हिमालय को तबाह करती सरकार की भूलें
To Download Click Here.
भारत का हिमालयी क्षेत्र जरूरत से ज्यादा लालच के कारण नष्ट होता जा रहा है। इसमें राजनीतिज्ञों, नौकरशाही और रियल एस्टेट लॉबी के अपने-अपने स्वार्थ छिपे हुए हैं। इस क्षेत्र के विनाश से संबंधित ऐसी एक परियोजना पर नजर डालते हैं, जिसे नियमों और चेतावनियों को ताक पर रखकर अमल में लाया गया –
- 2016 में चारधाम महामार्ग विकास परियोजना को स्वीकृति दी गई। यह 900 कि.मी. की एक विशाल बुनियादी ढांचा परियोजना है। इसे डबल-लेन पेड शोल्डर में चौड़ा करने का काम शुरू किया गया है। इस परियोजना में लाखों पेड़ों, कई एकड़ वन-भूमि, असंख्य मानव और पशु तथा संवेदनशील हिमालय की उपजाऊ ऊपरी मिट्टी पर संकट आ गया है।
- कायदे से, 100 कि.मी. से अधिक की परियोजना के लिए पर्यावरण मंजूरी की आवश्यकता होती है, लेकिन पर्यटन और चुनावी एजेंडे की महत्वाकांक्षा के कारण सभी कानूनों को दरकिनार कर दिया गया। जोनल मास्टर प्लान को जल्दबाजी में स्वीकृत करते हुए उच्चतम न्यायालय के दिशा निर्देशों को अनदेखा कर दिया गया।
- उत्तराखंड सरकार ने मानसून से पहले गंगोत्री के लिए तीर्थयात्रियों की संख्या को सीमा से कहीं अधिक बढ़ा दिया। इस बारे में विशेषज्ञ लगातार चेतावनी दिए जा रहे हैं, लेकिन सभी वैज्ञानिकों की चेतावनियों को नजरअंदाज किया जाता रहा है। उच्चतम न्यायालय ने इस हेतु एक समिति भी गठित की है। लेकिन उसकी सिफारिशों को अमल में लाया जाना सरकार की इच्छा पर होगा।
- भागीरथी इको सेनसिटिव जोन में लगातार कई त्रासदिया हो रही हैं। प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन पर बनी संसदीय स्थायी समिति ने पर्यावरण मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पहाड़ी क्षेत्रों का विकास कार्य, मैदानी क्षेत्रों से अलग होना चाहिए।
- एक अन्य स्थायी समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि ब्लैक कार्बन तापमान को बढ़ाता है। इसलिए वाहनों के प्रवेश पर नियंत्रण रखा जाना चाहिए।
हिमालयी क्षेत्र के क्षरण को रोकने का एकमात्र उपाय कड़े नियमों को लागू करना हो सकता है। सरकार को इस पर जल्द कोई कदम उठाना चाहिए।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित मल्लिका भनोट और सी.पी. राजेन्द्रन के लेख पर आधारित। 28 अगस्त, 2023
Related Articles
×