आई.ए.एस. की तैयारी के तरीके की तलाश-1

Afeias
16 Jul 2017
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विशेषकर पिछले तीन सालों से सोशल मीडिया ने सिविल सर्विस की तैयारी करने के लिए आप सबको एक गजब का प्लेटफार्म उपलब्ध कराया है। आप सब यू-ट्यूब और फेसबुक से बहुत अच्छी तरह परिचित हैं और खुशी की बात है कि उन सबका जमकर इस्तेमाल भी कर रहे हैं। आप सब उस पीढ़ी के लोग हैं, जब सीधे-सीधे आप सिविल सर्विस एक्जाम की फर्स्ट पोजिशन वाले स्टूडेन्ट से लेकर अन्य दूसरे विद्यार्थियों तक की तैयारियों के तरीकों को उन्हीं के मुँह से सुन और जान रहे हैं। इससे बेहतर बात  भला और क्या हो सकती है कि सिविल सर्विसेज का टॉपर सीधे-सीधे आपको बता रहा हो कि उसने अपनी तैयारी किस रणनीति के अंतर्गत की थी। साथ ही यह भी कि उसने कौन-कौन सी किताबें पढ़ीं, किस-किसकी मदद ली, कितने-कितने घंटे पढ़ाई की, किस तरीके से उत्तर लिखे और साथ ही यह भी कि उसकी क्या-क्या कमजोरियां और कमियाँ रहीं।

इसकी शुरूआत तीन साल पहले के टॉपर गौरव अग्रवाल से हुई और उसके बाद से अलग-अलग प्लेटफार्म पर इन सफल स्टूडेन्टस् को बुलाकर तैयारी करने वाले विद्यार्थियों के साथ सीधे-सीधे संवाद कराये जाने लगे। फिर यह सिलसिला कुछ इतना अधिक बढ़ा कि अलग-अलग क्षेत्रों से अलग-अलग भाषाओं में सफल स्टूडेन्टस् को भी आपको प्रत्यक्ष रूप से सुनने का मौका मिला या फिर सोषल मीडिया के माध्यम से आप उन्हें सुन सके। अच्छी बात यह भी है कि ये सफल विद्यार्थी अपने तैयारी के तरीकों के अन्तर्गत केवल जोश-खरोश भरने वाले प्रेरणात्मक उद्बोधन तक सीमित न रहकर, उन तकनीकों के बारे में भी बताते हैं, जिनसे आपको सीधे-सीधे मदद मिलती है। ऐसे बहुत से प्रष्नों के आपको उत्तर मिल जाते हैं, जो लम्बे समय से आपको परेषान किए हुए थे और उसके बारेे में जो उत्तर मिलते भी थे, वे आपको संतुष्ट करने के लिए पर्याप्त नहीं थे। किन्तु अब; जबकि आप उन सबके उत्तर एक सफल प्रतियोगी के मुंह से सुन रहे हैं, तो सन्देह करने का कोई कारण शेष नहीं रह जाता।

लेकिन मित्रो, मेरा यह लेख आपको केवल यह सूचना मात्र देने के लिए नहीं है। बल्कि यह बताने के लिए है कि सोशल मीडिया के माध्यम से आप जो कुछ भी सुन, जान और समझ रहे हैं, वे निष्चित रूप से सच तो हैं, लेकिन वस्तुतः यह उनका अपना सच है। सबका सच नहीं। यहां बात आपको थोड़ी अटपटी लग रही होगी। लेकिन दरअसल यह अटपटी है नहीं, क्योंकि सिविल सर्विस की तैयारी करने वाले एक स्टूडेन्ट की समझदारी इस स्तर की तो होनी ही चाहिए कि वह उसी को सच न मान ले, जो कहा जा रहा है, बल्कि उसे वह केवल सच जानने का माध्यम मानते हुए उसमें से सच की तलाश करे। मित्रो, केवल इसी उद्देष्य से मैं यह लेख लिख रहा हूं, ताकि आपको इन सबके बारे में जो जानकारियाँ मिल रही हैं, आप उनका अपने लिए अपने हिसाब से सही-सही इस्तेमाल करके एक दिन उस स्थिति में पहुंच जाएं कि लोग आपको भी उसी तरह यू ट्यूब पर सुनें, जिस तरह आप अभी दूसरों को सुन रहे हैं।यू ट्यूब पर सिविल सर्विस की तैयारी से संबंधित जो भी वक्तव्य, सलाह और साक्षात्कार आ रहे हैं, उनके बारे में मैंने अपने बहुत से नौजवान साथियों से बातचीत की है। मेरे लिए यह आष्चर्य की बात नहीं थी कि बजाय इसके कि वे यह सब सुनने के बाद परीक्षा की तैयारी के बारे में और अधिक स्पष्ट होते, वे भ्रमित हो चुके थे।

