अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद
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जल बंटवारे को लेकर राज्यों के बीच बार-बार लड़ाई होती रहती है। कम वर्षा वाले वर्षों में यह और भी बढ़ जाती है। अनियमित और परिवर्तनशील वर्षा, तेजी से घटता भूजल, भूमि-उपयोग में संशोधन और जल-गहन फसल पैटर्न नदी विवादों को बढ़ाते जा रहे हैं।
समाधान क्या हैं –
- मौजूदा, अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम 1950, अपने मुख्य विवाद समाधान निकाय के रूप में न्यायाधिकरणों पर निर्भर करता है।
- उच्चतम न्यायालय विभिन्न न्यायाधिकरणों के आदेशों पर निर्णय देता है।
- लोकसभा ने 2017 में अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद “संशोधन” विधेयक पारित किया था। इसमें एक स्थायी नदी जल विवाद न्यायाधिकरण और एक मध्यस्थता समिति शामिल थी। कार्यान्वयन तंत्र पर अभी भी काम किया जाना बाकी है। यहीं पर राज्य, ट्रिब्यूनल के आदेशों को विफल करते हैं, और न्यायालय में जाते हैं।
- भारत सरकार की जल शक्ति वेबसाइट पर ऐसे पांच न्यायाधिकरण दर्ज हैं, जो कई दशक पुराने हैं। कावेरी विवाद सभी आधिकारिक उद्देश्यों के लिए “समाधान” है। इसमें अंतर्राज्यीय जल विवादों से निपटने के सबक दिए गए हैं।
विशेषज्ञ लंबे समय से मानते रहे हैं कि हर विवाद के लिए न्यायाधिकरण से स्थायी समाधान नहीं मिलता है।
2050 तक भारत में पानी की कमी होने की आशंका है। इसे देखते हुए राज्यों के बीच कलह जारी रहेगी। अतः न्यायाधिकरण को अधिकार देने वाले विधायी ढांचे को तत्काल प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उसे सुदृढ़ किया जाना चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 29 सितंबर, 2023
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