fbpx
  • Registration for 15 days Classes
  • Pay Remaining Fee for 15 days Classes
  • Facebook
  • Instagram
  • Twitter
  • YouTube
  • Home
  • Classes
  • Audio
    • Life Management
    • Daily Audio Lecture
    • Air News Hindi
    • Air News English
    • Discussions
  • Knowledge Centre
    • Magazines
    • Newspaper Clips
    • Current Content
    • Practice Questions
  • Mock Tests
  • Resources
    • Hindi Articles
    • English Articles
    • Question Papers
    • Syllabus
    • NCERT Books
    • FAQs
  • Videos
  • Books
  • About Us
  • Contact Us
You are here: Home >> Resources >> Articles (Hindi) >> अपने ही उत्तर को जाँचना-1

अपने ही उत्तर को जाँचना-1

To Download Click Here.

यह बहुत ही आम समस्या है और सही मायने में सही समस्या भी। जब भी विद्यार्थियों से मैं प्रश्नों केे उत्तर लिखकर अभ्यास करने की बात कहता हूँ, वे तुरन्त मुझसे एक प्रश्न करते हैं और वह यह कि ‘‘सर, हम उत्तर लिख भी लेंगे, तो हमे पता कैसे चलेगा कि हमारा उत्तर सही है या नहीं। हम कैसे जान सकेंगे कि इसमें हमें और क्या-क्या करना चाहिए।’’ उनकी इस समस्या को मैं बहुत अच्छी तरह समझ सकता हूँ और यहाँ तक कि महसूस भी करता हूँ। इससे पहले कि मैं आपको इस समस्या का कोई समाधान बताऊँ, मैं आपको एक कड़वी बात कहना चाहूँगा। ज्यादातर विद्यार्थी अपनी इस समस्या का इस्तेमाल उत्तर लिखने के अभ्यास से बचने के लिए एक ढाल की तरह करते हैं। वे अपने मन को यह कहकर समझा लेते हैं कि यदि हमारे पास अपने उत्तर को जाँचने और जँचवाने का कोई इंतजाम नहीं है, तो फिर उत्तर लिखने से फायदा ही क्या। यह सोचकर वे उत्तर लिखने से पैदा होने वाले तनाव से मुक्ति पा लेते हैं। क्या ऐसा नहीं है?

यह बहुत ही आम समस्या है और सही मायने में सही समस्या भी। जब भी विद्यार्थियों से मैं प्रश्नों केे उत्तर लिखकर अभ्यास करने की बात कहता हूँ, वे तुरन्त मुझसे एक प्रश्न करते हैं और वह यह कि ‘‘सर, हम उत्तर लिख भी लेंगे, तो हमे पता कैसे चलेगा कि हमारा उत्तर सही है या नहीं। हम कैसे जान सकेंगे कि इसमें हमें और क्या-क्या करना चाहिए।’’ उनकी इस समस्या को मैं बहुत अच्छी तरह समझ सकता हूँ और यहाँ तक कि महसूस भी करता हूँ। इससे पहले कि मैं आपको इस समस्या का कोई समाधान बताऊँ, मैं आपको एक कड़वी बात कहना चाहूँगा। ज्यादातर विद्यार्थी अपनी इस समस्या का इस्तेमाल उत्तर लिखने के अभ्यास से बचने के लिए एक ढाल की तरह करते हैं। वे अपने मन को यह कहकर समझा लेते हैं कि यदि हमारे पास अपने उत्तर को जाँचने और जँचवाने का कोई इंतजाम नहीं है, तो फिर उत्तर लिखने से फायदा ही क्या। यह सोचकर वे उत्तर लिखने से पैदा होने वाले तनाव से मुक्ति पा लेते हैं। क्या ऐसा नहीं है?

