आई.ए.एस. की तैयारी के तरीके की तलाश-2

Afeias
23 Jul 2017
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मित्रो, यहां मैं एक और कटु सत्य के बारे में आपको बताना चाहूंगा। पिछले साल टीना डाबी ने टॉप किया। हर साल कोई न कोई करता ही है। उससे पिछले साल इरा सिंहल ने किया था। उससे पिछले साल गौरव अग्रवाल ने किया। यह घटना आगे भी होती रहेगी। टीना डाबी के साथ जो सबसे बड़ी बात थी, वह यह नहीं थी कि वह किस वर्ग से हैं। मुझे लगता है कि इस नजरिए से उनकी सफलता को देखना उनके साथ न्याय करना नहीं होगा। उनकी सफलता इस मायने में अन्य पिछले दो की सफलता से विशिष्ट है कि उन्होंने पहले ही अटेम्प्ट में टॉप किया और इस सफलता को न्यूनतम आयु के अन्दर ही हासिल किया। यहां मैं टीना डाबी की चर्चा इसलिए कर रहा हूं, क्योंकि उनकी इस सफलता के बाद बहुत से स्टूडेन्ट तात्कालिक जोश में आकर न केवल पहले अटेम्प्ट में ही सफलता प्राप्त करने के बारे में सोचने लगे, बल्कि टॉप करने के बारे में भी सोचने लगे। मैं ऐसा बिल्कुल नहीं कह रहा हूं कि उनका सोचना गलत है। किया जा सकता है। आखिर टीना ने किया ही तो। लेकिन मैं यहां जो बात विशेष रूप से कहना चाह रहा हूं, वह यह कि इससे पहले कि हम अपना लक्ष्य निर्धारित करें, उस लक्ष्य को पाने के रास्ते और तरीके अख्तियार करें, क्या यह जरूरी नहीं है कि हम टीना डाबी के सच को भी जान लें?

आइए, अब हम टीना डाबी के सच को जानते हैं। और मुझे ऐसा लगता है कि टीना डाबी के इस सच को पूरी और अच्छी तरह जानने के बाद आप वस्तुतः उन सफल सभी प्रतियोगियों के सच को भी जान सकेंगे, जिन्हें आप सुनते हैं और जिनसे लाभ लेना चाहते हैं।

दोस्तो, जब हम फस्र्ट या सेकेन्ड अटेम्प्ट में सफलता की बात करते हैं, तो हमें इस अटेम्प्ट को अटेम्प्ट से न जोड़कर एक लम्बी और पूरी तैयारी के रूप में देखना चाहिए। आपकी परीक्षा को आपके अटेम्प्ट से कोई लेना-देना नहीं है। उसका लेना-देना तो सिर्फ इस बात से है कि आपकी तैयारी पूरी हुई है या नहीं हुई है; फिर चाहे वह फस्र्ट अटेम्प्ट में ही हो चुकी हो या आखिरी अटेम्प्ट तक भी न हुई हो। यह वह केन्द्र बिन्दु है, जो या यूं कह लीजिए कि यह वह आइना है, जिसमें आप सभी को अपने-अपने सच को देखना चाहिए।

यहाँ हम टीना डाबी की सफलता की बात कर रहे हैं। निश्चित रूप से उन्होंने पहली ही बार में यह सफलता पाई और उस स्तर की सफलता पाई, जिससे बेहतर और कुछ हो हीनहींसकता। सामान्य रूप में विद्यार्थी टीना डाबी के इस पहले अटेम्प्ट को उनकी एक साल की तैयारी के रूप में देख लेते हैं और फिर उसी तरह से अपने लिए योजना भी बना लेते हैं। जबकि इसके पीछे छिपी सच्चाई कुछ अलग ही है, जो इसके बिल्कुल विपरीत कहानी कहती है। आइये, यहां कहानियों के उन कुछ सूत्रों को पकड़ने की कोशिश करते हैं –

