डेटा का राष्ट्रीयकरण राष्ट्र का कितना हित करेगा ?  

Afeias
26 Aug 2020
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Date:26-08-20

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पूरे विश्व में इंटरनेट के माध्यम से ली जाने वाली विभिन्न जानकारियों से प्राप्त डेटा की सुरक्षा को लेकर सभी देश अपनी-अपनी रणनीति बनाने में लगे हैं। भारत में भी इस हेतु विशेषज्ञों की एक समिति बनाई गई है , जो डेटा के राष्ट्रीयकरण से संबंधित सिफारिशें प्रस्तुत करेगी। समिति ने सिफारिश की है कि भारत सरकार ही डेटा संबंधी अधिकारों के लिए अंतिम पैरोकार होगी। वह ‘गैर व्यक्तिगत डेटा प्राधिकरण’ नामक एक प्रस्तावित नियामक के माध्यम से इस बात का निर्णय करेगी कि सरकार या कोई निजी कंपनी , भारत की किसी कंपनी से गैर-व्यक्तिगत डेटा ले सकती है या नहीं।

मुख्य बातें –

  • तथ्यात्मक डेटा निःशुल्क दिया जाएगा।
  • किसी भी कंपनी के लिए आगामी वर्ष की क्षेत्रीय मांग को जानने जैसा मूल्यवर्धित डेटा उचित मूल्य पर गैर भेदभावपूर्ण तरीके से उपलब्ध हो सकेगा।
  • भारत में उद्यमियों और व्यावसायियों को संदेश दिया गया है कि भारत सरकार या डेटा ट्रस्टी ही किसी कंपनी द्वारा एकत्रित या सृजित किए गए डेटा पर स्वामित्व रखती है।
  • प्रतिस्पर्धा , आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस , विकास और भविष्य की अर्थव्यवस्था के लिए डेटा के महत्व को देखते हुए ऐसा किया जा रहा है।
  • किसी कंपनी का प्रभाव बनाने के लिए डेटा की समीक्षा के द्वारा उत्पाद या कंटेंट को नया और प्रभावशाली बनाया जाता है। समिति का मानना है कि किसी एक के प्रभुत्व में रहने वाले डेटा को सबके लिए उपलब्ध कराने से देश को लाभ होगा।

सिफारिश की विफलता

  • किसी एक कंपनी में डेटा शेयर करने वाला व्यक्ति अनेक मंचों पर उपस्थित रहता है। अंतः एक कंपनी के डेटा पर अपना स्वामित्व रखकर भी सरकार उसके प्रसार को रोकने में विफल हो सकती है।
  • चीन से प्रतिस्पर्धा के चलते अगर हम डेटा के राष्ट्रीयकरण के द्वारा आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस में श्रेष्ठता हासिल करने की सोच रखते हैं , तो यह दो कारणों से सफल नहीं हो सकती।
  1. शोध बताते हैं कि एआई को कम डेटा से भी प्रशिक्षण देकर आउटपुट प्राप्त किया जा सकता है।
  1. ए आई पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण के लिए कंप्यूटिंग पावर , स्टोरेज और डेटा वैज्ञानिकों आदि की आवश्यकता होती है , ताकि इंजीनियरिंग और प्रशिक्षण डेटासेट के लिए मॉडल बनाया जा सके।
  • बेनामी डेटा स्वतंत्र रूप से उपलब्ध कराए जाने से पुर्नमूल्यांकन , निगरानी और समूह की गोपनीयता के खतरे बढ़ जाते है।

अतः हमें 2016 में प्रस्तावित भारत सरकार की ओपन लाइसेंसिंग को ही मान्य करना चाहिए। इससे गैर प्रतिस्पर्धी डेटा को सार्वजनिक हित के लिए उपयोग में लाया जा सकेगा। हमें वैकल्पिक डेटा मार्केटप्लेस की भी आवश्यकता है। डेटा पोर्टेबिलिटी के लिए उपयोगकर्ताओं को नई सेवाओं के लिए अपना डेटा लेने के चुनाव का अधिकार दिया जाना चाहिए।

हमें प्रतिस्पर्धा की दौड़ में शामिल होने की चिंता न करते हुए अपने वाणिज्य और निवेश की प्राथमिकता पर ध्यान देना चाहिए।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित निखिल पाहवा के लेख पर आधारित। 9 अगस्त , 2020