ऐसा नहीं है कि उन्हें भ्रमित किया गया था। ऐसा भी नही है कि जिन अपने नौजवान सार्थियों को उन्होंने सुना था, उन्होंने कुछ भी गलत बताया था। इसका कारण केवल यह था कि जितने लोगों ने भी अपनी बातें रखी थीं, उन सबने सिविल सर्विस की तैयारी करने के बारे में आम तरीकों की चर्चा न करके उन तरीकों की चर्चा की थी, जो उन्होंने अपने लिए अपनाये थे। उन्हें ऐसा करना ही था, क्योंकि यही तो उनकी सबसे बड़ी ताकत थी और उनकी विष्वसनीयता का सबसे बड़ा आधार भी। जब कोई भी स्टूडेंट सफल व्यक्ति के मुंह से सिविल सर्विस की तैयारी करने के बारे में कोई भी सलाह सुनता है, तो स्वाभाविक रूप से उसे उनकी सलाह पर यकीन होता ही है, क्योंकि कहने वाला उस रास्ते की सच्चाई को प्रमाणित कर चुका है। तो यहां सवाल यह है कि फिर वह भ्रमित क्यों हो रहा है?

दरअसल, भ्रमित होने का मूल कारण इस तथ्य में निहित है कि सिविल सर्विस की तैयारी का अपना कोई बना-बनाया ऐसा राजमार्ग नहीं है कि उसे दिखाया जा सके और दावे के साथ यह कहा जा सके कि यही एकमात्र रास्ता है, जिस पर चलकर तुम सफलता की मंजिल तक पहंुच सकोगे। हां, कुछ मोटी-मोटी बातें तो बताई जा सकती हैं, लेकिन उन छोटी-छोटी पगडंडियों को चिन्हित नहीं किया जा सकता, जो तैयारी करने वाले हर स्टूडेन्ट से जुड़ी होती हैं। संकट यहीं खड़ा होता है। जो सफल स्टूडेन्ट तैयारी के अपने तरीके के बारे में बता रहा है, मूलतः वह अपनी बात कर रहा है। यहां वह शत-प्रतिशत सही है। जब वह अपनी बात करता है, तो इसकी सच्चाई यह है कि वह अपनी पगडंडी के बारे में बता रहा है। यह उस तरीके के बारे में बता रहा है, जो उसने अपने लिए अपनाया। सुनने वाले स्टूडेन्ट उसके इस पगडंडी को ही राजमार्ग समझकर उसके कथन को अपने लिए ब्रह्म वाक्य की तरह ले लेते हैं। यहां मामला कुछ वैसा ही हो जाता है, जैसे कि मैं किसी दूसरे के सिर की टोपी को अपनी ही टोपी मानकर अपने सिर पर रख लूं और बाद में या तो टोपी की षिकायत करूं कि वह छोटी या बड़ी है, या फिर अपने या उसके सिर से शिकायत करूं कि तुम्हें टोपी पहननी नहीं आ रही है।