  • आपको मालूम ही होगा और यदि मालूम नहीं है, तो मालूम होना ही चाहिए, क्योंकि सच को जानने के लिए इसे जानना बहुत जरूरी है कि 10वीं कक्षा के बाद ही टीना ने यह फैसला कर लिया था कि उन्हें सिविल सर्वेन्ट बनना है। महत्वपूर्ण बात यह कि इसके बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई में जितने भी साल लगाये, उन सबकी दिशा केवल एक ही थी, और वह थी-सिविल सर्विस की तैयारी करना। यानी कि टीना ग्यारहवीं कक्षा से ही इसकी तैयारी करने लगी थी, जो परीक्षा देने के लगभग-लगभग सात-आठ साल तक जारी रही। यानी कि यह एक साल की तैयारी नहीं थी।आपको मालूम है कि जब आप सिविल सर्विस की तैयारी में लगते हैं, तब आपसे एनसीईआरटी की किताबों के बारे में कहा जाता है। यह भी कहा जाता है कि आप न्यूज सुनें, अखबार पढ़ें। तो क्या आपको नहीं लगता कि टीना डाबी ने ये सभी काम उसी समय शुरू कर दिए होंगे, जब वे ग्यारहवीं में पढ़ रही थीं।ऽ इससे भी बड़ी बात यह है कि टीना डाबी के माता-पिता अखिल भारतीय प्रतियोगी  परीक्षाओं से आये हुए अधिकारी थे, भले ही वह इंडियन इंजीनियरिंग सर्विस ही क्यों न हो। यानी कि वे सिविल सर्विस परीक्षा की प्रकृृति सेे परिचित थे। तो क्या आपको नहीं लगता कि टीना डाबी तो ग्यारहवीं से ही एक प्रकार के कोचिंग क्लास में रह रही थी और वह भी एक ऐसे सबसे विश्वस्त कोचिंग क्लास में, जिसका संचालन स्वयं उनके माता-पिता कर रहे थे? बचपन से ही मिलने वाले इस सही गाइड को भला कमतर कैसे आँका जा सकता है।
  • आपने यह भी पढ़ा होगा कि पहले टीना भोपाल में रहती थी। लेकिन जैसे ही यह निर्णय हुआ कि टीना को सिविल सेवा परीक्षा देना है, उनका परिवार दिल्ली चला गया, ठीक उसी तरह, जैसे श्रेया घोषाल में गायन की प्रतिभा और उत्सुकता को पहचानने के बाद उनका परिवार मुम्बई चला गया था। मैं यहां यह नहीं कह रहा हूं कि सबके लिए दिल्ली जाना जरूरी है। मैं यहां केवल यह कह रहा हूं कि यदि प्रतिभा को उपयुक्त वातावरण मिलता है, तो न केवल उसका रास्ता ही आसान हो जाता है, बल्कि सफलता भी थोड़ी अधिक सुनिश्चित हो जाती है। यहां सवाल दिल्ली का नहीं, बल्कि सवाल उन स्थितियों-परिस्थितियों का है,जिनसे हमें मदद मिलती है।
  • और इससे भी बड़ी बात तो यह कि टीना अपनी तैयारी बहुत अच्छे से कर सकें, इसके लिए उनकी मां ने अपनी इतनी बड़ी नौकरी तक को छोड़ देने में हिचक नहीं दिखाई। जाहिर है कि उन्हें अपने परिवार का दो सौ प्रतिशत सहयोग प्राप्त था और उनके रास्ते में कोई छोटा-सा भी स्पीड़ ब्रेकर या गढ्ढा था ही नहीं। ऽ टीना मेहनत करनी लगी और उस मेहनत ने उन्हें शुरू से ही एक अच्छा विद्यार्थी बनाए रखा। ऐसा किसी भी मेहनत करने वाले विद्यार्थी के साथ होता ही है। उनके साथ भी हुआ और हर उसके साथ आगे भी होगा, जो ऐसा करेंगे। इसका परिणाम यह हुआ कि उन्हें दिल्ली के सबसे अच्छे कॉलेज में से एक लेडी श्रीराम कॉलेज में एडमीशन मिल गया। इसे आप कोचिंग का एक अकादमिक संस्थान कह सकते हैं। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि उस कॉलेज से हर साल कई लड़कियां सिविल सर्विस में आती हैं। इसलिए वहां की पढ़ाई का माहौल काफी कुछ सिविल सर्विस के अनुकुल बन चुका है। निसंन्देह रूप से पढ़ाई तो दूसरे कॉलेज से बेहतर है ही।
  • अब हम बात करते हैं टीना के वैकल्पिक विषय की, जिसमें उन्हें बहुत ही अच्छे नम्बर मिले, इतने अच्छे नम्बर कि इन नम्बरों को ही उन्हें टॉपर बनाने का श्रेय देना गलत नहीं होगा। इनका आप्शनल सब्जैक्ट था-पॉलिटिकल साइन्स। इस विषय को उन्होंने केवल एम ए में ही नहीं पढ़ा था। दसवीं और ग्यारहवीं के दौरान एनसीआरटी में पढ़ चुकी थीं और फिर ग्रेज्यूएशन में भी उनका यह विषय रहा था। फिर पोस्ट ग्रेज्यूएशन में तो उन्होंने इसे पढ़ा ही। इस विषय का चयन वे तभी कर चुकी थीं, जब उन्होंने सिविल सर्वेन्ट बनने का फैसला किया था।

