21-08-2025 (Important News Clippings)

Afeias
21 Aug 2025
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Date: 21-08-25

Regulate, Don’t Ban

Strict regulation can protect players of online games from financial ruin. Ceilings on bets is one idea

TOI Editorials

GOI’s move to ban “online money games” has a close analogue in prohibition. People drink, and some drink to the point of ruin. But history is witness that prohibition never solved this problem. Likewise, people have always gambled, some to the point of ruin, but is a ban the best way to make this problem go away?

There’s no denying that gambling addiction-online or off it-takes a heavy toll on society. Data from Karnataka alone shows at least 32 suicides related to online betting since 2023. There are countless other reports from across the country. When lab technicians and auto drivers run up loans of 10L or more to play rummy online, a ban seems only right. But consider its consequences. Some 400 companies, 2L jobs and 20,000cr in GST revenue may be wiped out in an instant, without stopping online betting. Just as prohibition spurs bootlegging, a ban on online money games will result in players exploring other options. The internet has no barriers, remember. Chances are the alternatives will be riskier. While Indian tech workers will lose jobs, money might flow into those same offshore jurisdictions that pose “significant enforcement challenges”.

GOI should consider tightening regulations instead. In 2023, it gave the industry an opportunity to self-regulate. While that didn’t work, a firm hand now might produce desired results. Since the ban is meant to protect players from financial ruin, strict KYC checks and deposit/loss limits based on credit scores may be a good start. Data should be localised while blocking offshore betting sites aggressively. Govt has also expressed concern about “manipulative design features, addictive algorithms, bots and undisclosed agents” in gaming apps. It has already cracked down on such “dark patterns” in ecommerce and can do so in online gaming also.

Other countries are still learning UK banned celebrity endorsements for gambling apps, and Italy banned such ads altogether. US and Australia also regulate the sector with strict rules regarding KYC and advertising. That’s why India shouldn’t go the way of a blanket ban either.


Date: 21-08-25

सरकार के नए विधेयक से विपक्ष नाराज क्यों?

संपादकीय

संसद में सरकार ने एक नया बिल पेश किया है, जिसका आशय यह है कि पीएम, सीएम सहित केंद्र या राज्य का कोई भी मंत्री अगर किसी ऐसी दफा में जिसमें 5 साल तक सजा का प्रावधान है – 30 दिन तक निरुद्ध रहा तो 31वें दिन उसे पद से हटा दिया जाएगा। बिल में यह भी प्रावधान है अगर कोर्ट ने उसे जमानत दे दी तो उसे पुनः पदासीन किया जा सकेगा। सरकार मानती है कि ऐसे कृत्य का आरोपी मंत्री पद पर रहते हुए संवैधानिक नैतिकता के मानदंडों को प्रभावित कर सकता है । विगत 29 जुलाई को वित्त राज्यमंत्री ने संसद को बताया कि पिछले 105 सालों में ईडी द्वारा दायर मामलों में केवल आठ में सजा हुई (0.13%) | केजरीवाल महीनों जेल में रहने के बाद कोर्ट से रिहा हुए लेकिन वर्षों बाद भी ईडी का केस किसी अंतिम परिणति पर नहीं पहुंचा। मार्च में संसद में सरकार ने बताया था कि वह आरोपियों की राजनीतिक प्रतिबद्धता का रिकॉर्ड नहीं रखती, लेकिन कहा कि 193 जनप्रतिनिधियों के खिलाफ मामलों में केवल दो में ही सजा हुई है। ये सभी गैर-भाजपा दलों के थे। नए बिल को लेकर जहां विपक्ष सरकार की मंशा पर प्रश्नचिह्न खड़े कर रहा है, वहीं किसी आरोपी को महज आरोप के आधार पर पदमुक्त करना अपराधशास्त्र के मूल सिद्धांत – अपराध सिद्ध न होने तक निर्दोष मानना के खिलाफ है। जमानत मिलने पर दोबारा पदासीन होना गवनेंस में निरंतरता की अवधारणा की अनदेखी भी है। पहले तो नेता नैतिक आधार पर इस्तीफा देते थे, लेकिन बाद में इस आचरण-धर्म की अनदेखी होने लगी।


