पुराने नगरों को स्मार्ट सिटी बनाना संभव है।

Afeias
15 Mar 2019
A+ A-

Date:15-03-19

To Download Click Here.

वर्तमान संदर्भों में शहरीकरण विकास का प्रतीक माना जाने लगा है। ऐसा इसलिए, क्योंकि शहरों में रोजगार की संभावनाएं अधिक होती हैं। रोजगार मिलने से प्रतिव्यक्ति आय में बढ़ोत्तरी होती है, और यह राष्ट्रीय आय में योगदान करती है।

2011 की जनगणना के अनुसार 31 प्रतिशत जनता ही भारत के शहरों में निवास करती है। जलवायु संबंधी परिवर्तनों ने अनेक शहरों के अस्तित्व को चुनौती दी है। विशेषतः समुद्र किनारे बसे शहर अब मानव निर्मित आपदाओं से अछूते नहीं हैं। दूसरे, शहरों में बड़ी संख्या में कच्ची बस्तियां बन गई हैं। यद्यपि इनमें रहने वाले लोग शहरी जनसंख्या से संबंधित उच्च एवं मध्य वर्ग की अनेक आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, परन्तु स्वयं गरीबी का शिकार होने के साथ-साथ वे बुनियादी सुविधाओं से भी वंचित हैं। प्रत्येक शहर में बेतरतीब यातायात एक गंभीर समस्या बन गया है, क्योंकि सार्वजनिक परिवहन सेवाओं की कमी है। शहरों की सड़कों पर गड्ढे, सीवर प्रणाली का अभाव, बिजली, पानी एवं संचार सुविधाओं का अस्त-व्यस्त व असमान रूप शहरी जीवन को समस्यामूलक बना देता है।

कर्नाटक की नगर प्रबंधन संस्था ने सभी राज्यों में नगरों में चलाई जा रही अच्छी और सफल योजनाओं को अपनाकर राज्य के नगरों को मूलभूत समस्याओं से निजात दिलाने का प्रयत्न किया है। धारणीयता और कुशल प्रबंधन की मिसाल बनने वाले नगरों को पुरस्कृत करने का प्रावधान भी है। इससे सथानीय निकायों को सक्षम एवं प्रभावशाली प्रशासन के लिए नए तरीके अपनाने को प्रोत्साहन मिल रहा है।

बेंगलुरू शहर में बढ़ता ट्रैफिक एक समस्या बनता जा रहा था। इसके चलते हाल ही में वहाँ की ट्रैफिक पुलिस ने ट्रैफिक नियंत्रण के लिए एक अनुकूल सिस्टम की शुरूआत की है। इसमें वाहनों को बराबर ‘ग्रीन लाईट’ टाइम देकर उनके समय में बचत की कोशिश की गई है। भुवनेश्वर में भी इस पद्धति को अपनाया जा रहा है।

कचरा प्रबंधन की समस्या की चुनौती को स्वीकार करते हुए कर्नाटक का शिमोगा शहर एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है। यहाँ के सफाई कर्मचारी रात को शहर की सफाई में लगे रहते हैं। इसके लिए उन्हें पुरस्कार भी दिया जाता है।

बेलगावी शहर के निवासियों ने जब गीले और सूखे कूड़े को अलग रखने की सरकारी अपील को नहीं माना, तब वहाँ के स्कूलों के बच्चों को घर से सूखा कूड़ा लाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। सबसे ज्यादा कूड़ा लाने वालों को पुरस्कार भी दिया गया। इस कूड़े को बेचकर इकट्ठे किए गए धन का उपयोग गरीब बच्चों की पढ़ाई में किया गया।

मंगलुरू नगर एक औद्योगिक केन्द्र है। नगर कॉर्पोरेशन को कॉर्पोरेट सोशल रेस्पांसिबिलिटी के अंतर्गत मदद लेकर काम करने को प्रोत्साहित किया गया। इसके माध्यम से इस तटीय नगर को स्वच्छ के साथ-साथ सुंदर बना दिया गया। इस अभियान में सारा खर्च कंपनियों ने वहन किया। नगर निगम का इसकी देख-रेख करने की जिम्मेदारी निभानी पड़ी।

रामगर नगर परिषद् में 2017 के दौरान गीले कचरे के प्रबंधन के लिए एक विस्तृत योजना तैयार की गई। वहाँ के होटलों, कैंटीन आदि से निकले गीले कूड़े को बायोगैस और विद्युत उत्पादन के काम में लिया जाने लगा। इसके लिए शहर से बाहर 10 किलोवाट बिजली-उत्पादन की क्षमता वाला एक प्लांट लगा दिया गया। कर्नाटक राज्य में अपनी तरह की यह पहली योजना थी।

कर्नाटक राज्य के शहरों में किए जा रहे इन परिवर्तनों से अन्य राज्य भी बहुत कुछ सीख सकते हैं। इन्हें अपनाकर शहरीकरण के बढ़ते अव्यवस्थित बोझ को सुव्यवस्थित करने में सहायता मिल सकती है। उदाहरण बने इन नगरों की खास बात यह है कि इन्होंने पहले से ही उपलब्ध साधनों का ही ऐसा कुशल प्रबंधन किया कि जिसने नगर की तस्वीर बदल दी। अगर भारत के अन्य नगर भी इन पद्धतियों पर काम करने लगें, तो 2050 तक भारत के नगरों पर पड़ने वाला 50 प्रतिशत जनसंख्या का भार, बोझ नहीं रह जाएगा।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित कला एस श्रीधर और शीतल सिंह के लेख पर आधारित। 23 फरवरी, 2019