दलबदल विरोधी कानून को मजबूत किया जाना चाहिए
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संविधान में 52वें संशोधन के माध्यम से भारत में दलबदल विरोधी कानून बनाया गया था। सरकारों की स्थिरता और लोकतांत्रिक संस्थाओं की अखंडता को बनाए रखने के लिए यह महत्वपूर्ण साधन सिद्ध हुआ है, लेकिन इसे और अधिक प्रभावी और निष्पक्ष बनाने के लिए कुछ कमियों को दूर करने की आवश्यकता है।
प्रस्तावित संशोधन –
- पहला संशोधन दलबदल मामलों पर निर्णय के लिए समय सीमा से संबंधित है। अभी तक ऐसे मामलों पर समय सीमा का दबाव न होने से निर्णयों में देरी हुई है। विवेकाधीन शक्ति का भी संभावित दुरूपयोग हुआ है।
- दूसरेए पार्टी व्हिप जारी करने में पारदर्शिता की कमी है। इससे अक्सर यह विवाद होता है कि सदस्यों को पर्याप्त रूप से सूचित किया गया था या नहीं।
समाधान –
- दलबदल मामलों को हल करने के लिए चार सप्ताह की समय-सीमा निर्धारित की जानी चाहिए। इस अवधि के भीतर कोई निर्णय न लिए जाने पर दलबदल करने वाले सदस्यों को उनके पदों के अयोग्य माना जाना चाहिए।
- पार्टी व्हिप की समस्या के लिए राजनीतिक दलों को समाचार पत्र प्रकाशन या इलेक्ट्रॉनिक संचार के माध्यम से व्हिप की सेवा का ढांचा प्रदान करना चाहिए।
- केशम मेघचंद्र सिंह बनाम मणिपुर विधानसभा अध्यक्ष और अन्य (2020) मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने अध्यक्ष की भूमिका को एक स्वतंत्र न्यायाधिकरण या चुनाव आयोग द्वारा नियुक्त निकाय में बदलने की सिफारिश की थी।
- केंद्र सरकार की ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पहल के प्रभावी कार्यान्वयन को सुविधाजनक बनाने के लिए भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची में संशोधन को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इन संशोधनों को लागू करके दलबदल विरोधी कानून को अपने उद्देश्य को पूरा करने के योग्य बनाया जा सकता है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित बी विनोद कुमार के लेख पर आधारित। 27 अक्टूबर, 2024
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