समान नागरिक संहिता लागू करने का पुनः प्रयास
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देश में एक बार फिर से समान नागरिक संहिता पर विचार-विमर्श शुरू हो गया है। जानते है कि इसकी जरूरत क्यों है?
क्रमवार बिंदु –
- भारतीय संविधान की रचना के समय से ही समान नागरिक संहिता का विषय संवेदनशील रहा है। संविधान सभा ने भी इसके लागू किए जाने की उम्मीद जताई थी। संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता को लागू करना सरकार का दायित्व बताया गया है।
- कांग्रेस ने अपने शासनकाल में हिंदुओं के निजी कानूनों को संहिताबद्ध कर दिया, परंतु भारत में रह रहे अन्य समुदायों के निजी कानूनों को संहिताबद्ध नहीं किया था। अन्य समुदायों के अपने कानून कई तरह की सामाजिक समस्याएं पैदा करने के साथ महिलाओं के हितों पर भी कुठाराघात करते हैं।
- 2018 में भारत के विधि आयोग ने परामर्श पत्र जारी करके समान नागरिक संहिता को आवश्यक नहीं माना था।
- समान नागरिक संहिता के द्वारा व्यक्तिगत कानूनों में भेदभाव और असमानता को दूर किया जाना जरूरी है, ताकि देश में सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार किया जा सके। किसी की भी स्थिति विशेष न रहे। सब एक समान नागरिक संहिता के तहत ही आचरण करें। इससे देश में सद्भाव और एकता का परिवेश बन सकता है।
यहाँ 21वें विधि आयोग के तर्कों को अगर रेखांकित किया जाए, तो एक प्रगतिशील सोच दिखाई देती है। इसके अनुसार विभिन्न समुदायों के अंतर्गत और उनके बीच फैले भेदभाव को दूर करना ज्यादा जरूरी माना गया है। इसमें बुनियादी सुधारों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए, जैसे. सभी समुदायों में विवाह की न्यूनतम आयु को 18 वर्ष करना आदि।
इस प्रकार, सभी समुदायों के कानूनों में समानता के सार्वभौमिक सिद्धांतों को लागू करना एवं वर्जनाओं और रूढियों पर आधारित प्रथाओं को समाप्त करना ज्यादा जरूरी है। इससे समाज में अपने आप ही समानता आ जाएगी।
विभिन्न समाचार पत्रों पर आधारित। 16 जून, 2023
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