शीघ्र न्याय न मिल पाने के कारण व उपाय
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हाल ही में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद् के सदस्य संजीव सान्याल ने कहा है कि विकसित भारत के रास्ते में न्यायिक प्रणाली अर्थात् अदालतें सबसे बड़ा रोड़ा हैं। हमारी न्यायिक प्रणाली की इस दुर्व्यवस्था के लिए सरकार भी जिम्मेदार है।
न्याय प्रणाली के पराभव के कारण –
- कैट जैसे अनेक न्यायाधिकरण, आयकर, वस्तु एवं सेवा कर विभाग एवं स्थानीय निकायों में चल रहे लाखों विवाद और मुकदमों का सही आंकड़ा हमारे पास नहीं है।
- पिछले तीन सालों में 23 करोड़ मुकदमें सुलझाए गए। फिर भी जिला अदालतों, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में 5.3 करोड़ मुकदमें लंबित हैं। क्या हम विवाद व मुकदमा प्रधान देश बन गए हैं?
- फर्जी मुकदमों और न्याय में विलंब से देश में अन्याय, अपराध व अराजकता बढ़ती है। जिला अदालतों में तीन-चौथाई ये ज्यादा मुकदमें अपराधिक हैं, जिनमें सरकार या पुलिस पक्षकार है। 70% कैदी अंडरट्रायल हैं।
- आम व्यक्ति के लिए मुकदमों में लगने वाली फीस बहुत ज्यादा है। जबकि सरकारी वकील, पुलिस, जज और जेल सरकारी खर्च पर चलते हैं। अपराध व अन्याय को बढ़ाने वाले इस विरोधाभासी अर्थतंत्र से मुक्ति आवश्यक है।
- विधि आयोग की रिपोर्ट में जजों की संख्या बढ़ाने की बात की जाती है। पर वर्तमान में ही हाईकोर्टस में 33% और जिला अदालतों में 21% जजों के पद और 27% दूसरे स्टाफ के पद रिक्त हैं।
- न्यायिक व्यवस्था पर राज्य सरकार का खर्च सिर्फ 0.59% है। बुनियादी ढाचें के विकास पर प्रतिव्यक्ति खर्च 15000 रुपये है, जबकि न्यायपालिका पर सिर्फ 182 रुपये है।
- न्यायिक व्यवस्था में वंशवाद, भ्रष्टाचार एवं अकर्मण्यता के कारण मेरिट की अवहेलना होती है।
- कानूनों में सनसेट प्रावधान (निश्चित अवधि के पश्चात स्वतः समाप्त होने वाला कानून), पुलिस सुधार, जजों और लोक अभियोजकों की नियुक्ति में सरकारी हस्तक्षेप भी पराभव का एक कारण है।
न्याय प्रणाली को दुरूस्त करने के उपाय –
- जजों की संख्या बढ़ाने से ज्यादा जरूरी है कि वर्तमान जजों को बेहतर आवास, कार्यस्थल, स्टाफ, कंप्यूटर एवं इंटरनेट आदि सुविधाएँ प्रदान किया जाये।
- कोई भी अधिकारी गलत प्राथमिकी दर्ज न करे। सरकारी अपीलों में राष्ट्रीय मुकदमा नीति का पालन नहीं करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाही हो।
- जनहित याचिका के नाम पर पब्लिसिटी और सियासी मुकदमेबाजी पर रोक लगे। गलत या बेवजह का मुकदमा दायर करने वालों पर कठोर जुर्माना लगे।
- जेल में बंद गरीब बेगुनाह कैदियों की रिहाई के लिए अभियान शुरु किया जाए। छोटे अपराधों का सामुदायिक सेवा दंड के रूप में निपटारा किया जाए।
- संविधान के अनुसार आम जनता को जल्द न्याय मिले, इसके लिए जवाबदेही तय की जाए।