दोस्तो, मुझे नहीं मालूम कि आप सब मेरी इस बात से कितने सहमत हो पाएंगे, लेकिन मुझे लगता है कि मैंने यहां जो कुछ तथ्य बताये हैं, इन तथ्यों को जाने बिना आप टीना डाबी के फस्र्ट अटैम्प्ट में टॉप कर जाने की बात के सच को नहीं जान सकेंगे। केवल टीना डाबी के ही नहीं, बल्कि किसी के भी सच को नहीं जान सकेंगे, चाहे फिर वे अतहर आमीर हों या फिर अर्तिका शुक्ल। मेरे यह सब कहने का मतलब केवल इतना है कि’-

  • यू-ट्यूब पर आप जितने लोगों को सुन रहे हैं, वे सब झूठ नहीं बोल रहेे हैं। वे आपको बरगला भी नहीं रहे हैं। आप उन्हें सुनिए, ध्यान से सुनिए और उन पर विश्वास भी कीजिए।
  • लेकिन इस बात की कतई उपेक्षा मत कीजिए कि यह उनका अपना सच है, केवल उनका अपना सच। इसे आप अपना सच मानने की गलती न करें।
  • इन सबको सुनें, समझें और उनमें फिर अपने सच की तलाश करें, ठीक उसी पैटर्न पर, जिसकी चर्चा मैंने अभी टीना डाबी के संदर्भ में की है। आइये, अब मैं थोड़ी सी चर्चा इस बात की करता हूं कि वे कौन-कौन से बिन्दु होंगे, जिनके आधार पर आप अपने सच की तलाश करेंगे।सबसे महत्वपूर्ण बात होती है आपकी अपनी शैक्षणिक पृष्ठभूमि। इसका अर्थ है कि –
    *आप किस शाखा के विद्यार्थी रहे हैं- विज्ञान, वाणिज्य, आर्टस, मेेडीकल साइन्स, इंजीनियरिंग आदि-आदि।
    * आप ग्रेज्यूएट हैं या पोस्ट ग्रेज्यूएट।
    *आप किस तरह के स्टूडेन्ट रहे हैं-बहुत अच्छे, अच्छे या सामान्य। यहां मैं यह स्पष्ट कर दूं कि इसका अर्थ आप यह न लगा लें कि सिविल सर्विस के लिए बहुत अच्छा स्टूडेन्ट होना एक अनिवार्य शर्त है। यदि ऐसा होता तो यूपीएससी उसे आवश्यक योग्यता वाले तत्वों में शामिल कर चुकी होती। यहां मेरा मतलब केवल इस बात से है कि यह आपकी तैयारी कराने वाले सच में से एक महत्वपूर्ण सच है। इतना तो हमें मानना ही पड़ेगा कि जो विद्यार्थी शुरू से ही बहुत अच्छा या अच्छा रहा है, उसमें कुछ न कुछ तो विशिष्ट गुण रहे ही होंगे; जैसे कि – पढ़ाई में मन लगना, अधिक मेहनत करना, अपने विषय को समझना, भाषा का अच्छा होना, चीजों को याद रखना, उत्तर लिखने की जानकारी होना आदि-आदि।
