साइबर स्पेस में असुरक्षा
Date:17-07-18 To Download Click Here.
भारत में इंटरनेट उपभोक्ताओं की संख्या इस वर्ष बढ़कर 50 करोड़ होने जा रही है। परंतु डाटा की चोरी या उससे छेड़छाड़ के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। अप्रैल माह में डिजीटल सुरक्षा कंपनी जेमाल्टो ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया है कि 2017 में भारत के डाटा लीक मामलों में 78% की बढ़ोत्तरी हुई है। इनमें से अधिकतर चोरी सरकारी, रिटेल और तकनीकी क्षेत्र में हुई है। ऐसा नहीं है कि डाटा लीक की घटनाएं भारत तक ही सीमित हैं। विश्व के अनेक क्षेत्रों में स्वास्थ्य, शिक्षा एवं सरकार से जुडे डाटा की चोरी की घटनाएं क्रमशः बढती ही जा रही हैं।
फेसबुक जैसी बड़ी सोशल मीडिया कंपनी ने इस बात को स्वीकार किया है कि भारत के ही लगभग साढ़े पाँच लाख उपभोक्ताओं के डाटा को केम्ब्रिज एनालिटिका के साथ अनधिकृत तरीके से साझा किया गया। भारत में फेसबुक का उपयोग करने वाले लगभग 24 करोड़ लोग हैं। अनुमान लगाया जा सकता है, कि डाटा सुरक्षा के अभाव में इतने लोगों की व्यक्तिगत जानकारियां दांव पर लगी हुई है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट बताती है कि 2012-13 की तुलना में 2015-16 में ए.टी.एम, डेबिट-क्रेडिट कार्ड, नेटबैंकिग आदि में धोखेबाजी की घटनाओं में 35% की वृद्धि हुई है। इन घटनाओं का असर इंटरनेट के उपभोग की विश्वसनीयता पर पड़ रहा है।
रिपोर्ट बताती है कि अनेक लोग तकनीक के इस्तेमाल से पीछे हटने लगे हैं। वे अपनी निजी जानकारियों को किसी थर्ड पार्टी एप्लीकेशन पर साझा नहीं करना चाहते। मार्केट रिसर्च कंपनी, वेलोसिटी एम आर के अनुसार फेसबुक के डाटा लीक की घटना के बाद 24% भारतीय उपभोक्ताओं ने अपनी निजी जानकारियां साझा करने में बहुत कमी कर दी है। लोग सतर्क भी हो गए हैं। हांलाकि अगस्त, 2017 में उच्चतम न्यायालय ने निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार की श्रेणी में स्थान दिया था, परंतु इसकी सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं दी जा रही है। उपभोक्ताओं को कोई सुरक्षित रास्ता समझ में नहीं आ रहा है। बहरहाल, वे लगातार असमंजस की स्थिति में हैं।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित निखिला हेनरी के लेख पर आधारित। 5 जुलाई, 2018