नाटो को अपने प्रतिमानों पर चिंतनशील होना चाहिए
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हाल ही में उत्तर अटलांटिक संधि संगठन या नाटो की बैठक लिथुएनिया में संपन्न हुई है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सोवियत संघ के विस्तार के कथित खतरे के जवाब में अमेरिका, कनाडा और कुछ पश्चिमी यूरोपीय देशो ने 1949 में इस संगठन का गठन किया था।
मुख्य बातें –
- नाटो चार्टर का अनुच्छेद 5 इस सैन्य गठबंधन का मुख्य आधार है, जो सामूहिक रक्षा की गारंटी देता है। नाटो के सदस्य देशों को एक-दूसरे की रक्षा करने और गठबंधन के भीतर एकजुटता की भावना स्थापित करने के लिए बाध्य करता है। यानि यदि किसी नाटो देश पर कोई गैर-सदस्य देश हमला करता है, तो सभी सदस्य इसे अपने पर किया गया हमला मानेंगे और सामूहिक रूप से उसका जवाब देंगे। अनुच्छेद 5 यूक्रेन जैसे गैर सदस्य देश पर लागू नहीं होता है।
- नाटो की सदस्यता एक एक्शन प्लान पर आधारित है। इसमें कई राजनीतिक और सैन्य सीढ़ियां हैं, जो सदस्य बनने के लिए अनिवार्य शर्तें हैं। सदस्य बनने के इच्छुक देश को बाजार अर्थ.व्यवस्था पर आधारित लोकतंत्र होना चाहिए। उसकी सेना का नियंत्रण सिविल के पास होना चाहिए। वह अपने संघर्षों के शांतिपूर्ण समाधान के लिए प्रतिबद्ध हो आदि-आदि। सदस्यता के इन प्रतिमानों के कारण ही यूक्रेन को अभी तक सदस्य नहीं बनाया जा सका है, जिसको लेकर उसने काफी नाराजगी व्यक्त की है।
इस बैठक ने नाटो के नेताओं को यह विचार करने का अवसर दिया है कि क्या नाटो की सदस्यता को धीमी गति से आगे बढ़ाया जाना चाहिए? रूस ने युद्ध छेड़ने के लिए नाटो के अस्तित्व को ही दोष दिया है। लेकिन यह विवादित है। इस बैठक में नाटो नेताओं को युद्ध विराम और शत्रुता की अस्थायी समाप्ति के लिए संभावित रास्ते तलाशने थे, क्योंकि यह वह समूह है, जो अर्थव्यवस्था, लोकतंत्र, मानवाधिकार और शांति जैसे प्रतिमानों की परवाह करने का दावा करता है। अगर यह सच है, तो नाटो को इसे सिद्ध करना चाहिए।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 14 जुलाई, 2023