अपने ही उत्तर को जाँचना-3

Afeias
09 Jul 2017
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अब मैं इस बात पर आता हूँ कि उत्तर को जांचा कैसे जाए और वह भी स्वयं के उत्तर को स्वयं के ही द्वारा-

  1. प्रश्न को पढ़ने के बाद बहुत इत्मीनान के साथ उत्तर लिखें। अब आप इस लिखे गए उत्तर को पढ़ें। उत्तर को पढ़ने के बाद प्रश्न को फिर से पढ़ें। अब एक बार उत्तर को फिर से पढ़ें। निश्चित रूप से यह थोड़ी ऊबाउ होगी, लेकिन जरूरी है।
    यह सब करने के बाद थोड़ी देर के लिए इत्मीनान से यह सोचें कि जो प्रश्न पूछा गया था, क्या उसका उत्तर पढ़ने के बाद आपको उसकाउत्तर मिल गया है? इसे व्यावाहारिक स्तर पर यूं समझने की कोशिश करें कि जब आप किसी से भी कोई प्रश्न करते हैं, तो वह उसका जवाब देता है। उसके जवाब से आप कितने संतुष्ट हैं, यह इस बात से पता चलता है कि आप उसी प्रश्न को स्पष्ट करने के लिए उससे क्या प्रश्न पूछ रहे हैं। यदि आपको ऐसा करना पड़ रहा है, तो यह मान लें कि उसने जो उत्तर दिया था, वह प्रश्न का सम्पूर्ण उत्तर नहीं था।

    यहाँ दो स्थितियाँ हैं। पहला तो यह कि आपने उसका उत्तर सुना और उत्तर सुनने के बाद उसके उत्तर से ही कोई नया प्रश्न किया।  यदि स्थिति यह है, तो यह इस बात का प्रमाण है कि उसके उत्तर से आपको संतुष्टि मिल गई है। लेकिन यदि आप अपने पहले प्रश्न के ही आधार पर दुबारा प्रश्न पूछ रहे हैं, तो साफ है कि बात बनी नहीं है। मैंने यहाँ इसे जानबूझकर दुहराया है, ताकि यह तथ्य आपको बहुत अच्छी तरह स्पष्ट हो सके। इसका स्पष्ट होना जरूरी है।

    आपने इससे पहले भी बहुत से उत्तर लिखे हैं। मौखिक रूप से उत्तर दिए भी हैं। लेकिन यहाँ मेरे इस प्रश्न पर थोड़ा विचार करें कि क्या आपने कभी भी अपने दिए गए उत्तर या लिखे गए उत्तर की गुणवत्ता और सम्पूर्णता के बारे में सोचा है? क्या आपने कभी इस बात की समीक्षा की कि मुझे इसके बदले में यह कहना चाहिए था या यह लिखना चाहिए था? हाँ, इतना जरूर है कि परीक्षा हॉल से निकलने के बाद हम सब यह तो सोचते हैं कि ‘‘यह छूट गया। याद नहीं आया। लिख दिया होता, तो उत्तर और अच्छा बन गया होता।’’
    लेकिन दिमाग में शायद ही कभी यह बात कौंधती हो कि अमुक को लिखने की जरूरत नहीं थी। या अमुक के स्थान पर अमुक लिखना चाहिए था। या पूछा यह गया था और मैं तो लिखकर कुछ और ही आ गया। हाँ, कुछ बहुत ही स्पष्ट गलती हो जाए, तो बात अलग है। लेकिन जिस तरह के अस्पष्ट प्रश्न सिविल सर्विस की परीक्षा में पूछे जाते हैं, वहाँ अपनी इस तरह की गलतियों को विद्यार्थी पकड़ नहीं पाते, क्योंकि वे कभी उस दृष्टि से सोचते ही नहीं हैं। अध्ययन और परीक्षा के बीच इसके बारे में कभी कोई बात ही नहीं की जाती है।

