अखबारों से कैसे निपटें-2

Afeias
19 Apr 2014
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क्या-क्या पढ़ें?

अखबार का भारी-भरकम आकार और उसमें छपने वाली खबरों की भरमार स्टूडेन्ट्स के दिमाग में कन्फ्यूजन पैदा करने के लिए पर्याप्त होते हैं। जैसे कोई बहुत भूखा व्यक्ति जल्दी-जल्दी में ढेर सारा खा जाना चाहता है- भले ही बाद में उससे उसका पेट खराब हो जाए- लगभग वही व्यवहार स्टूडेन्ट्स अखबारों के साथ करते हैं। दरअसल, वे यह समझ नहीं पाते कि अखबार एक ऐसा फोरम होता है जहाँ सबके लिए अपनी-अपनी तरह की गुंजाईश रहती है। उसमें रिक्शा चलाने वाले से लेकर देश चलाने वाले तक के लिए खबरें होती हैं, लेकिन सारी खबरें सबके लिए नहीं होतीं। प्रत्येक को अपने-अपने हिसाब से अपने लिए खबरों का चुनाव करना पड़ता है, और यही बात आप पर भी लागू होती है।

अब जबकि आप अखबार को केवल समाचार जानने के लिए नहीं पढ़ रहे हैं, अब जबकि आप अखबार को केवल टाइमपास करने या मनोरंजन के लिए नहीं पढ़ रहे हैं, तो ज़ाहिर है कि आपको जानना चाहिए कि फिर आप पढ़ किसलिए रहे हैं। यदि आप सचमुच में आई.ए.एस. की तैयारी करने के लिए अखबार पढ़ रहें हैं, तो आपको दो फैसले तुरन्त कर लेने चाहिए।
पहला फैसला यह कि इसमें जो कुछ भी छपा है, वह सब आपके काम का नहीं है। तो फिर काम का है क्या? यह मैं आपको बतलाऊँगा, लेकिन यदि आप तैयारी करने में नए हैं तो इसे जानने में थोड़ा वक्त लगेगा। यदि आप मेरे बताए हुए तरीके को अपनाएँगे तो धीरे-धीरे तीन महीने में आप इसमें दक्ष हो जाएँगे। यहाँ आपको एक फैसला अपने दिमाग को दुरुस्त करने के लिए करना होगा। अपने दिमाग को इस भय से मुक्त कीजिए कि ‘पता नहीं क्या पूछ लिया जाएगा’। यदि आप डरेंगे, तो चयन करने की आपकी दृष्टि बिखर जाएगी। आप फोकस्ड होकर चुनाव नहीं कर सकेंगे, और यही आपकी असफलता का कारण बन जाएगा।
अब मैं आपको बताता हूँ कि अखबार में क्या-क्या पढऩा चाहिए।

(i) मुख-पृष्ठ

किसी भी अखबार का मुख-पृष्ठ सबसे महत्वपूर्ण खबरों वाला पृष्ठ होता है, चाहे वह अखबार कितना भी बेकार क्यों न हो। पिछले दिन की हर क्षेत्र की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं को यहाँ जगह दी जाती है- फिर चाहे वह बहुत छोटी-सी जगह ही क्यों न हो। आप चाहें या न चाहें, आपको अखबार के मुख-पृष्ठ को पढऩा ही है और ध्यान से पढऩा है। इससे आपके दिमाग में पिछले दिन की घटनाओं का पूरा एक मैप उभर जाएगा। साथ ही आपको इस बात का भी अंदाज़ा हो जाएगा कि कौन-सी घटनाएँ ऐसी हैं जो आगे चलती रहेंगी तथा कौन-सी ऐसी घटनाएँ हैं, जिन पर लेख लिखे जा सकते हैं।
इसी से जुड़ा होता है अखबार का अंतिम-पृष्ठ। मुख-पृष्ठ के बाद यदि कुछ महत्वपूर्ण घटनाएँ बच जाती हैं तो उन्हें ज्य़ादातर अखबार अपने अंतिम पृष्ठ पर जगह दे देते हैं, लेकिन यह कोई नियम नहीं है। यह आपके द्वारा पढ़े जाने वाले अखबार पर निर्भर करता है।