आप अपने बारे में तो कह सकते हैं कि ‘‘मेरे साथ ऐसा नहीं है’’। लेकिन दूसरों के बारे में नहीं। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूँ, क्योंकि ऐसे भी विद्यार्थियों की संख्या कम नहीं है, जिनसे मैंने कहा कि  ‘‘तुम उत्तर लिखकर मेरे पास भेजो।’’ उनके लिखे हुए उत्तर मुझे कभी भी देखने और जाँचने को नहीं मिले। बल्कि हुआ यहाँ तक कि संकोच के कारण उन लोगों ने मुझसे फोन पर बात करना तक बंद कर दिया। वे शायद यही सोचते होंगे कि सर से जब भी बात होगी तो वे पूरी बेशर्मी केे साथ फिर से वही सवाल करेंगे कि ‘‘तुमने अभी तक उत्तर क्यों नहीं लिखा’’।, इसलिए मैंने कहा कि अपने लिखे हुए उत्तर को जाँचने की समस्या के साथ-साथ जो सबसे बड़ी समस्या है वह उत्तर न लिखने की ही समस्या है। खैर, इस समस्या के बारे में हम पहले बात कर चुके हैं।इस समस्या को लेकर मैं एक घटना की चर्चा करना चाहूँगा। इस घटना में आपको न केवल इस तरह की समस्याओं की समझ ही मिलेगी, बल्कि कहीं न कहीं समस्या के निदान के सूत्र भी मिलेंगे।मेरी एक विद्यार्थी थी। चूंकि वह मेरे एक बहुत अच्छे परिचित परिवार से थी, इसलिए मुझसे मिलते रहना परीक्षा के बारे में मुझसे पूछते रहना उसकी मजबूरी थी। मिलने पर मेरा जोर लगातार इस बात पर होता था कि उत्तर लिखने की प्रेक्टिस करनी चाहिए। वह दिल्ली गई और दिल्ली में जितनी भी अच्छी और बड़ी कोचिंग हो सकती थीं, उसने सब की।

यह एक बड़ी सफलता ही मानी जाएगी कि पहली ही बार में उसनेे प्री क्वालिफाई कर लिया। लेकिन मेन्स में बहुत ही कम नम्बर आए; कुल के लगभग बीस-पच्चीस प्रतिशत। ये नम्बर काफी कम थे। प्राप्तांक बता रहे थे कि या तो शुरू से ही मेन्स की तैयारी पर ध्यान नहीं दिया गया था। यदि दिया गया था, तो उस तरीके से नहीं दिया गया था। निश्चित रूप से इस स्कोर ने उसको अन्दर से हिला दिया होगा और वह चिन्तित हो उठी होगी। तब शायद उसको यह अहसास हुआ होगा कि ‘नहीं, मुझे उत्तर लिखने की प्रैक्टिस करनी चाहिए। उसने इसका फैसला लिया और फिर से उसी महानगर के कुछ संस्थानों में प्रैक्टिस करने के लिए दाखिला ले लिया। अन्य पेपर्स में किस तरह की प्रैक्टिस होती थी, मुझे यह तो नहीं मालूम, लेकिन निबन्ध के बारे में उसके साथ मेरा जो अनुभव रहा, उसे मैं यहाँ आप लोगों से साझा करना चाहूँगा।संस्थान ने उसे एक निबन्ध लिखने के लिए दिया। निबन्ध लिखा गया। निबन्ध को जाँचा गया और उसमें उसे सवा सौ नम्बर मिले। ढाई सौ में सवा सौ नम्बर यानी कि चालीस प्रतिशत। मैं इस स्कोर को अच्छा ही कहूँगा।

इसे इस मायने में काफी बेहतर कहा जा सकता था कि इससे पहले उसका स्कोर मुख्य परीक्षा में पच्चीस-तीस नम्बर का था। अधिकांष विद्यार्थी यहीं तक अटक भी जाते हैं,क्योंकि निबन्ध का पेपर सरल होने के बावजूद है ही कुछ इतना कठिन। उसनेे मुझे अपना वह निबन्ध दिखाया। उसके निबन्ध को पढ़कर मैं आश्चर्यचकित रह गया। इसलिए नहीं कि निबन्ध काफी अच्छा लिखा गया था, बल्कि इसलिए कि यदि इस तरह के निबन्ध को सवा सौ नम्बर दिए जा सकते हैं, तो फिर चालीस-पचास नम्बर पाने के लिए कितना बेकार निबन्ध लिखना पड़ेगा। सच पूछिए तो मैं अन्दर से बहुत अधिक विचलित हो गया और उद्वेलित भी। मेरा यह विचलन और उद्वेलन उस विद्यार्थी के भविष्य के बारे में सोचकर नहीं था, बल्कि उन सभी विद्यार्थियों के भविष्य के बारे में सोचकर था, जिनके साथ कुछ ऐसा हो रहा था।

विद्यार्थी तो कोरे कागज के समान होते हैं। वे नहीं जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं। मैंने उस लड़की से कुछ नहीं कहा। मैं उसे निराश, उदास और हताश नहीं करना चाहता था, क्योंकि उसकी मुख्य परीक्षा के दिन बहुत ज्यादा नहीं बचे थे। इससे उसका आत्मविश्वास डगमगा सकता था, और उसका प्रभाव नकारात्मक ही होता। मैंने उससे यही कहा कि ‘‘चलो, हम इस पर एक प्रयोग करते हैं। तुम दो काम करो-

