आरटीआई का ‘सूचना देने से इनकार’ में बदलाव

Afeias
24 Oct 2025
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सूचना का अधिकार या राइट टू इंफॉर्मेशन, जिसे आरटीआई के नाम से जाना जाता है, इस सिद्धांत पर आधारित है कि एक लोकतंत्र में सरकार के पास मौजूद सभी जानकारी स्वाभाविक रूप से नागरिकों की होती है। इस अधिनिमय में राष्ट्रीय संप्रभुता जैसे हितों की रक्षा के लिए धारा 8(1)(जे) में विशिष्ट छूट शामिल की गई थी। इसमें संशोधन करके सरकार ने इसे अपने हित में मोड़ लिया है, जिसे चुनौती दी जानी चाहिए।

कुछ बिंदु –

  • सरकार ने डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनिमय की आड़ में अधिनियम की धारा 8(1)(जे) में संशोधन किए हैं। इसमें ‘व्यक्तिगत जानकारी‘ की व्याख्या अस्पष्ट और असंगत है। इसके द्वारा सूचना का एक बड़ा हिस्सा किसी व्यक्ति से संबंधित साबित हो सकता है, और इस आधार पर सूचना देने की मनाही हो सकती है।
  • इन संशोधनों से सार्वजनिक जवाबदेही और भ्रष्टाचार जैसे विषयों पर गंभीर संकट आ सकता है।
  • डिजिटल डेटा संरक्षण विधेयक में एक ऐसा प्रावधान भी है, जो विवाद की स्थिति में अन्य सभी कानूनों को दरकिनार कर देता है। साथ ही विधेयक उल्लंघन के लिए कठोर वित्तीय दंड का प्रावधान है।
  • संसद को दी जा सकने वाली जानकारी नागरिकों से नहीं रोकी जा सकती, वाले प्रावधान के हटने से अधिकांश जानकारी को आसानी से छिपाया जा सकता है।

चुनौतियाँ –

  • पारदर्शिता की कमी
  • डेटा संरक्षण कानून का आटीआई पर प्रभुत्व कानूनी अस्पष्टता उत्पन्न करता है।
  • भारी जुर्माने के डर से सूचना अधिकारी पारदर्शिता के बजाय गोपनीयता को प्राथमिकता देंगे।
  • भ्रष्टाचार पर जनता का नियंत्रण कम हो जाएगा।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित शैलेश गांधी के लेख पर आधारित। 13 सितंबर, 2025