असम राइफल्स में परिवर्तन का दौर
Date:10-12-19 To Download Click Here.
हाल ही में गृह मंत्रालय ने असम राइफल्स के इंडो-टिबेटियन बार्डर पुलिस में विलय का प्रस्ताव रखा है। ऐसा होने पर इसका संचालन गृह मंत्रालय के अधीन आ जाएगा।
ज्ञातव्य हो कि असम राइफल्स सबसे पुराना केन्द्रीय अद्र्ध सैनिक बल है, जिसका प्रशासनिक नियंत्रण गृह मंत्रालय और परिचालनात्मक नियंत्रण सेना के अधीन है। इसका इतिहास बहुत पुराना है, जो 1935 के ब्रिटिश काल में ले जाता है। इसका गठन अंग्रेजों ने पूर्वोत्तर भारत में शांति की स्थापना के लिए किया था। समय के साथ इसका विस्तार होता गया, और 1962 के चीन-भारत युद्ध के दौरान इसे एक बटालियन के रूप में सेना के अधीन कर दिया गया।
दूसरी ओर, आईटीबीपी ने लद्दाख में 18,700 फीट की ऊँचाई पर भारतीय सीमा की रक्षा में अपना झंडा गाड़ रखा है। 2001 में “एक सीमा एक बल“ की बात की गई। कहा गया कि आईटीबीपी यदि लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर तैनात हो सकती है, तो अरुणाचल की भारत-चीन सीमा पर क्यों नहीं?
असम राइफल्स के दोहरे नियंत्रण को व्यर्थ मानते हुए और सीमा रक्षा से जुड़े उसके कार्य की आईटीबीपी के साथ एकरूपता को देखते हुए ही गृह मंत्रालय ने इसके विलय का निर्णय लिया है। सेना में इस निर्णय को लेकर असंतोष है, जिसके कुछ कारण हैं –
1.इस विलय से सेना के पदोन्नति के अवसरों पर प्रभाव पड़ेगा।
फिलहाल मेजर से ऊपर के 80 प्रतिशत पदों पर सेना के अधिकारी ही आसीन हैं। असम राइफल्स के डायरेक्टर जनरल के पद पर भी सेना के अधिकारी की नियुक्ति है। विलय से सेना के लिए उच्च पदों के अवसर कम हो जाएंगे।
2.फिलहाल इस विलय के बाद सर्वोच्च पद पर किसी भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी के बैठाने की बात चल रही है। पुलिस सेवा और केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल में प्रतिद्वंदिता चलती रहती है। अंततः असम राइफल्स के अधिकारी को ही उच्च पद दिया जाना चाहिए।
3.विलय का यह मामला अभी सुरक्षा पर बनी केबीनेट समिति के विचाराधीन है। इस पर जल्द से जल्द निर्णय किया जाना चाहिए, जिससे कि दोहरा नियंत्रण झेल रहे असम राइफल्स को राहत मिले, और प्रतिनियुक्ति पर गए सेना के अधिकारियों के वापस लौटने से असम राइफल्स में कोई अव्यवस्था न पनपे।
भारतीय सेना का मानना है कि इस विलय से भारत के सीमा प्रबंधन, पूर्वोत्तर भारत सुरक्षा परिदृश्य तथा भारत-चीन सीमा की निगरानी पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
4.निर्णय से जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों पर भी नकारात्मक असर पड़ेगा।
5.भारत-म्यांमार सीमा की सुरक्षा और वामपंथी उग्रवाद प्रभावित जिलों में नक्सलवाद और माओवाद से निपटने की दृष्टि से यह विलय तार्किक नहीं है।
6.असम राइफल्स के कार्य सैन्य और विशुद्ध अद्र्ध सैनिक बल वाले हैं। इसलिए इसका पुलिस बल के रूप में श्रेणीबद्ध करना अतार्किक, मनमाना और कर्मचारियों के अधिकारों का उल्लंघन करने वाला है।
7.इस विलय के बाद चीन से लगी पूर्वी सीमा अपने पारंपरिक अभियानों में सेना को असम राइफल्स का साथ नहीं मिल पाएगा।
‘द हिन्दू’ में प्रकाशित एम.पी.नथनेल के लेख पर आधारित। 8 नवंबर, 2019