  2. आप अपने उत्तर को केवल पढ़ें ही नहीं, बल्कि पढ़ने के बाद उसे उस टॉपिक से मिलाएं भी। उस पर विचार करें कि क्या इसे इससे भी अच्छे तरीके से लिखा जा सकता था। यहाँ मैं इसके विस्तार में नहीं जाना चाहूँगा। इसी अध्याय में अभ्यास करने की चर्चा करते समय मैं इसका उल्लेख कर चुका हूँ। वैसे मैं यह बात कहना चाहूँगा कि यदि आप लिखने का अभ्यास करेंगे, तो वह अभ्यास आपको मांज-मांजकर इतना चमका देगा कि कॉपी जांचने की क्षमता आपमें अपने आप ही आ जाएगी। फिर यह संकट रह ही नहीं जाएगा।
  3. आप इसी अध्याय में दिए गए एक स्टूडेन्ट की घटना को याद कीजिए। वहाँ से आपको अपने उत्तर को चैक करने का एक अलग सूत्र प्राप्त होगा। सूत्र यह कि उत्तर को पढ़ने के बाद आप उस उत्तर के लिए एक प्रश्न तैयार कीजिए, जैसा कि उस घटना में मैंने लिखे गए निबन्ध का शीर्षक निकालने के लिए कहा था। आप इसी को उत्तर पर लागू कर दीजिए। अब जो प्रश्न तैयार हुआ है, उसे उस प्रश्न से मिलाइए, जिस मूल प्रश्न को आधार बनाकर यह उत्तर लिखा गया था। आपको तुरन्त आभास हो जाएगा कि आपका उत्तर कितना सही है और कितना गलत है।
  4. इसमें थोड़ा मनोविज्ञान का सहारा लेना पड़ेगा। जैसा कि मैं पहले लिख चुका हूँ, ‘‘विद्यार्थी वह नहीं लिखते हैं, जो पूछा जाता है। बल्कि वे वह लिखते हैं, जो वे जानते हैं।’’ अब, जबकि आप अपने ही लिखे उत्तर को जाँच रहे हैं, उसे थोड़ा इस पैमाने पर भी जाँचने की कोशिश करें कि कहीं ऐसा तो नहीं कि यहाँ भी कुछ वही हुआ है, जिसकी अभी मैं बात कर रहा था। यानी कि आप उसके बारे में जो- जो जानते थे, लिख गए हैं। आपको तुरन्त पता चल जाएगा कि आपने ऐसा किया है या नहीं किया है। और यदि ऐसा किया होगा तो निश्चित जानिए कि आपका उत्तर अच्छा नहीं हो सकता।
  5. अब एक अंतिम उपाय केवल यही बचता है कि आप अपने उत्तर की जाँच किसी अन्य से करवाएं। लेकिन सवाल यहाँ यह होगा कि वह अन्य कौन हो। मैं यहाँ उस अन्य की सूची तो आपको उपलब्ध नहीं करा सकता। हाँ, इतना जरूर इशारा कर सकता हूँ कि उस अन्य के पास दो गुण अवश्य होना चाहिए। पहला यह कि जिस विषय से संबंधित प्रश्न आप उसे दिखा रहे हैं, उसके पास उस विषय का ज्ञान हो। दूसरा यह कि उसे सिविल सेवा परीक्षा का भी थोड़ा-बहुत अनुभव हो।मैं जानता हूँ कि दूसरे नम्बर के गुण वाले व्यक्ति को ढूंढना आपके लिए ही नहीं, किसी के लिए भी बहुत कठिन, लगभग असंभव है। तो ऐसे में आप क्या करेंगे? सच पूछिए तो मेरे पास भी इसका कोई जवाब नहीं है। कुछ समस्याएं ऐसी होती हैं, जिनके हल तो होते हैं, लेकिन हमारे लिए नहीं। शायद यह समस्या कुछ इसी प्रकार की समस्या है। लेकिन एक बात यहाँ मैं आपसे कह सकता हूँ कि यदि आपको उसी विषय के कोई अच्छे अनुभवी प्रोफेसर मिल जाएं, तो वे इसमें आपकी मदद कर सकते हैं। कम से कम आपको अपने उत्तर के स्तर के बारे में संकेत तो प्राप्त हो ही सकता है और इस तरह के संकेत का मिल जाना भी कोई छोटी बात नहीं होगी।
  6. एक संभावना और है। लगभग-लगभग प्रत्येक जिले में सिविल सर्विस को क्वालीफाइ किए हुए एक-दो युवा अधिकारी रहते ही हैं। यदि आप उनके पास जाकर अपनी इस समस्या के समाधान के लिए बात करने की हिम्मत जुटा सकें, तो वे इसमें आपकी मदद कर सकते हैं। यहाँ मैंने जानबूझकर ‘‘हिम्मत’’ शब्द का प्रयोग किया है। हालांकि मुझे इसका प्रयोग करना नहीं चाहिए था, क्योंकि इसकी कोई ऐसी जरूरत होती नहीं है। लेकिन जब आप उनके पास जाने की सोचेंगे, तो आपके दिमाग को इसकी जरूरत महसूस होगी। इसलिए मैंने पहले से ही आपको इस स्थिति के बारे में सतर्क कर दिया है। लेकिन सच्चाई यह है कि हिम्मत की बिल्कुल जरूरत नहीं होती। केवल आपको अपने संकोच को तोड़ना होगा। साथ ही अपनी जड़ता से निकलना होगा। मैं बताना चाहूँगा कि इन नौजवान सफल प्रतियोगियों को कम से कम शुरूआत में तो दूसरों की मदद करके खुशी ही होती है। हाँ, आपको उन्हें थोड़ा इस मायने में मार्जिन देकर चलना होगा कि उनकी व्यस्तता के साथ समझौता करें। यदि वे एक-दो बार टाल भी रहे हैं, तो हार न मानें। उनका पीछा न छोड़ें, जब तक कि वे आप पर नाराज होकर सीधे-सीधे आपकी मदद करने से इंकार न कर दें। ज्यादातर मामलों में आपको सफलता मिलेगी ही।