(ii) सम्पादकीय पृष्ठ

यह अखबार का सबसे महत्वपूर्ण पृष्ठ होता है, विशेषकर आपके लिए। अन्यथा तो बहुत कम लोग इसके साथ वक्त गुज़ारना पसन्द करते हैं। लेकिन आप यह छूट नहीं ले सकते, किसी भी कीमत पर नहीं, चाहे यह आपको पसन्द आए अथवा नहीं। ऐसा क्यों है? सम्पादकीय पृष्ठ एक प्रकार से अखबार न होकर अखबार का सत्य होता है। यहाँ समाचार न होकर विचार होते हैं, और मैं आपको पहले भी बता चुका हूँ कि कम से कम मुख्य परीक्षा के लिए तो आपको समाचार कम और विचार अधिक चाहिए। विचार भी केवल इस रूप में नहीं कि आपको जानकारी भर हो, बल्कि इस रूप में कि उसमें समीक्षा की चमक भी हो। यदि आप इस पृष्ठ को छोड़ते हैं, तो मैं यह मानकर चलता हूँ कि आपने पूरे अखबार को ही छोड़ दिया है। मुख-पृष्ठ को छोडऩे की कुछ पूर्ति तो आप रेडियो और दूरदर्शन के समाचारों से कर सकते हैं, लेकिन सम्पादकीय पृष्ठ की कमी को नहीं।
आप इस भ्रम में भी न रहें कि आप इस कमी की पूर्ति प्रतियोगी परीक्षा से संबंधित मासिक पत्रिकाओं को पढ़कर कर लेंगे। ऐसी पत्रिकाएँ आपके लिए उपयोगी तो हैं, लेकिन वे मात्र पूरक हैं, अखबारों के स्थानापन्न (रिप्लेसमेंट) नहीं। पत्रिका के लेखों में वह चमक और विचारों की वह प्रखरता दिखाई नहीं देती, जो अखबारों के लेखों में होती है। इसका कारण यह है कि अखबारों के लेख विषय के विशेषज्ञों द्वारा लिखे जाते हैं और किसी न किसी दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर लिखे जाते हैं। पत्रिकाओं के साथ ऐसा नहीं होता। सच तो यह है कि अधिकांश पत्रिकाओं के लेख कई अखबारों के लेखों को मिलाकर बनाए गए लेख जैसे होते हैं। इससे तथ्यों का संकलन तो हो जाता है, लेकिन उन तथ्यों की विवेचना की प्रखरता कम हो जाती है। इसका अर्थ यह नहीं है कि आप पत्रिकाओं को किनारे ही कर दें। आपको ध्यान केवल यह रखना है कि पत्रिकाएँ पूरक हैं, सब्सटीट्यूट नहीं।
सम्पादकीय पृष्ठ में दो तरह की सामग्री होती है-

  • सम्पादकीय लेख, एवं
  • सम्पादकीय टिप्पणी।

‘सम्पादकीय लेख’ कहने का अर्थ है इस पृष्ठ पर छपे एक या दो बड़े आर्टीकल्स, जो किसी न किसी विषय विशेषज्ञ के द्वारा लिखे जाते हैं। इनकी विशेषता यह होती है कि इन लेखों का संबंध कहीं न कहीं मुख्य सम-सामयिक घटनाओं से होता ही है। इसलिए ये आपके लिए महत्वपूर्ण हो जाते हैं।
आप इन लेखों को ध्यान से पढ़ें। आप पाएँगे कि किस प्रकार एक छोटी-सी घटना को आधार बनाकर लेखक ने उसके इर्द-गिर्द सूचनाओं और विचारों का एक सुन्दर ढाँचा खड़ा कर दिया है। यह घटना कल की या कुछ दिनों पहले की ही है, लेकिन जब आप इसे पढ़ेंगे तो आपको इसके माध्यम से निम्न तथ्य भी मिल जाएँगे-

  • इस घटना की पृष्ठभूमि।
  • इस घटना से जुड़ा इतिहास- यदि कोई हो तो।
  • इस घटना के राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक प्रभाव, तथा
  • घटना के प्रति लेखक का दृष्टिकोण।

