ए एफ एस पी ए कानून को निरस्त किया जाए ?
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हाल ही में नगालैण्ड कैबिनेट ने राज्य से आर्मड फोर्सेस स्पेशल पावर्स एक्ट या ए एफ एस पी ए को हटाने की मांग की है। यह मांग, सुरक्षा बलों द्वारा मारे गए 13 नागरिकों के मद्देनजर आई है। पूर्वोत्तर राज्यों में पहले भी ऐसी मांग की जाती रही है। हाल की घटना के बाद वहाँ के राजनैतिक नेतृत्व को ऐसा लगने लगा है कि इस अधिनियम से सशक्त बलों को मिलने वाली शक्तियों के चलते स्थानीय जनता में भारत सरकार के विरूद्ध असंतोष जन्म ले सकता है। यह जो शांति प्रक्रिया में बाधा डाल सकता है।
क्या है एएफएसपीए या आफस्पा ?
यह कानून मूलतः ब्रिटिश राज्य में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बनाया गया था। नेहरू ने इसे चलाए रखा। 1958 में यह अधिनियम के रूप में लाया गया।
आतंकवाद के चरम दौर में इसे पूर्वोत्तर भारत, जम्मू-कश्मीर व पंजाब में लागू किया गया था। अब पंजाब, त्रिपुरा और मेघालय से इसे हटा लिया गया है।
यह अधिनियम सशस्त्र बलों को विशेष शक्तियां प्रदान करता है। धारा 3 के तहत, किसी क्षेत्र के अशांत घोषित होने के बाद, केंद्र या किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा, यह कानून राज्य या उसके कुछ हिस्सों पर लगाया जा सकता है। अधिनियम में अशांत क्षेत्रों को इस रूप में परिभाषित किया गया है, जहां नागरिकों की सहायता के लिए सशस्त्र बलों का उपयोग आवश्यक है।
अधिनियम की कठोरता –
अधिनियम को कठोर माना जाता रहा है। यह सशस्त्र बलों को कानून का उल्लंघन करने वाले या हथियार, गोला-बारूद ले जाने वाले किसी भी व्यक्ति को सीधे गोली मारने की अनुमति देता है। इसके अंतर्गत बिना वारंट के गिरफ्तारी की जा सकती है।
अधिनियम में ऐसी कार्यवाही के लिए सशस्त्र बलों को सुरक्षा की गारंटी दी गई है। उनके खिलाफ कोई मुकदमा या कानूनी कार्यवाही नहीं हो सकती है।
कानून कितना औचित्यपूर्ण
इस कानून को हटाने की मांग लंबे समय से चल रही है। ज्ञातव्य हो कि मणिपुर की सामाजिक कार्यकर्ता ईरोम शर्मिला ने इसका विरोध करते हुए 16 वर्षों तक भूख-हड़ताल की थी। अनेक राज्य सरकारें भी इसे हटाने की मांग करती रही हैं।
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि स्थानीय लोग अपने निजी विवादों में बदला लेने के लिए सुरक्षा बलों को झूठी खबर देकर लोगों को मरवा देते हैं। इन फर्जी मुठभेड़ों के विरोध में 2012 में उच्चतम न्यायालय में मामला भी दायर किया गया था, जिस पर जांच समिति का गठन किया गया। एक-दो मामलों के अलावा ऐसे मामलों में अब तक कोई दण्ड नहीं दिया गया है।
इस विडंबना और विषमता को दूर करने के लिए जल्द ही कदम उठाए जाने चाहिए। अन्यथा इन क्षेत्रों में चल रहे शांति प्रयास निरर्थक ही साबित होंगे।
विभिन्न समाचार पत्रों पर आधारित।