दोस्तो, संकट केवल यहीं तक सीमित नहीं है। सच पूछिए तो संकट केवल यहीं तक सीमित होता, तो मेरी चिन्ता इतनी बड़ी नहीं होती कि मैं उसके प्रति सतर्क करने की दृष्टि से अलग से एक लेख लिखूं। संकट उस समय कई गुना बढ़कर एक प्रकार से महासंकट में तब्दील हो जाता है, जब आप एक ही साल में सेलेक्ट हुए दो प्रतियोगियों को अलग-अलग मंचों से एक-दूसरे के विरोध में बयान देते हुए देखते हैं। यहां कोई बहस नहीं हो रही है। दोनों अलग-अलग मंचों से बातें कर रहे हैं। यहां आपको समझना केवल यह होगा कि वे सिर्फ और सिर्फ अपनी बातें कर रहे हैं। लेकिन जब इन दोनों की बातों को आप एक साथ आमने-सामने रखकर देखते हैं, तो ऐसा लगता है मानों कि एक का मुंह पूर्व की ओर है तो दूसरे का मुंह पश्चिमी की ओर। परीक्षा की तैयारी करने के बारे में बताए गए दोनों के तरीके एक-दूसरे के बिल्कुल विरूद्ध हैं। संकट उस समय और ज्यादा बढ़ जाता है, जब आपको पता लगता है कि इन दोनों की रैंकिंग भी एक-दूसरे के बिल्कुल आसपास ही है। यदि रैंकिंग में बहुत अधिक फर्क होता, तो शायद आप तर्क के द्वारा अपने-आपको समझा लेते कि अच्छी रैंकिंग वाले का बताया हुआ तरीका ज्यादा बेहतर है। लेकिन यहां तो आपके हाथ में वह कसौटी भी नहीं है। तो फिर आप किसे सही मानेंगे?मैं अब आपको कुछ ऐसे ही तरीकों के उदाहरण देने जा रहा हूं, जिन्हें आप यू ट्यूब पर जाकर वैरीफाई कर सकते हैं। मैं यहां उनके नाम नहीं लूंगा, बावजूद इसके कि मुझे उनके नाम मालूम हैं।

मैं यहां नाम लेना इसलिए उपयुक्त नहीं समझता, क्योंकि मुझे उनके वक्तव्यों के प्रति कोई सन्देह नहीं है। वे जो भी कह रहे हैं, सही कह रहे हैं और सौ प्रतिशत सही कह रहे हैं। इसलिए हमारा संकट इस बात का नहीं है कि वे सब एक ही परीक्षा की तैयारी के लिए अलग-अलग बातें क्यों कह रहे हैं। हमारा संकट यहां केवल यह है कि हम इन अलग-अलग तरीकों को सुनने और जानने के बाद कैसे इनका तर्कपूर्ण इस्तेमाल करते हुए अपनी सफलता को सुनिष्चित करें। तो आइये, कुछ इसी तरह के वक्तव्यों को देखते हैं-

  • एक सफल प्रतियोगी ने बहुत जोर देकर यह बात कही है कि प्रारंभिक परीक्षा की तैयारी के लिए किसी तरह की मेहनत की जरूरत नहीं है। आप केवल बीस टेस्ट पेपर साल्व कर लीजिए, तैयारी हो जाएगी। (यहां मुझे यह बात स्पष्ट कर देनी चाहिए कि मैं यहां उनकी ओर से जो भी कह रहा हूं, उसमें शब्द मेरे हैं, अर्थ उनके।)।
  • इन्हीं से कुछ रैंक नीचे आने वाले स्टूडेन्ट ने उतने ही जोरदार तरीके से यह बात कही कि प्री की तैयारी बहुत ही अच्छे तरीके से की जानी चाहिए। उसे हल्के-फुल्के तरीके से लेकर उसके प्रति कोई ढ़िलाई न बरतें।
  • अब आप पिछले साल के एक सफल प्रतियोगी; जो 2015 में आयएएस में आये, लेकिन 2014 में इंडियन रेल्वे ट्रेफिक सर्विस में थे, की राय सुनिये। यू-ट्यूब पर उन्होंने अपने नौजवान साथियों को सलाह दी थी कि यह परीक्षा बहुत ही अनिष्चित है। इसलिए किसी भी स्टेज की तैयारी में कोई ढिलाई नहीं देनी चाहिए। उन्होंने बताया था कि हम लोग लगभग 60 प्रोबेशनर्स इंडियन रेल्वे ट्रेफिक सर्विस की ट्रेनिंग कर रहे थे। हममें से लगभग सभी फिर से आयएएस के लिए परीक्षा में बैठे और उन बैठने वालों में से लगभग आधे प्रोबेशनर्स ही प्री क्वालिफाई कर पाये। यहां ध्यान देने की बात यह है कि क्वालिफाई न करने वाले ये वे प्रतियोगी हैं, जिन्होंने इसके पहले ग्रूप ए सर्विस में स्थान बना लिया था।दूसरों की राय इनके बीच कुछ भी हो सकती है। मैंने यहां चरम स्थिति के दो छोर आपके सामने रखे हैं और ये वक्तव्य यू-ट्यूब पर उपलब्ध हैं।