Date: 21-08-25

हमें अपने गुटनिरपेक्ष अतीत से आज कुछ सीखना होगा

कौशिक बसु, ( विश्व बैंक के पूर्व चीफ इकोनॉमिस्ट )

भारत से आयातित लगभग सभी चीजों पर 50% टैरिफ लगाने के ट्रम्प के ऐलान के बाद से ही भारत-अमेरिका के आर्थिक संबंधों में उथल-पुथल है। इस घोषणा से भारत, ब्राजील (50%), सीरिया (41%), लाओस (40%) और म्यांमार ( 40%) के साथ ही सर्वाधिक टैरिफ थोपे जाने वाले पांच देशों में शामिल हो गया है। ट्रम्प से भारत के मैत्रीपूर्ण सम्बंधों के चलते उनका यह ऐलान हमारे नीति-निर्माताओं के लिए चौंकाने वाला रहा। असमंजस तब और बढ़ गया, जब ये कहा गया कि रूस से तेल खरीदने के कारण भारत को दंडित किया जा रहा है। जबकि रूस से तेल के सबसे बड़े खरीदार चीन को तो ऐसी सजा नहीं दी गई।

विडम्बना यह है कि भारत ने ट्रम्प की नीतियों का कभी विरोध नहीं किया था, सम्भवतः इसके चलते वे भारत को हलके में लेने लगे हैं। यह चेखव की कहानी ‘द निनी’ की याद दिलाती है, जिसमें एक व्यक्ति अपने बच्चों की गवर्नेस (घर में पढ़ाने वाली शिक्षिका) का एक माह का वेतन मनमाने तरीके से रोक लेता है और जब गवर्नेस बिना किसी विरोध के इसे स्वीकार कर लेती है तो वह इसे उसकी कमजोरी समझ लेता है। अर्थशास्त्री एरियल रूबिन्स्टीन ने बाद में इस कहानी के आधार पर यह इकोनॉमिक मॉडल विकसित किया था कि विनम्रता कैसे शोषण को न्योता देती है ?

ट्रम्प के प्रति भारत का अति-आज्ञाकारी रवैया एक लंबे समय से मजबूत और स्वतंत्र देश की उसकी भूमिका से विचलन को दर्शाता है। जबकि एक समय भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन के सह-संस्थापक के तौर पर रणनीतिक स्वायत्तता का प्रबल समर्थक हुआ करता था। वह सभी देशों से संतुलित रिश्ते रखता था, लेकिन किसी की अधीनता नहीं स्वीकार करता था – चाहे वह अमेरिका हो या सोवियत संघ । समय आ गया है कि भारत फिर से उसी विरासत का लाभ उठाए और मैक्सिको, कनाडा, चीन जैसे देशों के साथ आर्थिक और कूटनीतिक सम्बंध बनाए। साथ ही वह टैरिफ से चिंतित अन्य सरकारों खासतौर से यूरोपीय और लैटिन अमेरिकी देशों से व्यापार और सहयोग मजबूत करे।

अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जबकि अमेरिका के लिए भारत उसके सबसे बड़े साझेदारों में से दसवें नंबर पर है- मैक्सिको, कनाडा, चीन और जर्मनी से भी पीछे अमेरिकी अर्थव्यवस्था भी हमसे कहीं अधिक बड़ी है, इसलिए वह बड़े झटके झेल सकती है। ऐसे में साहस का मतलब यह नहीं कि अमेरिका को बराबरी से जवाब दिया जाए। ये जरूर सच है कि भारत जैसे अपने दीर्घकालीन व्यापारिक सहयोगी पर भारी टैरिफ लगाकर अमेरिका बड़ी गलती कर रहा है। वो खुद को अलग-थलग कर रहा है और अपनी अर्थव्यवस्था को ही नुकसान पहुंचा रहा है।

निःसंदेह टैरिफ आर्थिक नीतियों में महत्वपूर्ण हैं। ‘इन्फैंट इंडस्ट्री तर्क’ इसका जाना-माना उदाहरण है, जो कहता है कि किसी आशान्वित क्षेत्र के आरम्भिक काल में अस्थायी टैरिफ लगाना निवेशकों में भरोसा जगाता है। इससे संबंधित सेक्टर को फलने-फूलने और प्रतिस्पर्धी बनने का अवसर मिलता है। लेकिन उद्योग के अपने पैरों पर खड़ा होने के बाद टैरिफ कम कर देने चाहिए, ताकि खुली प्रतियोगिता का अनुशासन उन्हें और बेहतर होने में मदद कर सके।

