चुनाव आयोग की परेशानी
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हाल ही में चुनाव आयोग ने भाजपा, कांग्रेस और सीपीएम के प्रतिनिधियों को त्रिपुरा विधानसभा चुनावों के मद्देनजर नोटिस जारी किया था। यह नोटिस उन्हें चुनाव के ठीक एक दिन पहले तक सोशल मीडिया पर ट्वीट करने के विरूद्ध जारी किया गया था।
चुनाव आयोग का पक्ष –
- पार्टियों ने जो ट्वीट किए थे, वे जन प्रतिनिधि कानून, 1951 की धारा 126 के कुछ भाग का उल्लंघन करते थे।
- कानून का यह भाग मतदान के 48 घंटे पहले, चुनाव प्रचार पर रोक लगाता है। इसका उद्देश्य मतदाताओं को पूर्वाग्रह के बिना मतदान करने के लिए तैयार करना है।
- सोशल मीडिया के समय में इस प्रकार का नियंत्रण कठिन हो गया है। इसे देखते हुए चुनाव आयोग ने एक समिति गठित की थी। समिति ने चार साल पहले कुछ सुझाव दिए थे। चुनाव आयोग की अपीलें भी राजनीतिक दलों पर बहुत असर नहीं दिखा रही हैं।
आस्ट्रेलिया में भी मतदान पहले चुनाव प्रचार पर रोक का प्रावधान है, जिसे ‘ब्लैक आउट पीरिएड’ के नाम से जाना जाता है। वहाँ भी सोशल मीडिया के कारण इस कानून की विफलता की समस्या आ रही है। अतः अब समय आ गया है, जब चुनाव आयोग को इस समस्या से मुक्त करने के लिए संसद कोई हल निकाले।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 18 फरवरी, 2023
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