उच्चतम न्यायालय का बोझ कम करने हेतु
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हाल ही में अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कम-से-कम चार क्षेत्रीय अपील न्यायालयों या रिजनल कोर्ट ऑफ अपील (आरसीए) के गठन की सिफारिश की है। इसका लक्ष्य उच्चतम न्यायालय में लंबित मामलों के बोझ को कम करना है। ऐसा होने पर उच्चतम न्यायालय अपना पूरा ध्यान संवैधानिक मामलों पर केंद्रित कर सकेगा।
अटार्नी जनरल के मुख्य तर्क –
- विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में 15 न्यायाधीशों वाली आरसीए का गठन हो।
- 15 न्यायाधीशों वाला उच्चतम न्यायालय हो। इसमें 5 न्यायाधीशों वाली तीन संविधान पीठ हों।
कुछ अन्य तथ्य –
- उच्चतम न्यायालय में लंबित मामलों की संख्या बहुत बढ़ गई है। अप्रैल 2019 की तुलना में यह वर्तमान में 12,000 और अधिक हो गई है।
- अनुच्छेद 370 और सीएए जैसे 400 से अधिक संवैधानिक पीठ के मामले 5 , 7 और 9 न्यायाधीशों की पीठ के समक्ष लंबित पड़े हैं। आदर्श रूप में तो इनकी सुनवाई के लिए, पीठ में अधिक न्यायाधीश होने चाहिए। परंतु निचली अदालतों के आदेशों के विरूद्ध एवं अन्य अनेक मामलों में उलझे न्यायाधीशों को इसके लिए समय नहीं है।
इसकी तुलना में अमेरिकी उच्चतम न्यायालय बहुत चयनात्मक है। इसकी मदद के लिए वहाँ 13 सर्किट न्यायालय भी काम करते हैं।
आरसीए का स्वरूप –
- विभिन्न क्षेत्रीय न्यायालयों की स्थापना करने वाला कानून यह सुनिश्चित करेगा कि इन्हें अपील की अंतिम संस्था के रूप में निर्धारित किया जाए।
- न्यायाधीशों के स्तर को उच्चतम न्यायालय के स्तर का सुनिश्चित करना होगा। अन्यथा असंतुष्ट वादी क्षेत्रीय न्यायालयों के निर्णयों के बावजूद, संविधान द्वारा प्रदत्त न्यायिक समीक्षा की उच्चतम न्यायालय की व्यापक शक्तियों पर भरोसा करना जारी रखेंगे।
निष्कर्ष – निम्न न्यायपालिका की गुणवत्ता का बढ़ावा देने के लिए एक अखिल भारतीय न्यायिक सेवा की आवश्यकता है। यह याद रखा जाना चाहिए कि उच्च न्यायालयों का बोझ कम करने के लिए बनाए ट्रिब्यूनल के बहुत अच्छे परिणाम नहीं मिले हैं। बेहतर कानूनों और उसके लिए प्रतिबद्ध कर्मियों के बिना, मामलों का बोझ कम नहीं हो सकता है। इसके लिए उच्चतम न्यायालय को ढृढ़ और निर्भय होना होगा। उम्मीद की जा सकती है कि आरसीए के प्रस्ताव पर न्यायपूर्ण पहल हो।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 30 नवम्बर, 2021