बढ़ते साइबर हमले
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हाल ही में भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान या एम्स जैसे महत्वपूर्ण निकाय पर साइबर हमला हुआ है। इस हमले ने देश के महत्वपूर्ण स्वास्थ्य क्षेत्र को अस्त-व्यस्त करके कुछ ही मिनटों में लाखों जिन्दगियों को खतरे में डाल दिया था। यह हमला हमें डिजीटल इंडिया की सुरक्षा का अवलोकन करने को मजबूर करता है। कुछ बिंदु –
- इस हमले के लिए ‘हाईजैक’ शब्द का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसका कारण यह है कि हमलावरों ने डेटा को अनलॉक करने के लिए 200 करोड़ रुपयों की बड़ी राशि की मांग की है। यह फिरौती की रकम की तरह ही है।
- आईटी उद्योग में इस प्रकार के हमले को ‘रैनसमवेयर हमला’ कहा जाता रहा है। यह आम हो चला है।
- चिंता की बात यह है कि हमारे देश के सार्वजनिक नेटवर्क यानि ‘इंटरनेट’ से इस प्रकार के हमलों की आशंका बहुत अधिक बढ़ जाती है।
भारत तेजी से डिजटलीकरण कर रहा है। इस स्थिति को देखते हुए एक व्यापक साइबर सुरक्षा योजना आवश्यक हो चुकी है। सन् 2018 में संविधान पीठ ने आधार कार्ड से जुड़े नागरिकों के निजी डेटा की सुरक्षा पर विस्तार से बहस की थी, और उच्चतम न्यायालय ने आधार पंजीकरण को अनिवार्य बनाने पर रोक भी लगा दी थी। बावजूद इसके इसे अनिवार्य बना दिया गया।
भारत सरकार को नागरिकों की व्यक्तिगत सुरक्षा के बारे में सोचते हुए कोई ठोस नीति बनानी चाहिए। इस हेतु सरकारी और निजी क्षेत्र एक साथ मिलकर साइबर सुरक्षा बोर्ड की स्थापना कर सकते हैं।
वास्तविकता यही है कि कोई भी सरकार कहीं भी महत्वपूर्ण निजी डेटा की सुरक्षा की पूरी-पूरी गारंटी नहीं दे सकती। अतः ऐसा कोई तंत्र विकसित किया जाना चाहिए कि व्यक्तिगत पहचान से संबंधित डेटा को स्टोर किए जाने की जरूरत ही न हो।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित मिशी चौधरी और फैजल फारूखी के लेख पर आधारित। 14 दिसंबर, 2022