  • पहला काम तो यह कि इस निबन्ध को पढ़ो और इस निबन्ध को पढ़ने केे बाद इसमें से वे वे बिन्दु निकालो, जो तुमने इसमें लिखें हैं। उनकी एक पूरी लिस्ट बनाओे।
  • प्वाइंट्स की लिस्ट बनाने के बाद फिर उन प्वाइंट्स को देखते हुए एक बार पूरे निबन्ध को फिर से पढ़ो। इसके बाद इस लिखे हुए निबन्ध पर पांच शीर्षक लिखो।

तुम यह काम करके लाओ। फिर मुझसे कल मिलो। मैंने जानबूझकर उसको कल मिलने के लिए कहा था, क्योंकि मुझे डर था कि कहीं वह हमेशा-हमेशा के लिए छिटक ही न जाए। चूंकि मैं उसका शुभचिन्तक था, इसलिए उसका छिटकना मेरे लिए चिन्ता का कारण होता।

मेरे लिए सुखद आश्चर्य यह था कि उसने ऐसा किया और दूसरे दिन वह आ भी गईं। इस बार उसका चेहरा बुरी तरह से उतरा हुआ था। मैंने पूछा ‘क्या हुआ?’ बजाए इसके कि वह अपने मुंह से कुछ बोलती, उसने वह कागज मेरे सामने रख दिया, जिसमें प्वाइंट्स लिखे हुए थे और उन प्वाइंट्स के आधार पर निबन्ध के पांच शीर्षक। सच पूछिए तो अब न तो जांचने-परखने के लिए कुछ रह गया था और न ही बताने केे लिए कुछ। सारी बातें उसकी समझ में आ गई थीं। उन पांच शीर्षकों में से एक भी शीर्षक वह नहीं था, जिस पर उसने निबन्ध लिखा था। अब जो पांच शीर्षकों की सूची हमारे पास थी। वही उस निबन्ध के सही विषय थे।

अर्थात यदि इन पांच शीर्षकों में से किसी एक पर निबन्ध लिखने के लिए कहा जाता, तब तो यह निबन्ध ठीक था। लेकिन जिस शीर्षक पर निबन्ध लिखने के लिए कहा गया था, उसके लिए यह निबन्ध ठीक नहीं था। अब आप खुद इस निबन्ध के परीक्षक बनकर मुझे बतायें कि ऐसी स्थिति में आप उस विद्यार्थी को कितने प्रतिशत नम्बर देंगे। मुझे तो लगता है कि दस-पन्द्रह प्रतिशत भी नम्बर क्यों दिए जाने चाहिए। यह कहीं न कहीं विद्यार्थी की अक्षमता ही नहीं बल्कि घोर अज्ञानता और यहाँ तक कि मूर्खता और चालाकी को भी बताता है। अज्ञानता इस मायने में कि उसे पता ही नहीं है कि वह लिख क्या रहा है। मूर्खता इस मायने में कि उसे पता ही नहीं है कि पूछा क्या गया है। चालाकी इस मायने में कि वह मानकर चल रहा है कि परीक्षक भी मेरी तरह ही मूर्ख और अज्ञानी है। उसे बेवकूफ बनाया जा सकता है। मित्रो, इस घटना के माध्यम से मैं जो बातें आपसे कहना चाह रहा हूँ, उन्हें अब मैं सूत्रबद्ध तरीके से रख रहा हूँ।

इस घटना की चर्चा मैंने सिर्फ यह सोचकर की है कि इस घटना में कहीं न कहीं आप स्वयं को भी घटित होते हुए देख सकते हैं, बशर्ते कि यह आपकी समस्या हो। यदि आप देख लेंगे,तो निश्चित रूप से उसका समाधान भी मिल जाता है। किसी विचारक ने बिल्कुल सही कहा है कि कोई भी समस्या ऐसी नहीं हो सकती, जिसका समाधान न हो। यदि समाधान नहीं है, तो सच यही है कि समस्या ही नहीं है।’’ संकट समाधान करने का नहीं होता, जितना कि समस्या को समझने का होता है, जिसे मेडिकल की भाषा में डायग्नोस करना कहते हैं। दवाईया ंतो हैं। लेकिन बीमारी को खत्म करने केे लिए यह जानना जरूरी है कि बीमारी है क्या। यहाँ बीमारी क्या है?आप अपने बारे में स्वयं विचार कीजिए। पहली बीमारी तो यही है कि आप उत्तर ही नहीं लिखना चाहते। प्रैक्टिस ही नहीं करना चाहते। बीमारी का दूसरा लक्षण यह है कि यदि आप लिखते भी हैं, तो जबर्दस्ती लिखते हैं। धक्का मारकर लिखते हैं। जब आप इस प्रकार धक्का मारकर लिखेंगे, तो स्वाभाविक तौर पर आपका दिमाग उसमें रुचि नहीं लेगा। वह पूरी तरह खुलेगा ही नहीं। ऐसे में न तो वह प्रश्न को समझेगा और न ही उसके उत्तर के लिए आपको सामग्री उपलब्ध करा पाएगा। तीसरी बीमारी निर्देशन की कमी की भी है।