1977 में, एक राजनीतिक विवाद के कारण भारत सरकार ने आईबीएम को निष्कासित कर दिया था। इससे भारत को खुद के मिनी और माइक्रो- कंप्यूटर विकसित करने की प्रेरणा मिली। विभिन्न व्यापारिक प्रतिबंधों के संरक्षण में घरेलू कंप्यूटिंग क्षेत्र तेजी से बढ़ा। 1991-93 के आर्थिक सुधारों के दौर में भारतीय बाजार अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के लिए खुल गए। देश का आईटी सेक्टर फला-फूला। इन्फोसिस, विप्रो एवं टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज जैसी भारतीय कंपनियों को वैश्विक तौर पर अग्रणी बनने का अवसर मिला। भारत ने अभूतपूर्व आर्थिक विकास किया।


Date: 21-08-25

इतना हंगामा क्यों

संपादकीय

गंभीर आपराधिक आरोपों में गिरफ्तार या हिरासत में लिए जाने पर प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्रियों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री या मंत्रियों को पद से हटाने के प्रविधान वाले विधेयकों पर लोकसभा में विपक्ष का जरूरत से ज्यादा हंगामा समझ नहीं आया। यह अच्छा हुआ कि गृहमंत्री अमित शाह ने अपनी ओर से इन विधेयकों को संसद की संयुक्त समिति को भेजने का प्रस्ताव रखा, जिसे लोकसभा अध्यक्ष ने स्वीकार भी कर लिया। कम से कम अब तो विपक्ष को विरोध के सुर धाम कर इस पर विचार करना चाहिए कि आखिर ऐसी कोई व्यवस्था क्यों नहीं बननी चाहिए, जिससे उच्च पदों पर बैठे लोगों की गंभीर मामलों में गिरफ्तारी अथवा उन्हें हिरासत में लिए जाने पर उनके लिए पद छोड़ना आवश्यक हो जाए ? जो पहल की जा रही है, उसमें यह कहा गया है कि केंद्र सरकार अथवा केंद्रशासित प्रदेशों में महत्वपूर्ण पदों पर आसीन लोगों को तब अपना पद छोड़ना होगा, जब उन्हें किसी संगीन मामले में गिरफ्तार किया जाता है अथवा हिरासत में लिया जाता है। यह रिवायत दी गई है कि ऐसी स्थिति में इन व्यक्तियों को 30 दिनों के अंदर इस्तीफा देना होगा। इस समयसीमा के अंदर इस्तीफा न देने पर उन्हें स्वतः पदमुक्त माना जाएगा। आखिर ऐसी किसी व्यवस्था में समस्या क्या है ?

क्या इसकी अनदेखी कर दी जाए कि महत्वपूर्ण पदों पर बैठे व्यक्तियों पर गंभीर आरोप लगते हैं और कई बार प्रथमदृष्ट्या वे सही भी दिखते हैं, लेकिन कोई इस्तीफा देने की पहल नहीं करता । एक समय ऐसा ही होता था। इस संदर्भ में गृहमंत्री अमित शाह ने स्वयं अपना उदाहरण दिया कि जब उन्हें गुजरात के मंत्री रहते गिरफ्तार किया गया था तो उन्होंने त्यागपत्र दे दिया था। क्या ऐसा अन्य नेताओं को नहीं करना चाहिए? एक वक्त यही परंपरा थी और इसका निर्वाह कई नेताओं ने किया। बतौर उदाहरण लालकृष्ण आडवाणी ने जैन हवाला कांड में अपना नाम आने पर लोकसभा से त्यागपत्र देने के साथ यह घोषणा भी की थी कि जब तक वे दोषमुक्त नहीं हो जाते, तब तक संसद नहीं लौटेंगे। उन्होंने ऐसा ही किया। ऐसे उदाहरण कुछ और नेताओं ने भी प्रस्तुत किए। अब स्थिति यह है कि नेतागण गंभीर मामलों में गिरफ्तार होने और जेल जाने पर भी इस्तीफा देने की जरूरत नहीं समझते। अब तो वे जेल से ही सरकार चलाने का दम भरते हैं और ऐसा कर भी चुके हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री के रूप में अरविंद केजरीवाल ने ऐसा ही किया था। जमानत मिलने के बाद वे तब इस्तीफा देने को बाध्य हुए, जब बतौर मुख्यमंत्री उनके लिए कार्य करना कठिन हो गया। क्या विपक्ष यह चाहता है कि राजनीति में शुचिता और नैतिकता की स्थापना के लिए कुछ भी न किया जाए ?


