कार्बन बाजार और भारत
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दुनिया भर में स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने और जीवाश्म ऊर्जा की खपत को कम करने के उद्देश्य से कार्बन ट्रेडिंग की जाती है। यह सब कार्बन बाजार के माध्यम से किया जाता है। पहले कार्बन बाजार और कार्बन ट्रेडिंग को कुछ बिंदुओं में समझते हैं –
कार्बन बाजार और कार्बन ट्रेडिंग –
कार्बन डाइ ऑक्साइड के उत्सर्जन में कमी को बढ़ावा देने के लिए एक ऐसा तंत्र विकसित किया गया है, जो इन गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करने पर काम करे। इसे प्रभावी बनाने के लिए इसे मुद्रा से जोड़ दिया गया है।
कार्बन ट्रेडिंग का सीधा मतलब है- कार्बन डाइ ऑक्साइड का व्यापार। क्योटो प्रोटोकाल में प्रदूषण कम करने के लिए दो तरीके सुझाए गए थे। प्रदूषण में कमी को कार्बन क्रेडिट की यूनिट में नापा जाना था।
पहले तरीके में विकसित देशों को ऐसी तकनीकें विकसित करने पर निवेश करना था, जो औद्योगिक गतिविधियों को कम प्रदूषण पर संपन्न कर सकें। दूसरे, विकसित देश की कंपनियां अगर खुद से प्रदुषण में कमी न कर सकें, तो वे विकासशील देशों से कार्बन क्रेडिट खरीद लें।
इस व्यापार में प्रत्येक देश या उसके अंदर मौजूद विभिन्न सेक्टर को एक निश्चित मात्रा में कार्बन उत्सर्जन करने की सीमा दी जाती है। यदि किसी देश ने अपनी निर्धारित सीमा का कार्बन उत्सर्जित कर लिया है, फिर भी वह उत्पादन जारी रखना चाहता है, तो वह ऐसे किसी देश से कार्बन खरीद सकता है, जिनका कार्बन उत्सर्जन निर्धारित सीमा से कम रहा हो।
हर देश को कार्बन उत्सर्जन की सीमा का आवंटन यूनाइटेड नेशन्स फ्रेमवर्क कनवेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) द्वारा किया जाता है।
भारत की नीतियां –
भारत ने ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2022 पारित किया है। इस वर्ष के अंत तक इस मामले में वह और भी बारीकियों को स्पष्ट करने की नीति बना रहा है।
कार्बन उत्सर्जन में कमी के लिए भारत लगातार प्रतिबद्ध रहा है। इसके चलते उसको निर्धारित उत्सर्जन सीमा से काफी कम उत्सर्जन का लाभ मिल सकता है। 2030 तक उत्सर्जन को और भी कम करने का लक्ष्य रखा गया है।
इस हेतु भारत ने परफॉर्म, अचीव एण्ड ट्रेड ( पीएटी ) योजना शुरू की है। इसमें 1000 से अधिक उद्योगों को एनर्जी सेविंग सर्टिफिकेट की खरीद और ट्रेडिंग करनी है।
2015 से पीएटी चक्र से उत्सर्जन में 3.5% की कमी हुई है। क्या कार्बन ट्रेडिंग सार्थक रूप से उत्सर्जन में कमी ला सकती है?
भारतीय संदर्भों में यह एक ऐसा प्रश्न है, जिसका उत्तर दशकों बाद ही दिया जा सकता है। अगर यह घरेलू वित्त जुटाने और जीवाश्म ईंधन से दूर जाने में तेजी लाने में हमें सक्षम करता है, तो यह एक प्रकार से हमारी जीत ही होगी।
अंत में, सरकार को उद्योगों पर इस प्रकार का कुछ दबाव बनाना चाहिए कि वे कार्बन बाजार में भाग लें। अगर भारत चाहे, तो खाली पड़ी 15 लाख हेक्टेयर भूमि पर पेड़ लगाकर अच्छी कमाई कर सकता है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 23 फरवरी, 2023