विकास के साथ कोई समझौता न हो

Afeias
10 Jun 2020
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Date:10-06-20

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हाल ही में केन्द्र ने लॉकडाउन की अस्थिरता से निपटने के लिए राज्यों को और अधिक उधार लेने की अनुमति प्रदान कर दी हैा इस प्रावधान को चार क्षेत्रों के साथ जोड़ा गया है। इसमें एक राष्ट्र , एक राशन कार्ड ; व्यापार में सुगमता , विद्युत वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) में सुधार ; और शहरी निकायों में सुधार जैसे प्रमुख क्षेत्र हैं।

  • केन्द्र सरकार ने प्रवासी मजदूरों की समस्या को देखते हुए मुफ्त अनाज और दाल की पेशकश की है। उनके रॉशन कार्ड पर सभी राज्यों को अनाज देने का निर्देश दिया गया है। इसे एक उपयुक्त डिजाइन के माध्यम से आई टी सिस्टम व्दारा संचालित किया जा सकेगा, जिसका संबंध आधार-कार्ड से होगा। इसमें राज्यों को गतिशील मांग से निपटने के लिए आपूर्ति श्रृंखला और सूची प्रबंधन का कुछ अतिरिक्त भार अवश्य लेना पड़ेगा।
  • सूक्ष्म , लघु और मझोले उद्योगों को अपनी आय और नौकरियां बहाल करने के लिए समर्थन की जरूरत है। व्यापार में सुगमता लाने हेतु कदम उठाने लिए भूमि, बिजली और पानी के कनेक्शेन के लिए अनुमति व्यापार-व्यवसाय के लिए मौजूदा और नई संस्थाओं के पंजीकरण में तत्परता परमिट देना आदि आवश्यक हैं।

विनिर्माण की जो कंपनियां चीन से हटकर दूसरे देशों में जमना चाहती हैं, उनके लिए ईज ऑफ डुईंग बिजनेस बहुत महत्व रखता है।

  • बिजली वितरण में सुधार करते हुए किसानों को मुफ्त बिजली देने और बिजली चोरी को रोकने की केन्द्र की मंशा है। राज्यों के बिजली विभाग की बहुत बड़ी राशि बकाया है। उपभोक्ताओं को तो इसका भुगतान करना ही होगा।
  • वित्त आयोगों ने राज्यों को जोर देकर कहा है कि वे वास्तविक उपयोगकर्त्ता शुल्क लगाकर स्थानीय निकायों की शक्ति बढ़ाएं। इन निकायों के पास अनेक दायित्व हैं, लेकिन राजस्व के नाम पर संपत्ति कर जैसे गिने-चुने स्रोत ही हैं। अतर:  इन्हें म्यूनिसिपल बांड जारी करने की छूट दी जानी चाहिए।

सामान्यतर : राज्यों को अपने राजस्व विस्ता‍र के लिए बहुत ही कम छूट है, और वे अपने बजट के लक्ष्य  से एक रुपया भी ऊपर उधार नहीं ले सकते, परन्तु  फिलहाल आर बी आई ने उनके अर्थोपार्जन की सीमा का विस्तार करके उन्हें अस्थानयी तरलता बढ़ाने की सुविधा दे दी है। अब राज्य , अपने जीडीपी का 5% तक उधार ले सकते हैं। इसकी सीमा पहले 3% हुआ करती थी। साथ ही उनकी ऋण की लागत को बढ़ा दिया गया है। इसलिए राज्‍यों को इस सीमा- विस्तार से कोई वास्तविक लाभ नहीं होने वाला है।

केन्द्री सरकार को ऋण लेना सस्ता पड़ता है। अच्छा तो यही होता कि केन्द्र  सरकार उधार लेती, और उन्हें राज्यों तक पहुँचाती। इससे केन्द्र सरकार के वित्तीय घाटे के बढ़ने का अंदेशा रहता है, लेकिन राज्यों और केन्द्री के संयुक्त वित्तीय घाटे में कोई इजाफा नहीं होता।

फिर भी राज्य  और केन्द्र  सरकार को अपने विकास कार्यक्रमों को नहीं रोकना चाहिए। इसका प्रभाव जीडीपी के संकुचन के रुप में सामने आ सकता है। अत: केन्द्र सरकार को चाहिए कि वह वित्तीय घाटे की चिंता किए बिना उधार दे। फिलहाल, गैर सरकारी क्षेत्रों में निवेश कम हो रहा है , इसलिए सरकार के लिए उधार लेना भी आसान होगा।

अभी पूरा विश्व एक प्रकार की अनिश्चितता का सामना कर रहा है। इस समय केन्द्र और राज्य‍ सरकारों का दायित्व है कि वे अपने धनार्जन व्यय के लिए हुए आवंटन और मांग व विकास में जान डालने के लिए किए जा रहे उपायों से जनता को अवगत कराते रहें।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित हेमा रामकृष्णन् के लेख पर आधारित। 23 मई 2020