अखबार में आप किसी भी घटना के घटित होने के कारणों को पढ़ते हैं, लेकिन जब उसी घटना से जुड़े लेख को पढ़ते हैं तो वह घटना आपके मस्तिष्क में एक बड़ा रूप लेकर अपनी जगह बना लेती है। कहना न होगा कि अलमारी में रखी हुई छोटी चीज़ बड़ी चीज़ की तुलना में आसानी से गुम हो जाती है।
सम्पादकीय पृष्ठ का दूसरा महत्वपूर्ण अंश होता है- सम्पादकीय टिप्पणी। यह प्रत्येक अखबार में होती है और इसकी संख्या एक या दो तक होती है। हो सकता है कि एक दिन में एक ही विषय पर लेख भी छपा हो और उसी पर सम्पादकीय टिप्पणी भी हो। लेकिन दोनों में कुछ फर्क होते हैं। लेख जहाँ व्यक्ति विशेष के विचारों को व्यक्त करता है, वहीं सम्पादकीय टिप्पणी एक प्रकार से जनता के विचारों का प्रतिनिधित्व करती है। दूसरा मुख्य अन्तर यह होता है कि लेख में जहाँ बात बहुत विस्तार के साथ की जाती है, वहीं सम्पादकीय टिप्पणी में वही बात बहुत ही सघन तरीके से रखी जाती है। यदि आपको कभी ऐसा अवसर मिले, तो मैं सलाह दूँगा कि इन दोनों की तुलना आप ध्यान से करें। यहाँ आपके हाथ एक बड़ी महत्वपूर्ण चाबी लगेगी। आप देखकर चमत्कृत रह जाएँगे कि कैसे जो बात लेख में लगभग एक हज़ार शब्दों में कही गई है, संख्या में उससे भी अधिक तथा महत्व की दृष्टि से कहीं अधिक वज़नी बातों को केवल तीन सौ से साढ़े तीन सौ शब्दों में ही कह दिया गया है। यदि आपको आई.ए.एस. में अच्छे नम्बर लाने हैं, तो आपको भी सम्पादकीय टिप्पणी जैसा कमाल करना होगा।
सम्पादकीय टिप्पणी आपको न केवल कुछ महत्वपूर्ण तथ्य ही उपलब्ध कराती है, बल्कि उससे कहीं अधिक आपको सोचने के लिए मजबूर भी करती है। मैं अपने स्टूडेन्ट्स को जब यह बताता हूँ कि उन्हें अपनी विश्लेषण-क्षमता कैसे विकसित करनी चाहिए, तो उन्हें मैं हमेशा सम्पादकीय टिप्पणियों के ही उदाहरण देता हूँ। एक घटना होती है और उस घटना को कितने अलग-अलग कोणों से देखकर सम्पादकीय टिप्पणी तैयार कर दी जाती है। विश्लेषण के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात होती है- इन कोणों की जानकारी का होना। हमारी समझ में आना चाहिए कि इस घटना को किन-किन एंगल्स से देखा जा सकता है। जैसे ही यह बात पकड़ में आती है, जान लीजिए कि विश्लेषण करने का सूत्र आपकी पकड़ में आ गया है। इसलिए मेरी सलाह है कि आप सम्पादकीय टिप्पणियों को केवल तथ्यों एवं विचारों की जानकारी के लिए ही न पढ़ें। इस बात के लिए भी पढ़ें कि कैसे किसी तथ्य का विश्लेषण किया जाता है। धीरे-धीरे आपके अन्दर वे कोण उभरने लगेंगे।
एक बात और। अक्सर सम्पादकीय टिप्पणियों में सूत्र वाक्यों का प्रयोग किया जाता है। ये सूत्र वाक्य अपने में व्यापक संदर्भ लिए हुए होते हैं। बात तो कही जाती है एक, लेकिन वह तब तक सीधे-सीधे समझ में नहीं आती, जब तक आप उसके संदर्भ को नहीं समझ लेते। अधिकांश विद्यार्थी इसे ऐसे ही पढ़कर छोड़ देते हैं, जबकि आपके लिए यह बहुत अच्छा अवसर था कि आप उस संदर्भ को जानने की कोशिश करते। वैसे भी संदर्भ को जाने बिना आप भला कैसे उस कथन के भावार्थ को समझ सकते हैं। उदाहरण के लिए, यदि यह कहा गया कि ‘आज देश को चाणक्य चाहिए।’ अब, जब तक आप चाणक्य के बारे में जान नहीं लेते, तब तक आप कैसे समझेंगे कि क्या कहा जा रहा है। इसलिए मुझे लगता है कि सम्पादकीय टिप्पणियाँ न केवल ज्ञान के क्षेत्र को व्यापक बनाने का ही एक बहुत अच्छा माध्यम हैं, बल्कि किसी विषय को दोहराने का भी एक बहुत अच्छा तरीका हैं।
अभी तक मैंने सम्पादकीय लेख तथा टिप्पणी के संदर्भ में ‘पढ़ा’ शब्द का प्रयोग किया है। यदि आप इजाज़त दें, तो मैं इसके लिए ‘अध्ययन’ शब्द का प्रयोग करना चाहूँगा। कम से कम इन दो को तो आप पढ़ें नहीं, बल्कि इनका अध्ययन करें, ठीक उसी तरह से जैसे कि आप किसी गम्भीर किताब का करते हैं।