Date: 21-08-25

कठोर प्रतिबंध

संपादकीय

ऑनलाइन गेमिंग संवर्धन और विनियमन विधेयक, 2025 बुधवार को लोक सभा में पारित हो गया। यह विधेयक कुछ अन्य बातों के अलावा देश में ऑनलाइन गेमिंग में पैसों के लेनदेन को प्रतिबंधित करने से संबंधित है। अनुमान के मुताबिक ही सरकार के इस कदम ने ऑनलाइन गेमिंग उद्योग में हलचल पैदा कर दी है। खबरें बताती हैं कि इसके चलते हजारों उच्च कौशल वाले रोजगारों पर संकट की तलवार लटकने लगी है। विधेयक में जिन उद्देश्यों और कारणों का उल्लेख किया गया है उनके मुताबिक ऑनलाइन गेमिंग में पैसों का इस्तेमाल होने से देश भर में गंभीर सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक मुश्किलें पैदा हो गई हैं क्योंकि मोबाइल और कंप्यूटर के माध्यम से ये गेम बहुत व्यापक रूप से प्रसारित हो चुके हैं। ये प्लेटफॉर्म ऐसे लत वाले व्यवहार को बढ़ावा देते हैं जिनका परिणाम मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों और वित्तीय नुकसान के रूप में सामने आता है। ऐसे प्लेटफॉर्म के कारण धोखाधड़ी और शोषण की घटनाएं भी सामने आई हैं। ऐसे में बाजार के इस हिस्से का विनियमन करने के बजाय यह जनहित में है कि इस पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया जाए।

ऐसे में, विधेयक के प्रासंगिक प्रावधानों का उल्लंघन करके ऑनलाइन धन कमाने संबंधी गेमिंग सेवा प्रदान करने वाले किसी भी व्यक्ति को तीन साल तक की कैद या 1 करोड़ रुपये तक का जुर्माना या दोनों से दंडित किया जाएगा। मीडिया में विज्ञापन जारी करना या पैसे वाले गेम से संबंधित धनराशि के लेनदेन में शामिल होने पर भी दंडित किया जाएगा। अगर वह विधेयक अपने मौजूदा स्वरूप में पारित होता है तो देश में औपचारिक ऑनलाइन गेमिंग कारोबार का हमेशा के लिए पटाक्षेप हो जाएगा। साफ कहें तो इस बात से असहमति नहीं जताई जा सकती है कि ऑनलाइन गेमिंग एक लत की तरह है जो मानसिक और वित्तीय दोनों स्तरों पर प्रभावित करती है। बहरहाल, इस बात पर बहस हो सकती है कि क्या पूरी तरह प्रतिबंधित करना ही उपरोक्त समस्याओं का सही हल है। भारत में प्रतिभाशाली डेवलपर की एक पूरी फौज है जो तरह-तरह के गेम तैयार करती है और यह उद्योग बहुत तेज गति से बढ़ रहा है भारत में ऑनलाइन गेम्स विकसित करने का वैश्विक केंद्र बनने की संभावना है।

