देश में दो टाइम-ज़ोन का होना क्या उचित है ?
Date:08-04-19 To Download Click Here.
भारत भूमि विशाल है। इसकी पश्चिमी और पूर्वी सीमाओं के बीच की दूरी देशांतर के 29 डिग्री को पार करती है। समय के पैमाने पर देखा जाए, तो इसकी पूर्वी और पश्चिमी सीमा के बीच सूर्य के उगने और ढलने के समय में लगभग दो घंटे का अंतर मिल जाता है। यही कारण है कि देश में समय-समय पर क्षेत्रवार समय निश्चित करने पर जोर दिया जाता है। अक्टूबर, 2018 में भी करेंट साइंस में प्रकाशित एक लेख में पुनः इस प्रकार की मांग की गई है। इस लेख में भारत को यूनिवर्सल कॉर्डिनेटेड टाइम (जिसे पहले आईएसटी या इंटरनेशनल स्टैण्डर्ड टाइम कहा जाता था) के अंतर्गत दो भागों में विभक्त करने की मांग की गई है।
इस मांग के कुछ निम्नलिखित कारण हैं-
(1) सूर्योदय और सूर्यास्त के साथ अनेक मानवीय गतिविधियों का संबंध होता है। पूर्वोत्तर राज्यों के विधायकों और व्यवसायियों के अनुसार क्षेत्र में सूर्योदय जल्द होने के बावजूद देश में एक ही टाइम-ज़ोन होने से सुबह के बहुत से घंटे व्यर्थ चले जाते हैं। शीतकाल में समस्या और भी बढ़ जाती है, क्योंकि तब सूर्यास्त और जल्दी होने लगता है।
(2) किसी भी प्रकार की रेलवे दुर्घटना से बचने के लिए समय सीमांकन की प्रस्तावित सीमा पर स्थानिक विस्तार को कम करना।
(3) प्रस्तावित टाइम-ज़ोन से बिजली की बचत होगी।
(4) देश को दो टाइम-ज़ोन में बांटने के काम को तकनीकी रूप से कार्यान्वित किया जाना।
अगर थोड़ा पीछे मुड़कर देखें, तो हम पाते हैं कि देश में बॉम्बे टाइम और कलकत्ता टाइम जैसे दो विभाजन 1955 तक चलते रहे। दूसरे, रेल्वे का निर्माण और संचालन निजी पार्टियों द्वारा किया जाता था। इसलिए आधिकारिक समय से उनका कोई लेना-देना नहीं था। उनका अपना टाइम-टेबल था। 20वीं शताब्दी के प्रारंभ तक ब्रिटेन की रेलवे की समय-सारिणी, स्थानीय और मानक, दो भागों में बटी हुई थी। यही कारण है कि लेख में रेलवे के परिचालन में इस मुद्दे को शामिल करने की मांग की गई है।
जहाँ तक बिजली की बचत का मुद्दा है, इस पर विज्ञान और तकनीकी समिति ने परीक्षण किया है। सन् 2004 में संबंद्ध मंत्रालय ने इस मुद्दे पर दो टाइम-ज़ोन की मांग को खारिज कर दिया था।
अंतरराष्ट्रीय मानक समय में परिवर्तन किए बिना, पूर्वोत्तर राज्यों के कार्यालयों के समय में निश्चित रूप से परिवर्तन किया जा सकता है। इन क्षेत्रों के चाय-बागान स्थानीय समय के अनुसार ही चलते हैं।
देश में दो टाइम-ज़ोन को लेकर चाहे जितनी भी मांग की गई हो, परंतु हाल ही में गुवाहटी उच्च न्यायालय ने इससे संबंधित एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया है। लोकसभा में विज्ञान एवं तकनीकी मंत्री ने भी दो टाइम-ज़ोन के प्रस्ताव को सिरे से नकार दिया है।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित विवेक देबराय के लेख पर आधारित। 14 मार्च, 2019