धारणीय विकास लक्ष्य में समाज सेवियों की भागीदारी

Afeias
14 Mar 2017
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Date:14-03-17

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विश्व के अनेक देशों ने सन् 2030 तक विश्व का परिदृश्य बदलने के उद्देश्य से धारणीय विकास के लक्ष्यों को अपनाया है। धारणीय विकास का निहित लक्ष्य यही है कि विकास के नाम पर आने वाली योजनाओं और उसके परिणामों का लाभ सभी देशों को समान रूप से मिल सके। ये सत्रह लक्ष्य विविध आयामों को समेटे हुए हैं, और आपस में एक-दूसरे से गहरा संबंध रखते हैं। ये लक्ष्य जिस महान उद्देश्य को लेकर चल रहे हैं, उसकी पूर्ति के लिए गहन-निष्ठा, अथक प्रयास और ढेर सारी राशि की आवश्यकता होगी। साथ ही ये प्रत्येक देश के विविध संगठनों और व्यक्ति-विशेष से भी नवीन विचारों और अन्य योगदानों की अपेक्षा रखते हैं।

भारत भी धारणीय विकास लक्ष्यों की पूर्ति की दौड़ में शामिल है। केंद्र एवं राज्य सरकारों की बहुत सी नीतियां एवं योजनाएं धारणीय विकास को लक्ष्य करके ही बनाई जा रही हैं। ये लक्ष्य जितने बड़े हैं, उनकी पूर्ति के लिए सरकार के साथ व्यावसायियों और समाज सेवी संस्थाओं के सहयोग की भी जरुरत होगी। इन विकास-लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कुछ इस प्रकार का ढांचा तैयार किया जाना चाहिए, जिससे अभीष्ट राशि और उपलब्ध राशि में अधिक कमी न आने पाए।

सामाजिक विकास में निजी क्षेत्र के योगदान की अहम भूमिका होती है। जब लक्ष्य धारणीय विकास जैसे बड़े हों, तो यह और भी महत्वपूर्ण एवं अभीष्ट हो जाती है। भारत के संदर्भ में सामाजिक विकास के क्षेत्र में निजी एवं समाज सेवी संस्थाओं के योगदान को निम्न कुछ बिंदुओं में आसानी से समझा जा सकता है।

  • भारत के सर्वेक्षणों से पता चलता है कि सामाजिक विकास में निजी क्षेत्र का योगदान बहुत उत्साही रहा है। सन् 2009 से लेकर अब तक लगभग 10 करोड़ दानकर्ता बढ़ चुके हैं। एशिया पेसिफिक की 2016 की वैल्थ रिपोर्ट के अनुसार अन्य देशों की तुलना में भारत के निजी दानकर्ताओं द्वारा दी गई धनराशि अधिक है।
  • धारणीय विकास के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए एक मिश्रित आर्थिक मॉडल और अलग-अलग तरह की साझेदारी के द्वारा भी सामाजिक संगठन अपना योगदान दे सकते हैं। भारत ने एक नया कंपनी अधिनियम लाकर इस प्रकार के नवीन तरीकों को अपनाने के लिए पहले ही अपनी मुहर लगा दी है।
  • भारत में समाजसेवी संगठनों को धारणीय विकास लक्ष्यों से सीधे जोड़ने के लिए अमेरिका की तर्ज पर राष्ट्रीय विकास कार्यक्रम जैसा मंच जल्द ही तैयार किया जा रहा है। इसके पीछे सर्वांगी विकास हेतु संयुक्त प्रयास और गहन साझेदारी को बढ़ाने का विचार काम कर रहा है। इस मंच से धारणीय विकास के लक्ष्यों की पूर्ति में निजी एवं सार्वजनिक दान के बीच की साझेदारी के लाभ को बेहतर तरीके से प्रचारित किया जा सकेगा।
  • इस मंच के माध्यम से केंद्र, राज्य एवं नगर स्तर पर लक्ष्यों को पूरा करने का बीड़ा उठाया जा सकेगा। इससे योजनाओं को पूरा होता देखकर दानकर्त्ताओं में विश्वास और उत्साह बढ़ेगा।
  • ऐसे मंच की मदद से नवीन योजनाओं को प्रोत्साहन मिलेगा। साथ ही उन योजनाओं में राशि लगाई जा सकेगी, जहाँ इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है।
  • अगर हम समाजसेवी संगठनों एवं निजी क्षेत्रों के योगदान के उदाहरण विदेशों में देखें, तो इनकी भागीदारी के बहुत सकारात्मक परिणाम मिलेंगे। केन्या में केन्या फिलैन्थ्रोफी फोरम नामक संस्था की मदद से सरकार विकास कार्यों को अंजाम दे रही है। इसी प्रकार, कोलंबिया में भी इस प्रकार का मंच सरकार और समाजसेवियों के बीच साझेदारी के लिए डाटाबेस तैयार करके विकास कार्यों को कार्यरूप में ला रहा है। इस तरह के डाटाबेस की मदद से सरकार और संगठन योजनाओं के आकार-प्रकार, उनकी समय-सीमा एवं उनकी प्रगति पर आसानी से दृष्टि रख सकते हैं।

बहरहाल, धारणीय विकास एक विशाल यज्ञ की तरह है, जिसमें समाज के हर वर्ग को अपनी आहूतियां डालनी होगी। इस क्षेत्र के अगुआ देशों के अनुभवों से ज्ञान लेकर अगर हम सरकार-समाज की साझेदारी करने में सफल हो गए, तो प्रधानमंत्री के ‘सबका साथ-सबका विकास‘ स्वप्न को अवश्य ही पूरा कर सकेंगे।

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित जैको सिलियर्स के लेख पर आधारित।