मित्रों, बात केवल प्री की तैयारी तक ही सीमित नहीं है। इस तरह के भ्रम की स्थिति सामान्य अध्ययन के अलग-अलग चारों पेपर्स के बारे में है, निबन्ध के बारे में है, वैकल्पिक विषयों के चयन के बारे में है, अटेम्प्ट के बारे में है, किताबों के बारे में है, अखबार और मेग्जिन्स के बारे में है और इसके बारे में भी है कि कोचिंग करनी चाहिए या नहीं करनी चाहिए और यदि करनी चाहिए, तो कहां से करनी चाहिए। मैं अब इन तथ्यों की डिटेल्स में नहीं जाना चाहता। ऊपर मैंने ‘प्री’ की तैयारी के बारे में दो बिल्कुल विपरीत छोर आपको दिखाये हैं। लगभग इसी तरह के विपरीत छोर आपको उन सबके बारे में भी देखने को मिल जाएंगे, जिनके बारे में मैंने चर्चा की है।

कुछ स्टूडेन्ट सिविल सर्विस की तैयारी के लिए छः महीने के वक्त को पर्याप्त बताते हैं, (2015 के एक सफल प्रतियोगी के विचार) तो कुछ का यह भी वक्तव्य होता है कि वह पिछले तीन सालों से अपने मकान के फर्स्ट फ्लोर से नीचे ही नहीं उतरा (चार-पांच साल पहले के एक टॉपर का वक्तव्य)। कुछ के लिए केवल कोचिंग इंस्टीट्यूट के नोट्स पर्याप्त होते हैं, तो कुछ के पास किताबों की बहुत लम्बी लिस्ट होती है। ऐसे भी सफल प्रतियोगी हैं, जिन्होंने कहीं कोचिंग ज्वाइन नहीं की। हां, थोड़ी बहुत गाइडेन्स जरूर लेते रहे। ये भी सफल हुए। साथ ही ऐसे सफल प्रतियोगियों की संख्या भी कम नहीं है, जिन्होंने अलग-अलग विषयों के लिए अलग-अलग कोचिंग से पढ़ाई की।

जहां तक ऑप्शनल सब्जैक्ट का सवाल है, तो वहां तो आपको एक गुलदस्ता ही दिखाई देगा। आपको यह जानकर आश्चर्य नहीं बल्कि खुशी होनी चाहिए कि सामान्यतया मैरिट में शुरू के जो बीस सफल प्रतियोगी होते हैं, उनके वैकल्पिक विषयों की संख्या 11 से 14 के बीच होती है। मैंने ‘खुशी’ शब्द का इस्तेमाल इसलिए किया है, ताकि आपको यह भरोसा हो सके कि आप चाहे कोई भी विषय ले रहे हों, उसी विषय में इतनी ताकत होती है कि वह आपको फर्स्ट 20 तक पहुंचा देगी, बषर्ते कि आप उसकी ताकत का इस्तेमाल अपनी ताकत के साथ कर सकें। अन्यथा कुछ नहीं होगा।

क्रमशः   …………..

NOTE: This article by Dr. Vijay Agrawal was first published in ‘Civil Services Chronicle’.

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