बढ़ती असमानता पर नियंत्रण जरूरी है

Afeias
19 Jan 2018
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Date:19-01-18

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हाल ही में विश्व असमानता रिपोर्ट 2018 जारी की गई है। इस रिपोर्ट से भारत की आर्थिक प्रगति का भी अनुमान मिलता है। रिपोर्ट में बताया गया है कि संपूर्ण विश्व में ऊपर के 22 प्रतिशत लोग आय का अधिकांश हिस्सा ले जाते हैं। अगर भारत की तुलना चीन से की जाए, तो हम देखते हैं कि 1980 से लेकर भारत की 200 प्रतिशत आर्थिक प्रगति की तुलना में चीन ने 800 प्रतिशत की प्रगति की है। लेकिन भारत की तुलना में चीन में उतनी आर्थिक असमानता नहीं है। चीन में आय का अधिकांश भाग कमाने वाले 14 प्रतिशत लोग हैं, जबकि भारत में 22 प्रतिशत। साधारणतया यह माना जाता है कि आर्थिक विकास में तेजी आने के साथ असमानता भी बढ़ती है। परन्तु चीन के संदर्भ में इसका उल्टा हुआ है।

चीन और भारत दोनों ही कृषि-निर्भर समाज हैं। दोनों की राजनैतिक प्रणालियां बिल्कुल भिन्न रही हैं। 1950 में दोनों देशों की प्रति व्यक्ति आय लगभग समान थी। दरअसल, किसी देश में केवल प्रजातंत्र होने से उस देश की आर्थिक प्रगति में गति एवं असमानता में कमी नहीं आ जाती। एक घनी आबादी वाले गरीब देश को प्रगति पथ पर निरंतर आगे बढ़ने के लिए दूरदर्शी जनहित योजनाओं एवं स्थिर प्रशासन की आवश्यकता होती है। इसका उदाहरण हमें दक्षिण एवं उत्तर कोरिया में भी मिलता है। चीन और भारत के संबंध में देखें, तो निश्चित रूप से चीन ने कई आवश्यक पहलुओं पर भारत से बेहतर किया है।

  • चीन ने अपनी मानव-पूंजी के महत्व को उचित प्रकार से समझा और उसके विन्यास का विस्तार किया।
  • मानव-पूंजी की क्षमता को बढ़ाने के लिए उसने उनकी शिक्षा और स्वास्थ्य को मजबूत किया। भारत में आज भी उच्चतर माध्यमिक स्तर तक स्कूली शिक्षा प्राप्त लोग 15 प्रतिशत ही हैं। चीन ने 1970 में शिक्षा का जो स्तर प्राप्त कर लिया था, उसे भारत 21वीं शताब्दी में प्राप्त कर पाया।
  • शिक्षा और स्वास्थ्य के दम पर चीन ने पूरे विश्व में बड़े स्तर पर अपने उत्पाद पहुँचाने शुरू कर दिए। भले ही चीनी उत्पादों की गुणवत्ता खरी नहीं रही, लेकिन उनकी भरमार ने अनेक देशों के बाजारों पर अपना कब्जा कर लिया। सस्ती दर भी इसका एक कारण रही।
  • मानव-पूंजी के इस विन्यास-विस्तार में स्वाभाविक रूप से महिलाओं की भागीदारी भी बहुत अहम् रही।
  • चीन की प्रगति पूर्वी एशियाई देशों में हुई प्रगति का ही भाग रही है। यह कोई अपवाद नहीं रही। अंतर सिर्फ इतना है कि चीन अन्य देशों की अपेक्षा अधिक सत्तावादी रहा। साम्यवादी शासन होने के कारण यहाँ नागरिक अधिकारों की वैसी रक्षा नहीं की जा सकी, जैसी भारत ने की है। अधिकारों से ही मानवीय विकास संभव है।

अतः भारत में भले ही प्रति व्यक्ति आय कम रही हो, गरीबी भी निरंतर बनी रही हो और इसके कारण आय की असमानता बनी रही हो, परन्तु भारत में अनेक राज्य ऐसे हैं, जिनके मानवीय विकास का पक्ष चीन से बेहतर है।

भारत में वह क्षमता है कि वह नागरिकों को एक अधिकारयुक्त जीवन देने के साथ ही समाज में व्याप्त असमानता को दूर कर सकता है।

  • भारत को शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधार करना होगा।
  • गरीबों की समर्थक बने रहने की सरकारी नीति ने देश में मानव-पूंजी के विन्यास को फैलने से रोका है। अतः बढ़ती असमानता को दूर करने के लिए सरकार को नीति-परिवर्तन करने होंगे।

जन-नीति को इस प्रकार से गढ़ा जाना चाहिए कि सरकार समाज हित को ध्यान में रखते हुए निजी उद्यम को अधिक से अधिक बढ़ावा दे सके।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित पुलारे बालकृष्णन् के लेख पर आधारित।