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पंजाब के कृषकों की मांग और विकास
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विशेष रूप से पंजाब के किसान संघ न्यूनतम समर्थन मूल्य की अनिवार्यता, मूल्य में वृद्धि तथा अन्य प्रकार की कृषि संबंधी मांगों को लेकर आंदोलन करते रहे हैं। राज्य-सरकार उनकी मांगों को स्वीकार करती रही है। इसके कारण पंजाब की जो वर्तमान आर्थिक-स्थिति है, यहाँ उसी का एक संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है।
- किसी समय देश की सबसे अधिक प्रति व्यक्ति आय वाला राज्य आज राष्ट्रीय औसत पर आ गया है।
- किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी के कारण राज्य का ऋण उसकी जीडीपी का 40% हो गया है। जबकि गुजरात का ऋण भार 20% के आसपास ही है।
- निःशुल्क विद्युत की व्यवस्था के कारण भूमिगत जल का अत्यधिक दोहन होने से जल संकट उत्पन्न हो गया है।
- फर्टिलाइजर की सब्सिडी ने उसके अधिक उपयोग को प्रोत्साहित किया। इससे न केवल खाद्य-पदार्थ विषैले हो गये हैं, बल्कि भूमि भी अनुत्पादक होती जा रही है।
- कृषि की प्रमुखता के कारण जमीनों की कीमतें बहुत अधिक हो चुकी हैं। फलस्वरूप नये उद्योगों को लगाने की लागत अव्यवहारिक हो गई है। इससे राज्य का औद्योगिक विकास रुक गया है।
- सब्सिडी की अधिकता ने राजकोष को रिक्त कर दिया है। फलस्वरूप शिक्षा,स्वास्थ्य एवं ढांचागत विकास जैसे महत्वपूर्ण कार्यों के लिए धन की कमी है।
- स्वामीनाथन अंकलेसरिया किसानों द्वारा अपनी लागत पर 50% लाभ की मांग को अव्यवहारिक मानते हैं। उनका कहना है कि बड़े-बड़े उद्योगपतियों का भी वार्षिक लाभ 10% से अधिक नहीं होता।
लाभ की स्थिति में उद्योगपति अपने उद्योगों का विस्तार करके आर्थिक विकास की गति को तेज करते हैं। जबकि किसान ऐसा कुछ नहीं करते।
स्वामीनाथन के अनुसार किसानों की समस्या का समाधान उन्हें रेवड़ियां बाँटने में नहीं, बल्कि इसमें है कि उन्हें कृषि क्षेत्र से निकालकर उद्योग एवं सेवा-क्षेत्र में लगाया जाये। अमेरिका की केवल 1.2 प्रतिशत आबादी कृषि-कार्य में संलग्न है। इतने लोग अमेरिका की 35 करोड़ आबादी का पेट भरते हैं। साथ ही उत्पादों का निर्यात भी करते हैं।
पंजाब के किसानों के कृषि मॉडल से देश के किसानों को सीख लेनी चाहिए।
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