उद्योग जगत के संगठनों के मुताबिक स्किल गेमिंग कंपनियों का कारोबारी मूल्य 2 लाख करोड़ रुपये है और अब तक यह 25,000 करोड़ रुपये का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश जुटा चुका है। सरकार के लिए बेहतर होता कि वह इस क्षेत्र के अंशधारकों और विशेषज्ञों से चर्चा करने के बाद ही विधेयक को पेश करती। ऑनलाइन पैसे कमाने से संबंधित गेम्स को प्रतिबंधित करने के बजाय समुचित नियमन की मदद से देश के हितों का बेहतर संरक्षण किया जा सकता था। सीधे प्रतिबंध लगाने के बाद एक संभावना यह है कि ऐसी गतिविधियों को गैर कानूनी तरीके से अंजाम दिया जाने लगे। यदि ऐसा हुआ तो ऑनलाइन गेमिंग से जुड़े लोगों के शोषण और उनके साथ धोखाधड़ी की आशंकाएं बढ़ जाएंगी। इंटरनेट की पहुंच को देखते हुए सरकार के लिए यह बहुत कठिन होगा कि भूमिगत रूप से इसे संचालित करने वालों तक पहुंच सके। इसके अलावा सरकार कर राजस्व भी गंवा बैठेगी। इन सभी पहलुओं पर अब संसद में बहस होनी चाहिए।

धन आधारित खेलों पर प्रतिबंध बड़ी संख्या में लोगों का ध्यान इनकी ओर आकर्षित करेगा। विधेयक ऑनलाइन गेमिंग के नियमन और संवर्धन का व्यापक औपचारिक ढांचा भी मुहैया कराता है। उदाहरण के लिए विधेयक में ऑनलाइन गेमिंग के लिए एक प्राधिकरण की स्थापना का प्रावधान है। माना जा रहा है कि केंद्र सरकार ई- स्पोर्ट को मान्यता देने और प्राधिकरण के साथ पंजीकृत करने के लिए जरूरी कदम उठाएगी। विधेयक ऑनलाइन गेमिंग पर एक प्राधिकरण की कल्पना करता है। ई- स्पोर्ट के लिए दिशानिर्देश तैयार किए जाएंगे। ई स्पोट्र्स को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण अकादमी और शोध केंद्र तैयार करने का प्रावधान भी है। देश में ऑनलाइन गेमिंग के विकास और उसे बढ़ावा देने के लिए भी कई प्रावधान हैं। ऐसे भी प्रावधान हैं जो सामाजिक खेलों के विकास की सुविधा देते हैं। कुल मिलाकर ऑनलाइन गेमिंग के लिए कानूनी ढांचा मुहैया कराने की बात के साथ यह विधेयक दूरदर्शी प्रतीत होता है। इससे वृद्धि और विकास में मदद मिलेगी हालांकि, ऑनलाइन धन आधारित गेम पर प्रतिबंध उसी भावना के अनुरूप नहीं है।


Date: 21-08-25

विधेयक पर विवाद

संपादकीय

केंद्र सरकार ने विशेष परिस्थितियों में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को हटाने की कानूनी व्यवस्था वाला विधेयक पेश किया है, तो अनेक विपक्षी दल इसके विरोध में खड़े हो गए हैं। अभी इन उच्च पदों पर बैठे लोगों के जेल जाने की स्थिति में पद छोड़ने का प्रावधान संविधान में नहीं है। अभी जो कानून हैं, उनके अनुसार, जब तक दोष सिद्ध नहीं हो जाए, तब तक ये आला मंत्री इस्तीफा देने के लिए बाध्य नहीं हैं। इस उदार व्यवस्था का लाभ दिल्ली के एक मुख्यमंत्री और उनके कई मंत्री उठा चुके हैं। यह इतिहास में दर्ज है कि आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल जेल में रहते हुए भी मुख्यमंत्री बने रहे। तमिलनाडु के एक मंत्री सेंथिल ने भी गिरफ्तार होने के बावजूद पद से इस्तीफा नहीं दिया था। जेल से भी अपना कार्यभार संभालने वालों की यह दलील थी कि संविधान उन्हें इस्तीफा देने के लिए नहीं कहता है। ऐसे में, केंद्र सरकार इस कोशिश में है कि 30 दिन हिरासत में रहने की स्थिति में प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री को स्वतः ही पदमुक्त मान लिया जाएगा। पहली नजर में तो यह एक सामान्य प्रावधान लगता है, लेकिन इसके गहरे और व्यापक निहितार्थ हो सकते हैं।

