बैड बैंक – कितना सार्थक ?
Date:01-11-21 To Download Click Here.
केंद्र सरकार ने नेशनल एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड (एनएआरसीएल) का गठन किया है। इसका गठन कंपनी अधिनियम के अंतर्गत किया गया है। इस अधिनियम का उद्देश्य व्यावसायिक बैंकों की गैर निष्पादित संपत्ति के परिमार्जन के लिए ‘बैड बैंक’ स्थापित करना है।
बैड बैंक क्या है, और इसकी जरूरत क्यों ?
भारतीय बैंकों में ऐसी बहुत सी गैर निष्पादित सम्पत्तियाँ हैं, जो अलग-अलग बैंकों में फैली हुई हैं। इनके कारण बैंक बहुत से कानूनी एवं संस्थानीय नियमों में फंसे रहते हैं। बैड बैंकों की स्थापना बैंकों की बैलेंसशीट से खराब सम्पतियों को हटाने और पूंजी को मुक्त करने के लिए की गई है। ऐसा होने पर बैंक उधार दे सकने में सक्षम हो जाएंगे।
आर्थिक विकास के लिए ऋण वृद्धि महत्वपूर्ण है। बैड बैंक का मुख्य उद्देश्य खराब परिसम्पतियों को मौजूदा बैंकों की बैलेंसशीट से हटाना और उन्हें एक बैड बैंक के भीतर समेकित (कंसॉलिडेट) करना है।
इस कार्य में नेशनल रिकंस्ट्रक्शन कंपनी का समयबद्ध ऋण निवारण में मदद के लिए इंडिया डेट रिजाल्यूशन कंपनी लिमिटेड उपस्थित रहेगी। अगर यह भी बैड लोन को ठीक दामों पर नहीं बेच पाएगी, तो केंद्र सरकार एक निश्चित बजट तक मदद करेगी।
अब देखना यह है कि एनएआरसीएल और इंडिया डेट रिजाल्यूशन कंपनी मिलकर बैंकिंग सिस्टम को ठीक कर पाते हैं या नहीं ?
इस संबंध में कुछ चुनौतियां हैं –
- एनएआरसीएल और बैंकों के बीच छूट के संबंध में स्पष्टता की कमी है।
- बैड बैंक एनपीए के एक छोटे हिस्से को ही संबोधित करेगा। सच्चाई यह है कि बैड लोन तो व्यापार चक्र का सामान्य हिस्सा है। डाउन सायकल के दौरान बैड लोन बढ़ता है। लेकिन अप सायकल में बैड लोन अनुपात नीचे आता है। विचार यह है कि बैड बैंक इस बैड लोन का एक अनुपात में प्रबंधन करता रहेगा।
- इस दौर में डिफॉल्ट ऋण का बड़ा हिस्सा कॉर्पोरेट ऋण रहा है, क्योंकि पूंजी गहन परियोजनाओं को वित्तीय सहायता देने के लिए सरकार ने वित्तीय संस्थानों को वाणिज्यिक बैंकों की स्थापना की अनुमति दी। परियोजनाओं में निवेश के लिए जो वित्तीय सहायता दी गई, उसका भार सरकार ने सार्वजनिक बैंकों को हस्तांतरित कर दिया। यह एक बोझ था, जिसे बैंकों पर नहीं डाला जाना चाहिए था।
- सरकार ने यह भी स्पष्ट कहा है कि 2 लाख करोड़ रु. तक के बैड लोन की रिकवरी में वह 30,600 करोड रु. तक के गैप को ही भर सकती है। इसका अर्थ है कि बड़े कॉर्पोरेट तो बैड लोन में भारी छूट प्राप्त करके ऐसे ही निकल जाएंगे। यह पूरी तरह ठीक नहीं है।
अंततः डिफॉल्टरों के लिए आपराधिक गतिविधि की प्रक्रिया अलग है।
इसके अलावा बैड बैंक, बैंकिंग कर्मियों की ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। इसे एक आवर्ती (रेकरिंग) प्रक्रिया के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, जिसमें शेष राशि मौजूदा बैंकिंग बैलेंस शीट से सिस्टम में चलती रहती है। यदि ऐसा होता है, तो यह नैतिक खतरे को आमंत्रित करना होगा, जहां बैंक की ओर से उबरने का कोई प्रयास नहीं किया जाता है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संवाद पर आधारित। 8 अक्टूबर, 2021