वास्तविक कल्याण के लिए नियमित रोजगार की जरूरत

Afeias
12 Aug 2024
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हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने एक विशेष आयु वर्ग के पुरूषों और महिलाओं के लिए सशर्त मासिक भत्ते की व्यवस्था की है। सरकार का मानना है कि यह बेरोजगारी की समस्या के लिए एक समाधान है। लेकिन सच्चाई यह है कि यह नियमित रोजगार का कोई विकल्प नहीं है। पार्टियों को इसे पहचानना चाहिए।

कुछ बिंदु –

  • लोकसभा चुनावों के दौरान बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा था, और आगामी विधानसभा चुनावों में भी यह मुद्दा बना रहेगा।
  • भारत बेरोजगारी रिपोर्ट 2024 के अनुसार शिक्षित युवा आबादी (15-29) के बीच बेरोजगारी एक दशक पहले के 11.8% से बढ़कर 17.2%देश की आधी से अधिक आबादी सरकार के मुफ्त अनाज पर निर्भर है।
  • मनरेगा की मांग बढ़ी है। 2019-20 में 265.3 करोड़ व्यक्ति दिवस कार्य करवाया गया था। 2023-24 में यह 305.2 करोड़ यानि लगभग 40 करोड़ अधिक था।

आर्थिक आंकड़े और जमीनी वास्तविकता –

  • यह सब तब है, जब मैक्रोइकॉनॉमी मजबूत है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने 7% की वृद्धि का अनुमान लगाया है।
  • उपभोग की वृद्धि धीमी बनी हुई है।
  • विभिन्न आधिकारिक स्रोतों से मिलने वाले रोजगार डेटा, ऐसी परिभाषाओं का उपयोग करते हैं, जो नौकरी की सामान्य परिभाषाओं से काफी भिन्न है।
  • सरकार के कल्याण पैकेज की जमीनी वास्तविकता रोजगार के डेटा से काफी अलग है।
  • अगर युवा भारतीय वापस कृषि कर्म में लग रहा है, या कभी-कभार गैर कृषि कर्म पा लेता है, तो इसे बेरोजगारी की समस्या का समाधान नहीं कहा जा सकता।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 19 जुलाई, 2024

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