गरीबी की दर में कमी के कारण
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हाल ही में विशाखपट्टनम के तीसरे ब्रिक्स शहरीकरण फोरम में नीति आयोग के अध्यक्ष ने दो बातें कहीं। एक यह कि ‘शहरों के बिना हम तेजी से विकास नहीं कर सकते। और दूसरी यह कि गरीबी उन्मूलन में शहरीकरण का बहुत बड़ा योगदान होता है। इन दोनों ही कथनों में सत्यता कम नजर आती है। गरीबी उन्मूलन या गरीबी कम होने के पीछे जो तथ्य हैं, वे और ही कुछ बयां करते हैं।
- एक बात अवश्य कही जा सकती है कि शहरीकरण के चलते शहरों से सटे हुए ग्रामीण इलाकों में गरीबी में कमी जरूर आई है। लेकिन अगर गांव में ग्रामीण बैकों के विस्तार को ध्यान में रखते हुए गरीबी की दर की तुलना शहरीकरण से करें, तो पता चलता है कि 1961 से 2000 के बीच में ग्रामीण बैकों के विस्तार से गांवों की गरीबी आधी हो गई।
- शहरों के रूपांतरण की तरह ही ग्रामों के रूपांतंरण ने भी गरीबी उन्मूलन में अहम् भूमिका निभाई है। कृषि के आधुनिकीकरण के साथ ही रासायनिक खाद, कीटनाशक, मशीन सेवाओं, प्रोसेस्ड बीज एवं ईंधन की मांग बढ़ने से गांवों के रूपांतरण की झलक मिल जाती है। इन सेवाओं और वस्तुओं की मांग मुख्यतः गैर कृषि उत्पादों के लिए होती है। एक बात स्पष्ट है कि जब देश कम आय से मध्यम आय वाले वर्ग में जाता है, तो कृषि की प्रकृति केवल निर्वाह हेतू कृषि से बदलकर व्यावयायिक कृषि पर आ जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में गैर कृषि उत्पादों की मांग का बढ़ना इसी का संकेत है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में आय बढ़ने से ही शहरों में मिलने वाले संसाधित (Processed) खाद्य पदार्थों की मांग ग्रामीण क्षेत्रों में होने लगी है।अगर हम गरीबी पर कृषि, गैर कृषि कर्म एवं शहरीकरण के प्रभावों का अलग-अलग आकलन करें, तो यही पता लगता है कि विश्व बैंक की रिपोर्ट से अलग, गरीबी उन्मूलन में कृषि का ही सबसे बड़ा योगदान है।नई तकनीकों, सेवाओं, कौशल विकास तथा ग्रामीण ढांचों में परिवर्तन के द्वारा गांवो को और बेहतर बनाया जा सकता है। ग्रामीणों का शहरों की ओर पलायन रोका जा सकता है।
‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित राजीव गहिया के लेख पर आधारित।
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