रटते हैं, परीक्षा में लिखते हैं और टॉप तक कर जाते हैं।
    अब मैं आपको एक छोटा-सा अलग तरीका बता रहा हूँ। मैं जानता हूँ कि आपमें से बहुत कम लोगों ने इस तरीके को अपनाया होगा। तरीका यह है कि आप जिस व्यक्ति के विचारों को पढ़ रहे हैं, भले ही वह कोई साहित्यकार ही क्यों न हो, आप सबसे पहले उस व्यक्ति के जीवन के बारे में पढ़िए। आपको मालूम होना चाहिए कि यह व्यक्ति कहाँ का है और उसकी पृष्ठभूमि क्या है? उनका युग कैसा रहा है, आदि-आदि। मैं इसे किसी भी दार्शनिक, विचारक और लेखक की बेसिक मानता हूँ। आप ऐसा कीजिए और ऐसा करने के बाद जब उसके विचारों को पढ़ेंगे तो पढ़ने के दौरान चमत्कृत हो उठेंगे। कहाँ तो पहले उसके विचार पल्ले ही नहीं पड़ रहे थे और अब कहाँ स्थिति यह हो जाएगी कि वे विचार अब आपका ही पल्ला नहीं छोड़ेंगे। लर्निंग की इस प्रक्रिया की तह में यह सिद्धान्त काम कर रहा है कि किसी भी व्यक्ति के विचार उसके अपने समय एवं व्यक्तिगत परिस्थितियों से अलग नहीं होते।
  • जब भी आप कोई भी चेप्टर पढ़ें, खासकर किसी भी विषय के शुरू के दो-तीन चेप्टर, तो उसमें आपको कुछ ऐसे पारिभाषिक शब्द मिल सकते हैं, जो आपकी समझ में न आएं। या फिर यदि समझ में आ भी गए हैं, तो केवल ऊपरी तौर पर। यदि आपको ‘अस्तित्ववाद’ शब्द पढ़ने को मिलता है, तो बेसिक्स पर पकड़ बनाने के लिए यह अनिवार्य है कि आप इस शब्द के सम्पूर्ण परिवेश को जानें कि अंततः यह शब्द आपसे कहना क्या चाह रहा है। इसमें डिक्शनरी आपकी उतनी मदद नहीं करेगी, जितनी मदद कोई व्यक्ति कर सकता है। ऐसे शब्द बहुत अधिक महत्व रखते हैं और इससे न केवल बेसिक्स की समझ ही बढ़ती है, बल्कि आपकी भाषा भी समृद्ध होती है।
  •  हर समय आपके चारों और घटनाएं घट रहीं हैं। आपके आसपास की घटनाओं के गवाह आप खुद होते हैं और दुनिया की खबरें आपको समाचार पत्रों के जरिए मिलती रहती हैं। इन घटनाओं के प्रति मैं आपको दो तरह के संबंध स्थापित करने की सलाह देना चाहूँगा। पहला तो यह कि इन घटनाओं को देखने और पढ़ने के बाद आप उन पर उस विषय से संबंधित बेसिक्स को लागू करने की कोशिश करें। दूसरा यह कि इन घटनाओं को देखने या सुनने के बाद उन घटनाओं से ही कोई बेसिक सिद्धान्त निकालने की कोशिश करें। घबराइए मत, यह कोई बहुत मुष्किल काम नहीं है। जब आप करने लगेंगे, तो धीरे-धीरे होने लगेगा। इससे दो फायदे होंगे। एक यह कि आप इस प्रक्रिया के द्वारा अनजाने ही अपने पढ़े हुए बेसिक्स को दोहराएंगे। दूसरे यह कि आपकी मानसिक क्षमता भी प्रषिक्षित होगी। यह आपको बेसिक्स की गहराई में ले जाएगी और जाहिर है कि आप बेसिक्स की जितनी अधिक गहराई में उतरते चले जाएंगे, आपकी रेंकिंग सिविल सेवा परीक्षा के सफल उम्मीदवारों में उतनी ही ऊपर बढ़ती चली जाएगी। वहाँ का नीचे उतरना यहाँ का ऊपर उठना बनता चला जाएगा।
    मैं जानता हूँ कि यदि मैं इन्हीं तथ्यों को प्रेक्टिकल तौर पर करके दिखाता, तो यही बातें आपकी चेतना में और भी अधिक गाढ़े रंग में रच-बस जातीं। हर माध्यम की अपनी सीमा होती है। फिलहाल लेखन की जो सीमा होती है, उसका अधिकतम विस्तार करते हुए मैंने बेसिक्स के बारे में अपने अनुभवों और विचारों को आपके सामने रखा है। मुझे विश्वास है कि दो अंकों में समाप्त इस विषय पर मेरे इन लेखों ने आपको निराश नहीं किया होगा।

NOTE: This article by Dr. Vijay Agrawal was first published in ‘Civil Services Chronicle’.

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