जापानियों से सीखने लायक कुछ नैतिकता और मूल्य

Afeias
10 Jul 2024
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भारत और जापान का समृद्ध इतिहास और विरासत के प्रति गहरा सम्मान ऐसा महत्वपूर्ण पक्ष है, जो सहज रूप से दोनों देशों को जोड़ता है। फिर भी दोनों देशों में व्यवहारगत भिन्नताएं बहुत हैं। जापानियों के पास जीवन जीने के ऐसे सात सुंदर गुण हैं, जिनसे भारतीय बहुत कुछ सीख सकते हैं –

1) चिल्लाने से सभ्यता नहीं झलकती – इस बिंदु पर हम भारतवासी बहुत असभ्य हैं। बिना किसी कारण या उकसावे के अपनी आवाज ऊँची करते जाते हैं। जापान में कोई ऐसा नहीं करता। सभी वयस्क; उम्र या सामाजिक स्थिति से परे, सभी के साथ शिष्टाचार दिखाते हैं।

2) अनुशासन – जापानियों के इस गुण ने उन्हें कई आपदाओं पर जीत दिलाई है। वहाँ कोई कतार नहीं तोड़ता। लिफ्ट या ट्रेन में चढ़ने के लिए कोई धक्का-मुक्की नहीं करना। संकट के समय वे शांत और व्यवस्थित तरीके से प्रतिक्रिया करते हैं।

3) अपने काम पर गर्व निचले से लेकर ऊपरी पायदान तक, हर कोई अपने चुने हुए पेशे में सम्मान की भावना से प्रेरित होता है। नो-टिपिंग नियम इसी जागरूकता से उपजा है। आपको आपके काम के लिए भुगतान किया जाता है। इसके लिए किसी से अतिरिक्त मदद लेने की जरूरत नहीं है। टिप लेना आपके पेशे का अपमान माना जाता है। इससे आपकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचती है। यह संभवतः जापान में सबसे बड़ी शर्म की बात है।

4) विनम्रता और शालीनता – सुख या दुख का अत्यधिक प्रदर्शन जापानियों में अश्लील माना जाता है। शालीनता को संजोया जाता है। लोग अपने व्यस्त काम से निकलकर आपको दिशा बताने के लिए आगे आ जाते हैं।

5) सुंदरता की प्रशंसा – जापानी सुंदरता के बड़े प्रशंसक होते हैं। उदाहरण के लिए, वहाँ कुछ समय के लिए उगने वाले सकूरा फूल की सुंदरता का वे जश्न मनाते हैं। उसे सम्मान देते हैं।

6) टीमवर्क – जापानी टीम भावना की सराहना करने के लिए किसी ब़ड़े स्टोर में जाएं। आपकी भाषा न समझने पर विक्रेता तीन-चार सहयोगियों को बुला लेगा। पूरी टीम ईमानदारी से आपकी पूरी सहायता करेगी। भारतीय दुकानों में उदासीन, असभ्य विक्रेताओं के साथ इसकी तुलना करें, तो आपको समझ आएगा कि जब ये अपने काम से नफरत करते हैं, तो सहयोगियों को साथ लेकर कैसे चलेंगे।

7) राष्ट्रीय गौरव – यह एक ऐसा बिल्ला है, जिसे हर जापानी व्यक्ति बड़े गर्व से टाँगता है। वहाँ अहंकार के लिए कोई जगह नहीं है।

हम भारतीयों को इन सभी विशेषताओं का अनुकरण करने की जरूरत है।

द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित शोभा डे के लेख पर आधारित। 16 जून, 2024

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