मित्रो, मैंने बहुत डिटेल में इस अध्याय को लिखा है। मुझे उम्मीद है कि इसको पढ़ने के बाद सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने के प्रति आपकी धारणा जरूर कुछ इस तरीके से बदलेगी कि आप उत्तरो लिखने के लिए जरूर प्रेरित होंगे। फिर आप पाएंगे कि किस प्रकार से उत्तर लिखने के इस अभ्यास ने आपमें एक नया आत्मविश्वास भर दिया है। यह आत्मविश्वास आपकी सफलता के लिए संजीवनी बूटी का काम करेगा।

चलते-चलते इसी संदर्भ में मैं आपको एक अन्य सत्य भी बता हूँ। मान लीजिए कि आपने कुल तीस प्रश्नों के अभ्यास किए। इनमें से चार-पांच प्रश्न आ गए। यही चार-पांच प्रश्न आपको दूसरों से आगे ले जाएंगे। यह तो हुई एक बात।

दूसरी बात जो इससे कम महत्वपूर्ण नहीं है, वह यह कि यदि आपने प्रश्नों से संबंधित सही टॉपिक का चयन किया है, तो आपके ये लिखे हुए उत्तर आपकी एक अलग तरीके से मदद करेंगे। आपने इस बात का अनुभव तो किया ही होगा कि जब भी आप कोई उत्तर लिखते हैं, तो वह पूरा का पूरा टॉपिक आपके दिमाग में आ जाता है। यूं कह लीजिए कि मानसिक स्तर पर एक प्रकार से उस टॉपिक का रिवीजन हो जाता है। परीक्षा में प्रश्न उसी तरह का तो नहीं आया है, जिसका अभ्यास आपने किया था लेकिन उस टॉपिक से जरूर आ गया है। आप देखेंगे कि उस टॉपिक पर आधारित परीक्षा में इस उत्तर को लिखने में वह अभ्यास आपकी अगुवाई करेगा और उसका यही नेतृत्व आपको दूसरों से आगे पहुँचा देगा। आप जानते ही हैं कि प्रतियोगी परीक्षा का सारा का सारा खेल या कह लीजिए की सारी की सारी लड़ाई केवल इसी बात की ही तो है कि कौन सबसे पहले पहुँचता है।

NOTE: This article by Dr. Vijay Agrawal was first published in ‘Civil Services Chronicle’.

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