बहरहाल, केंद्र सरकार ने तीनों विधेयकों को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेज दिया है। जेपीसी में अन्य दलों के नेताओं को भी अपनी बात रखने का मौका मिलेगा। विपक्ष के नेताओं को अब जेपीसी में अपना पक्ष अकाट्य ढंग से रखना होगा। व्यापक हित अहित, सदुपयोग-दुरुपयोग देखकर फैसला करना होगा। अगर ये तीनों विधेयक संविधान के विरुद्ध हैं या इनसे अनेक कानूनों पर व्यापक व नकारात्मक असर पड़ने की आशंका है, तो समाधान का कोई दूसरा रास्ता देखना होगा। वैसे सरकार को यह पता था कि इन विधेयकों के आने पर हंगामा होगा। अतः वह इन विधेयकों को जेपीसी के पास भेजने के लिए पहले से ही तैयार थी। सरकार की आशंका के अनुरूप ही विपक्षी दलों ने लोकसभा में खूब हंगामा किया। चूंकि यह विधेयक आरोप लगने की स्थिति में ही सजा देने के लिए तत्पर हो जा रहा है, इसलिए विपक्षी दलों ने जमकर आपत्ति जताई है। केंद्र सरकार पर यह गंभीर आरोप भी लगाया गया है कि वह विपक्षी दलों की सरकारों को अस्थिर करना चाहती है। विपक्ष यह आशंका जता रहा है। कि अगर संविधान में यह 130वां संशोधन हो गया, तो फिर विपक्ष के मुख्यमंत्री और मंत्रियों का पद खतरे में पड़ जाएगा। क्या वाकई ऐसा हो सकता है? जेपीसी की बैठकों में इस पर गहराई से विचार करने के बाद अंतिम फैसला लेना चाहिए।

केंद्रीय गृह मंत्री ने तीन विधेयक लोकसभा में पेश किए हैं। संविधान (130वां संशोधन) विधेयक केंद्र शासित प्रदेशों की सरकार (संशोधन) विधेयक, 2025; और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025 केंद्र सरकार इन विधेयकों को भ्रष्टाचार विरोधी बता रही है, जबकि विपक्ष इससे सहमत नहीं है। दोनों पक्षों को समन्वय के मार्ग पर आगे बढ़ना चाहिए। ध्यान रहे, हमारे संविधान सभा में शामिल नेताओं ने सोचा भी नहीं था कि कभी देश की राजनीति का नैतिक स्तर इतना गिर जाएगा। आज तो कोई दागी नेता पद नहीं छोड़ना चाहता है। ऐसे में, आज या कल कुछ कानूनी प्रावधान ऐसे करने ही पड़ेंगे, ताकि दागियों के लिए जगह न रहे। अनेक कदम उठाने पड़ेंगे, लेकिन उससे पहले सबसे जरूरी है राजनीतिक सहमति । सहमति या व्यापक बहुमत से हुआ सुधार ही ठीक से फलीभूत होता है।


Date: 21-08-25

हिमालय के इलाकों में क्यों बार-बार फट रहे बादल

पंकज चतुर्वेदी, ( वरिष्ठ पत्रकार )

स्वतंत्रता दिवस के एक दिन पहले जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के चिसौती गांव में बादल फटने की घटना से अब तक 80 लोगों की मौत हो चुकी है और 100 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। मचेल गांव में अभी भी सैकड़ों लोग फंसे हुए हैं। कुल्लू और मंडी में 19 अगस्त को दोबारा बादल फटने से भारी तबाही हुई। जम्मू-कश्मीर व हिमाचल ही नहीं, हिमालय की गोद में बसा समूचा हिन्दुस्तान चरम मौसमी घटनाओं में वृद्धि के कारण हैरान-परेशान है। खासकर हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और कश्मीर में बादल फटना एक बड़ी विपदा के रूप में उभर रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ रही इन घटनाओं का पूर्वानुमान भी मुश्किल है।

हिमाचल प्रदेश में बीते एक हफ्ते के दौरान छह जगह बादल फटने से तबाही आई। उत्तराखंड में धराली त्रासदी के लिए फिलहाल भले ही बादल फटने को कारण बताने से इनकार किया जा रहा हो, मगर हकीकत यही है कि उस क्षेत्र में हर्षिल के अलावा कहीं भी मौसम विभाग का वर्षा मापन केंद्र है ही नहीं, और यदि उससे ऊपर कहीं बादल फटा हो, तो उसका कारण महज वर्षा को नहीं बताया जा सकता ।

