भारतीय सैन्य-उत्पादों का स्वदेशीकरण
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भारतीय रक्षा उत्पादन को अगले स्तर तक ले जाने के लिए अनुसंधान एवं विकास में भारी निवेश की आवश्यकता है। यूक्रेन-रूस युद्ध ने इस वास्तविकता को स्पष्ट कर दिया है कि भारत, विदेशी रक्षा आयात पर बहुत अधिक निर्भर है। यह देखते हुए रक्षा मंत्रालय ने सैन्य प्लेटफार्मों के स्वदेशीकरण के लिए 76,390 करोड़ रु. की परियोजनाओं को मंजूरी दे दी है। ऐसे स्वदेशीकरण की काफी समय से जरूरत रही है। इस परियोजना के कुछ मुख्य बिंदु –
- सभी प्रस्तावित पूंजी अधिग्रहण ‘बाय एंड मेक इंडियन’ के तहत किया जाएगा।
- नौसेना के लिए आठ नेक्स्ट जेनरेशन कोर्वेट का निर्माण, पहिएदार बख्तरबंद लडाकू वाहनों की खरीद और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा डोर्नियर विमान और सुखोई-30 एमकेआई एयरो-इंजन का निर्माण किया जाएगा।
- आठ स्वदेशी कोर्वेट के प्रस्तावित निर्माण के लिए प्रतिस्पर्धी बोली के माध्यम से एक भारतीय शिपयार्ड का चयन किया जाएगा।
भारत के कुल सैन्य उत्पादों में से कम से कम 50% से अधिक रूसी हैं। यूक्रेन के साथ युद्ध में रूसी उत्पादों का प्रदर्शन खराब रहा है। इस प्रकार, भारत को इस स्थिति से बाहर निकलने के लिए स्वदेशीकरण को स्मार्ट तरीके से करना होगा। हम अभी भी सैन्य विमानों के लिए पूरी तरह से स्वदेशी एयरो इंजन विकसित करने से दूर हैं। हमारी अधिकांश सफलता सहायक पुर्जों में रही है। अब हमें विश्वविद्यालयों, निजी क्षेत्र और सार्वजनिक रक्षा उपक्रमों के साथ मिलकर काम करने वाले एक अत्याधुनिक सैन्य-औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र को विकसित करने की आवश्यकता है। इसके साथ ही अर्थव्यवस्था को उच्च एवं सतत दर से आगे बढ़ाना होगा।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 8 जून, 2022