आतंकवाद के प्रति भारत का कड़ा रुख और शंघाई सहयोग संगठन
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हाल ही में शंघाई सहयोग संगठन की मंत्रिस्तरीय बैठक में रक्षा मंत्री ने संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया था। इस घोषणापत्र में पहलगाम में हुई आतंकवादी घटना का कोई उल्लेख नहीं था।
इससे जुड़े कुछ बिंदु –
- हस्ताक्षर से मना करना, आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए भारत की गंभीर प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।
- यह दुनिया के साथ भारत के जुड़ाव में एक महत्वपूर्ण मोड़ भी है। वह आतंकवाद के विरूद्ध कोई भी रुख अपनाने को तैयार है, भले ही वह अकेला क्यों न हो।
- शंघाई सहयोग संगठन की जड़ें धार्मिक उग्रवाद और जातीय तनावों से जुड़ी चिंताओं में है। अध्यक्ष के रूप में चीन को पहलगाम वाली घटना की निंदा करनी चाहिए थी। लेकिन वह पहले भी कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को बचाता रहा है, और इस बार भी उसने यही प्रयास किया।
- यहाँ एक बात और महत्वपूर्ण यह है कि रूस भी संगठन का प्रमुख और शक्तिशाली सदस्य होते हुए भी चीन का प्रतिकार नहीं कर सका। यह बदले हुए चीन-रूस शक्ति संतुलन का एक संकेत है।
- यदि इसे दूसरी तरह से देखें, तो भारत मध्य एशियाई गणराज्यों से अपने संबंधों का लाभ उठाकर पहलगाम का उल्लेख नहीं करा सका।
- भारत अपने रुख पर अड़ा हुआ है। अब उसे स्थायी समर्थन वाले गठबंधन बनाने पर ध्यान देना चाहिए। देशों और समूहों के साथ काम करना, और ऐसे नेटवर्क विकसित करना चाहिए, जो परस्पर सहायक और लाभकारी हों।
‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 30 मई 2025