मनरेगा का नकारात्मक प्रभाव

Afeias
12 Jan 2017
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Date: 12-01-17

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महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना एक ऐसी सरकारी योजना है जो बेरोजगार एवं अल्प रोजगार वाले ग्रामीणों को कम-से-कम 100 दिनों के रोजगार की गारंटी देती है।हाल ही में मनरेगा से संबंधित कुछ अचंभित करने वाले तथ्य सामने आए हैं। सर्वेक्षणों से पता चला है कि मनरेगा के कारण उद्योगों में काम करने वालों की संख्या 10% कम हुई है। वहीं मशीनों की संख्या में 22.3% की बढ़ोतरी हुई है। इसका कारण यही रहा कि जहां पहले उद्योगों में मजदूरों को लगाने पर उत्पादन दर 100रु. प्रति यूनिट आती थी, और मशीनों को लगाने पर यह बढ़कर 110रु. प्रति यूनिट हो जाती थी। मनरेगा में काम मिलने से मजदूर उद्योगों से 120रु. प्रति यूनिट की मांग करने लगे हैं। जाहिर है कि उद्योग, मशीनों को ही लगाना पसंद करेंगे।

आखिर उद्योगों में साल भर मिलने वाले रोजगार को छोड़कर एक मजदूर मनरेगा के 100 दिनों के काम को प्राथमिकता क्यों दे रहा है? इसके कुछ निम्न कारण हैं-

  • नरेगा का काम बहुत अधिक परिश्रम की मांग नहीं करता।
  • उद्योगों तक की दूरी की अपेक्षा मनरेगा का रोजगार मजदूरों को घर के आसपास ही मिल जाता है।
  • मजदूरों को किराए भाडे़ पर कम खर्च करना पड़ता है।
  • इन मजदूरों को मनरेगा के 100 दिनों के अतिरिक्त उद्योगों में भी अनुबंधित कर लिया जाता है। अगर यह नहीं भी होता तो मनरेगा में काम कर चुके मजदूर गाँव में ही कोई छोटे-मोटे धंधे में लग जाते हैं।

उद्योगों में काम करने वाले मजदूरों का मनरेगा की ओर पलायन अवांछनीय है। इसके निम्न कई कारण हैं

  • रोजगार प्राप्त श्रमिकों का बार-बार काम छोड़कर जाना उचित नहीं है।
  • इससे भारत के कौशल विकास और मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रमों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। जिन उद्योगों के पास मशीनें लगाने के लिए पर्याप्त पूंजी नहीं है, उनका व्यवसाय ठप्प सा हो जाता है।
  • नरेगा के कारण उद्योगों के कुशल श्रमिक भी गाँवों में गढ्डें भरने जैसे सामान्य से ऐसे कामों में
  • लग जाते है, जहाँ उसका कौशल कुछ भी काम नहीं आता।
  • उद्योगों के इन कुशल और रोजगार प्राप्त श्रमिकों के कारण बेरोजगारों की संख्या बढ़ती जा रही है।

                नरेगा कार्यक्रम में सुधार की आवश्यकता है। इसमें कौशल विकास को बढ़ावा देने के साथ ही उद्योगों में पहले से ही रोजगार प्राप्त श्रमिकों को मनरेगा में रोजगार लेने से रोका जाना चाहिए। दरअसल, इस कार्यक्रम में गुणवत्ता और मात्रा को आधार बनाया जाना चाहिए।

टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित सुमीत अग्रवाल, शाश्वत आलोक, यश्अप चोपड़ा और प्रसन्ना एल तंत्री के लेख पर आधारित।