उत्तर लिखने केे बारे में सही निर्देशन का अभाव है और जिन पर आप विश्वास करते हैं, उनमें से बहुत से उतने विश्वसनीय नहीं मालूम पड़ते। इसलिए यहाँ एक समस्या फिर से पैदा होती है कि आप विश्वसनीय निर्देशन लायेंगे कहाँ से? लेकिन जैसा कि मैंने कहा, यदि समस्या है, तो समाधान भी है। तो आइए, अब हम कुछ समाधान की बातें करते हैं।शायद आप मेरी इस बात पर विश्वास नहीं करेंगे लेकिन थोड़ी देर के लिए विश्वास कर लीजिए। ऐसा नहीं कि मैं इस समस्या से ग्रस्त नहीं रहा हूँ, त्रस्त नहीं रहा हूँ। ज्यादातर विद्यार्थियों के साथ ऐसा ही होता है, खासकर वैसे विद्यार्थियों के साथ तो होता ही है, जो उत्तर लिखने की अपनी स्थिति को और बेहतर बनाना चाहते हैं। यह सोचना बिल्कुल भी गलत नहीं है कि स्थिति में यह बेहतरी तब तक नहीं आ सकेगी, जब तक कि कोई आपके लिखे उत्तर का मूल्यांकन न करे। खिलाड़ियों के जो कोच होते हैं, वे करते क्या हैं?

कुछ नहीं सिवाय इसके कि वे उस खिलाड़ी को खेलते हुए देखते रहते हैं। उस दौरान उन्हें जो भी छोटी-मोटी चूक दिखाई देती है, खिलाड़ी को उसके बारे में बताते हैं। फिर उसे वह कैसे दूर करं, इसकी प्रैक्टिस कराते हैं। ऐसा उन खिलाड़ियों तक के साथ होता है, जो विश्व प्रसिद्ध हैं और अभी खेल भी रहे हैं। यानी कि कोई कितना भी अच्छा खिलाड़ी क्यों न हो, उससे कोई न कोई चूक तो होती ही रहती है। यदि पिछली कोई चूक सुधर हो गई, तो पता लगा कि या तो कोई नई चूक पैदा हो गई है या फिर कोई पिछला गुण ही अब चूक में परिवर्तित हो गया है। इसलिए हर खिलाड़ी तब तक किसी न किसी कोच के निर्देशन में बने रहना चाहता है, जब तक कि वह खेल रहा है।

NOTE: This article by Dr. Vijay Agrawal was first published in ‘Civil Services Chronicle’.

Subscribe to our Newsletter

Share this on WhatsApp

Related posts:

  1. अपने ही उत्तर को जाँचना-2
  2. अपने ही उत्तर को जाँचना-3
  3. ‘प्रश्न एवं उत्तर’ के लिए गाइडेन्स’
  4. अपने लिए स्थान मांगती नदियां

Filed Under: Articles (Hindi)

Content Category

  • Audio
    • AIR News English
    • AIR News Hindi
    • Daily Audio Lecture
    • Discussions
    • Life Management
  • Books
  • Knowledge Centre
    • Current Content
    • Magazines
    • Mock Test
    • Newspaper Clips
    • Practice Questions
  • Resources
    • Articles (English)
    • Articles (Hindi)
    • NCERT Books
    • Question Papers
  • Video

Explore by Topics

Economics GST History

Contact Us

We welcome your valuable feedback, suggestions and advice about our Free study material for Indian Civil Services, IAS Exam preparation, UPSC Entrance Exams, UPSC/IAS Mock Tests, Daily Audio Lectures and many other IAS tutorials to crack UPSC IAS examinations.

Email: info@afeias.com
Phone: 08103515516

About Us

AFEIAS has been established with the aim of providing proper guidance to youths preparing for Indian Civil Services. The important point to note here for IAS aspirants is all of our UPSC/IAS exam preparation Classes are conducted by former civil servant and renowned author, Dr.Vijay Agrawal himself who is on mission to provide right and proper guidance to students preparing for Civil Services Examinations. Continuing with this endeavor Dr. Agrawals’s book, ‘HOW TO BECOME AN IAS‘ is a great milestone in this regard.

We are Social

  • Facebook
  • Instagram
  • Twitter
  • YouTube

Mobile Apps


Copyright © AFEIAS.COM.

Sitemap | FAQs | Privacy Policy | Terms & Conditions | Mobile App

Website by Yotek Technologies

Digital Marketing by Afzal Khan