हिंद महासागर क्षेत्र में चीन का बढ़ता प्रभाव
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दक्षिण एशियाई समुद्री क्षेत्र में चीन का बढ़ता प्रभाव भारत के लिए एक समस्या बना हुआ है। इसका ताजा उदाहरण श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर चीनी जासूसी पोत युआन वांग 5 का पहुंचना है। ऐसा अनुमान है कि यह चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) के रणनीतिक सहयोग फोर्स द्वारा संचालित किया जाता है।
श्रीलंका पर चीन के प्रभाव और दबाव को कम करने के लिए भारत हर प्रकार से श्रीलंका की सहायता कर रहा है। हिंद महासागर के जल में चीनी पोतों के अस्तित्व से चिंतित भारत की परेशानी को समझते हुए, पहले कोलंबो ने इस पोत की यात्रा को स्थगित कर दिया था। परंतु चीन के उच्चस्तरीय आवेदन के बाद कोलंबो पीछे हट गया।
श्रीलंका को अपने बड़े विदेशी ऋण के पुनर्गठन और आईएमएफ से मदद की अर्हता प्राप्त करने के लिए चीन के समर्थन की आवश्यकता है। कोलंबो ने चीनी ऋण से अनेक परियोजनाओं को शुरू किया, जो सफेद हाथी सिद्ध हुई हैं। इस दबाव में उसने हंबनटोटा बंदरगाह भी चीन को 99 साल की लीज़ पर दे दिया है।
यह भारत के लिए बड़ा सिरदर्द बन गया है। चीन के पास आज दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है। वह तेजी से सैन्य जहाजों का उत्पादन कर रहा है। पिछले आठ वर्षों में पीएलए के पुनर्गठन का मुख्य लक्ष्य नौसेना की शक्ति को बढ़ाना रहा है। इसलिए, चीन अब युद्धपोतों का उपयोग करके ग्रे-जोन समुद्री रणनीति की एक विस्तृत श्रृंखला तैनात कर सकता है। हाल ही में उसने ताइवान जलडमरूमध्य में ऐसा कर दिखाया है। ज्ञातव्य हो कि 2019 में एक और चीनी पोत ने वियतनामी अपतटीय ब्लॉक में तेल और गैस उत्पादन में बाधा डालने का प्रयत्न किया था। इस क्षेत्र में ओएनजीसी भी है।
यह सब देखते हुए भारत के लिए हिंद महासागर क्षेत्र में अपने रणनीतिक हितों की रक्षा करना आसान नहीं होगा। इस प्रकार की बाधाओं का मुकाबला करने के लिए उसे क्वाड के साथ मिलकर काम करना चाहिए।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 17 अगस्त, 2022