महिलाओं पर किया जाने वाला हर हमला उनकी कार्यबल भागीदारी के खिलाफ एक झटका है
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हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की उप प्रबंध निदेशक गीता गोपीनाथ ने संकेत दिया है कि भारत की आर्थिक आकांक्षाएं महिलाओं की श्रम शक्ति भागीदारी को बढ़ाए बिना पूरी नहीं हो सकती हैं।
महिलाओं की श्रम भागीदारी से जुड़े कुछ तथ्य –
- भारत में महिलाओं की श्रम-शक्ति भागीदारी दर, वियतनाम की लगभग आधी है।
- बहुत ही कम भारतीय महिलाओं को वास्तव में भुगतान मिल रहा है। 2023 की अजीज प्रेमजी यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट बताती है कि केवल 17% शहरी महिलाएं ही भुगतान पाने वाले कार्यबल में हैं।
- ग्रामीण महिलाओं की स्थिति बहुत खराब है। उनका अवैतनिक कार्य; चाहे वह घरेलू हो या कृषि या पारिवारिक उद्यम निम्न स्तर का है।
- वेतनभोगी काम या इसके लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करने की उनकी इच्छा को हतोत्साहित किया जाता है।
- महिलाओं की श्रम भागीदारी में कमी का एक बड़ा कारण सुरक्षित कार्य-स्थलों की कमी है।
स्थिति को सुधारा जा सकता है –
सुरक्षा के नाम पर महिलाओं के काम पर पाबंदी लगाना कोई उपाय नहीं है। हमारे शहरों में अब हर जगह सीसीटीवी हैं। पुलिस को सक्रियता से यह प्रचार करना चाहिए कि उसने हमलावर को पकड़ने के लिए इनका इस्तेमाल कैसे किया। परिवहन के साधनों को सुरक्षित बनाया जाना चाहिए। हमला करने वालों के लिए दंड-प्रक्रिया की गति बढ़ाई जानी चाहिए। इन सबके साथ महिलाओं के काम को लेकर सामाजिक और पारिवारिक सोच को व्यापक बनाया जा सकता है।
‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 19 अगस्त, 2024