  • आपको अपने जीवन की जो परिस्थितिगत सच्चाइयां हैं, उनकी भी उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। आप देखिए कि इस परीक्षा की तैयारी के लिए जो-जो आवश्यकताएं सामान्य तौर पर होती हैं, उनमें से आप किन-किन आवश्यकताओं को पूरा कर सकते हैं। याद रखिए कि यहां मैं ‘‘अनिवार्य आवश्यकताओं’’ की बात कर रहा हूं, केवल उन आवश्यकताओं की, जिनका कोई विकल्प नहीं होता। और मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि इन ‘‘अनिवार्य आवश्यकताओं’’ में लगभग 80 प्रतिशत आवश्यकताएं वे होती हैं, जो पूरी तरह से आप पर निर्भर करती हैं, और पूरी तरह से आपके ही नियंत्रण में होती हैं। इनका ज्यादातर संबंध आपकी मानसिक मजबूती, मनोविज्ञान और आचरण से होता है, जिन्हें  दुर्भाग्यवश आप समझ नहीं पाते। आप अन्दर तलाश करने की बजाए उनकी तलाश बाहर करने लगते हैं और यहींं सब कुछ गड़बड़ हो जाता है।
  • मैं यहां यह भी बताना चाहूंगा कि आप टीना डाबी की परिस्थितियों को कसौटी मानकर कभी मत चलें। वह एक सर्वोत्तम परिस्थिति थी, जो बहुत कम लोगों को मिलती है अन्यथा 75 प्रतिशत सफल विद्यार्थी तो वे होते हैं, जिन्होंने अपनी विषम परिस्थिति को ही अपनी सफलता का आधार बनाया होता है। ऐसी बहुत सी सच्ची कहानियां आप जानते ही होंगे। मुझे ऐसा लगता है कि परिस्थितियों वाला यह बिन्दु कुछ ऐसा भ्रमात्मक तथ्य है, जिसका इस्तेमाल अधिकांश विद्यार्थी अपनी-अपनी असफलताओं को जस्टिफाई करने के लिए करते हैं। अन्यथा यह उतनी बड़ी बाधा नहीं है, मेडीकल साइन्स की पढ़ाई की तरह कि जो आपसे बहुत अधिक संसाधनों की मांग करती हो। मैं इसे सिविल सर्विस परीक्षा की सबसे बड़ी खूबी, इसकी सबसे बड़ी खूबसूरती और इसकी सबसे बड़ी ताकत भी मानता हूं, जो इसे सचमुच में लोकतांत्रिक भी बना देती है। लोकतांत्रिक इस मायने में कि इसे वह कोई भी कर सकता है, जो इसे सचमुच में करना चाहता है, जिसमें आप भी शामिल हो सकते हैं।

मित्रो, ये कुछ पैरामीटर्स हैं, जिनके आधार पर आपको अपने बारे में निर्णय लेने चाहिए।

क्रमशः   …………..

NOTE: This article by Dr. Vijay Agrawal was first published in ‘Civil Services Chronicle’.

 

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