विवादास्पद सरोगेसी कानून
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हाल ही में भारत के सरोगेसी कानून में संशोधन किए गए हैं। नियमों को कड़ा करते हुए अब व्यावसायिक सरोगेसी पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। 8 जून, 2023 को किए गए बदलाव के बाद अब एकल महिला या पुरूष, समलैंगिक और लिव-इन में रह रहे जोड़े सरोगेसी के माध्यम से संतान का सुख नहीं ले सकते हैं। अब केवल निःसंतान या संतानयुक्त मूल रूप से भारतीय जोड़े ही सशर्त सरोगेसी का विकल्प ले सकते हैं। इस हेतु गृह मंत्रालय ने नियम, शर्तें और दिशा निर्देश जारी किए हैं।
संशोधन का आधार –
- सरोगेसी (रेग्यूलेशन) एक्ट, 2021 के अनुसार 35 से 45 वर्ष के बीच की कोई विधवा या तलाकशुदा महिला या ऐसा जोड़ा; जिसे कानूनन विवाहित माना जाता है, को विशेष चिकित्सकीय परिस्थितियों में सरोगेसी प्राप्त करने का अधिकार था।
- इस अधिनियम में व्यावसायिक सरोगेसी के लिए 10 वर्ष का कायवास और 10 लाख रुपये तक के जुर्माने का दंड था।
- इस कानून में केवल परोपकार के लिए की जाने वाली सरोगेसी की अनुमति दी गई थी।
कानून की कमियां –
- विधि आयोग ने अपनी 228वीं रिपोर्ट में कहा है कि ‘अस्पष्ट नैतिक आधारों पर’ सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाया जाना उचित नहीं है।
- इससे संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार निजता के अधिकार का उल्लंघन होता है।
- व्यावसायिक सरोगेसी पर प्रतिबंध से सरोगेट माताओं की आय प्रभावित होती है।
- परोपकार के लिए की जाने वाली सरोगेसी में सरोगेट माँ के लिए विकल्प बहुत ही सीमित हो जाते हैं। इस प्रकार से सरोगेसी के लिए निकट मित्र या रिश्तेदार ही तैयार होते हैं। इस सरोगेसी के दौरान और प्रसव के बाद भी अनेक भावनात्मक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
बहिष्करण को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में, भारत सरकार के एक हलफनामे ने न्यायालय को अपना पक्ष दिया है कि ‘बच्चे के कल्याण का नजरिया’ सर्वोपरि है। लेकिन इससे यह स्पष्ट नहीं होता है कि एकल माता-पिता को बच्चे के कल्याण के लिए हानिकारक क्यों माना जा रहा है। आधुनिक प्रजनन तकनीक के इस्तेमाल के लिए वर्गों के बीच भेद करना परेशान करने वाला है। सरकार को इस भेदभाव से परहेज का रास्ता निकालना चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 19 जून, 2023