ग्लोबल साउथ के नेतृत्व की ओर बढ़ता भारत

Afeias
09 Aug 2025
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में दो अफ्रीकी देशों घाना और नामीबिया तथा तीन दक्षिण अमेरिकी देशों त्रिनिदाद एवं टोबेगो, अर्जेंटीना एवं ब्राजील की उल्लेखनीय यात्रा पूरी की। वैश्विक बदलावों और महाशक्तियों की प्रतिस्पर्धा के इस युग में भारत ग्लोबल साउथ के नेतृत्व की ओर बढ़ रहा है। यह यात्रा रणनीतिक महत्वकांक्षाओं, भू-राजनीतिक सदेशों और वैश्विक मंच पर भारत की भूमिका की दृष्टि से महत्वपूर्ण है।

  • प्रधानमंत्री की ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद यह दूसरी बड़ी यात्रा थी, जिसने आतंकवाद के विरूद्ध समर्थन जुटाने के लिए भारत को अंतरराष्ट्रीय मंच प्रदान किया। प्रधानमंत्री ने बार-बार आंतकवाद पर राजनीति न करने की बात दोहराई।
  • लीथियम, रेयर अर्थ और तॉबे की हमारी चीन पर निर्भरता को चीन हथियार के तौर पर प्रयोग करता है। इसलिए यह निर्भरता कम करना जरूरी है। घाना में हीरा, मेंग्जीन और लीथियम के भंडार हैं। नामीबिया में यूरेनियम, ताँबा और सोना है। यह आपूर्ति श्रंखला रणनीति की ओर बढ़ाया गया ऐसा कदम है, जिससे खनिज- सुरक्षा में वृद्धि होगी तथा चीन पर निर्भरता घटेगी।
  • अफ्रीका, एशिया और लैंटिन अमेरिका का साझा औपनिवेशिक अतीत रहा है। इन देशों की गिनती आर्थिक विषमता तथा वैश्विक स्तर पर कम प्रतिनिधित्व वाले देशों में होती है। प्रधानमंत्री ने इसी साझा इतिहास की ओर संकेत करते हुए वैश्विक संस्थानों में सुधार पर जोर दिया। उन्होंने सिर्फ भू-राजनीतिक ही नहीं, बल्कि सभ्यतागत सहानुभूति के आधार पर भी एकजुटता की बात कहीं। स्वयं के औपनिवेशिक इतिहास के कारण भारत यह कुशलतापूर्वक कर सकता है।
  • ब्रिक्स सदस्य देशों में भारत हमेशा वैश्विक पटल पर आमूलचूल परिवर्तन की अपेक्षा अंदरूनी सुधारों की वकालत करता है। इस समिट में चीन व रूस के प्रमुखों के न शामिल होने के कारण ही नहीं बल्कि कुशल स्टेट्रसमैन की भूमिका के कारण हमारे प्रधानमंत्री प्रभावी रहे। दुनिया के ध्रुवीकरण में भारत एक रास्ता बना रहा है, जो सुधारवादी है, क्रांतिकारी नहीं, सहयोगात्मक है, लड़ाकू नही। यह रास्ता पूर्व व पश्चिम के मध्य सेतु का काम करेगा।
  • घाना से लेकर त्रिनिदाद और टोबैगो तक जहाँ भारतीय मूल के लोगों की आबादी 40% तक है, मोदी जी ने स्थानीय समुदायों को प्रतीकात्मक और नीतिगत दोनों तरीकों से जोड़ा। ‘डायस्पोरा फर्स्ट‘ का यह रवैया लोगों से जीवंत संपर्क को राज्य की एक नीति बना देता है।

इन देशों में दशकों से किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने यात्रा नहीं की थी। चीन पहले ही अफ्रीका व लैटिन अमेरिका में घुसपैठ कर चुका है। हम इन देशों को चीन का विकल्प दे सकते है। ग्लोबल साउथ के देश युवा और संसाधन संपन्न हैं। यह संयुक्त राष्ट्र का दो-तिहाई हिस्सा है, जहाँ उनकी कोई संगठित आवाज नहीं है। अब भारत उनकी आवाज बन रहा है।

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