कश्मीर में बादल फटने की घटनाओं में साल-दर-साल वृद्धि बेहद चिंताजनक है। सरकारी आंकड़ा है कि वर्ष 2020 में वहां बादल फटने की सात घटनाएं हुईं, तो 2021 में 11 और 2022 में 14 घटनाएं घटीं। इसके अगले साल 2023 में 16 और पिछले साल 2024 में 15 बार बादल फटे। इस साल अब तक बादल फटने की छोटी-बड़ी 12 घटनाएं हो चुकी हैं। हिमाचल प्रदेश में एक दशक पहले तक हर साल औसतन पांच-छह ऐसी घटनाएं घटती थीं, लेकिन अब इनकी संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है और ये 15 से 20 तक हो गई हैं। उत्तराखंड में बीते आठ सालों में बादल फटने की 67 बड़ी घटनाओं ने व्यापक तबाही मचाई।

यह कड़वा सच है कि प्रकृति से अधिक यह मानव- जनित त्रासदी है और न सिर्फ इसकी आवृत्ति बढ़ी है, बल्कि समय में भी बदलाव आया है। बादल फटने के महत्वपूर्ण कारकों में से एक कारक बहुत ऊंचाई वाली हिमनद झीलों में तेज वाष्पीकरण माना जाता है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण पिछली शताब्दी के दौरान पृथ्वी के औसत तापमान में 0.75 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप पहाड़ या घाटी में ग्लेशियरों का तेज क्षरण हुआ है। हिमालय में हिमनद झीलें खतरनाक रूप से बढ़ रही हैं। ऐसी झीलें अधिक ऊंचाई के कारण बादलों के सीधे संपर्क में आती हैं, जिससे अधिक ऊंचे क्षेत्रों में बादल फटने की अनुकूल स्थिति पैदा होती है।

मानसून के पूरे देश में फैलने के साथ नमी युक्त पूर्वी हवाएं निचले स्तरों से होकर पश्चिमी हिमालय तक पहुंच रही हैं। ये हवाएं ऊपरी स्तरों पर बहने वाली पश्चिमी हवाओं से टकरा रही हैं। विपरीत दिशाओं से बहने वाली हवाओं का संगम ‘क्यूम्यूलोनीम्बस बादलों, अर्थात तूफानी बादल या गरज-चमक वाले बादल के निर्माण का कारण बनता है । पर्वतीय क्षेत्र में हवाएं तेज गति से नहीं चलती और कभी-कभी छोटे से क्षेत्र में अटक जाती हैं, जिससे भारी बारिश और बादल फटने की घटना होती है। इस अनिश्चितता के कारण मौसम वैज्ञानिकों के लिए समय पर अलर्ट जारी करना कठिन हो जाता है। पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में बादल फटने की घटनाओं की आवृत्ति लगातार बढ़ रही है, जिसका कारण ऊंचाई पर ग्लेशियर झीलों से तेज वाष्पीकरण होना है। भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश जैसे दक्षिण एशियाई देश विशेष रूप से संवेदनशील हैं, क्योंकि ये दक्षिण में तेजी से गर्म हो रहे हिंद महासागर और उत्तर में तेजी से पिघलते ग्लेशियरों के निकट हैं। अधिकांश बादल फटने की घटनाएं अप्रत्याशित तीव्र वर्षा से जुड़ी हुई हैं।

हिमालय की स्थलाकृति, इसकी खड़ी और अस्थिर ढलानों की विशेषता बादल फटने की घटनाओं के लिए एक आदर्श सेटिंग प्रदान करती है, जिससे अचानक बाढ़ या भूस्खलन होता है। हालांकि, ऐसी विनाशकारी घटनाओं के सटीक स्थान, आयाम और गंभीरता का अनुमान लगाना अभी मुश्किल है। नीति-निर्माताओं को अपरिवर्तनीय क्षति को रोकने के लिए समय पर जलवायु परिवर्तन के संभावित विनाशकारी परिणामों पर तत्काल ध्यान देकर इसे प्रभावी ढंग से कम करना होगा।