(iii) अन्य खबरें

सभी अखबार खेल के लिए पूरा पृष्ठ देते हैं। निश्चित रूप से खेल महत्वपूर्ण राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय महत्व की घटनाओं का एक अंग है। लेकिन यदि अखबार वाले उसे पूरा पृष्ठ दे रहे हैं, तो आप उसे इतना महत्वपूर्ण मानकर न चलें। केवल उन्हीं खेलों के बारे में सरसरी तौर पर देख लें, जो राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय महत्व के हैं। वैसे भी इस स्तर के खेलों के अधिकांश समाचार पहले पृष्ठ पर ही आ गए होते हैं। यदि आपकी खेलों में अधिक रुचि है तो बात अलग है, अन्यथा इसे बहुत ज्य़ादा महत्व न दें। हाँ, यदि खेल सम्बन्धी कोई लेख या सम्पादकीय टिप्पणी छपी है, तो वे आपके लिए उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितना कि अन्य कोई लेख। ठीक इसी प्रकार यदि सरकार खेलों से संबंधित किसी नीति की घोषणा करती है, कोई रिपोर्ट आती है, न्यायालय कोई महत्वपूर्ण निर्णय देते हैं, तो निश्चित रूप से ये भले ही खेल से जुड़े हुए हों, अत्यन्त महत्वपूर्ण बन जाते हैं।
ठीक यही स्थिति पुरस्कारों की भी है। आपको छोटे-मोटे पुरस्कारों की उपेक्षा कर देनी चाहिए। केवल महत्वपूर्ण पुरस्कारों पर ध्यान दें। व्यक्ति-परिचय के अंतर्गत भी अधिक से अधिक लोगों के बारे में जानने के फेर में न पड़ें। यदि आप ऐसा करेंगे, तो बेवजह अपने दिमाग में सूचनाओं का अम्बार लगा लेंगे, जिसकी विशेष जरूरत नहीं होती।
विज्ञान तथा पर्यावरण अत्यन्त महत्वपूर्ण विषय हैं। इनकी खबरों को मुख्य पृष्ठ पर बहुत कम जगह मिल पाती है। इसके लिए आपको अन्दर के पृष्ठों को पलटना होगा। जहाँ भी आपको इनसे जुड़ी खबरें मिलती हैं, उन्हें ध्यान से पढ़ लें।
प्रत्येक राष्ट्रीय अखबार विभिन्न राज्यों की भी कुछ खबरें छापते हैं। निश्चित रूप से ये वे खबरें होती हैं, जो अपेक्षाकृत महत्वपूर्ण होती हैं। इनमें आपको अपने राज्य से जुड़ी खबरों को ध्यान से देखना चाहिए, क्योंकि ये इन्टरव्यू में आपकी मदद करेंगी। जहाँ तक दूसरे राज्यों की खबरों का सवाल है, उन पर आपको सरसरी निगाह मार लेना चाहिए। वैसे भी यदि किसी राज्य में कोई महत्वपूर्ण घटना घटी हो, तो उसे मुख्य पृष्ठ पर स्वयं ही स्थान मिल जाता है।
अब मैं न्यूज़पेपर्स पढऩे के बारे में आपसे अंतिम यह बात कहना चाहूँगा कि पूरे अखबार पर एक बार सरसरी निगाह ज़रूर डाल लें। कम से कम हेडलाइन तो देख ही लें। इससे आपका अनुभव जगत व्यापक होगा और आपको पता चलता रहेगा कि आपके चारों ओर क्या हो रहा है- जिसमें आपकी अपनी कॉलोनी तक शामिल है।

नोट : ऊपर दिया गया आर्टिकल जल्द ही आने वाली पुस्तक “आप IAS कैसे बनेंगे” से लिया गया है।