पर्यटन के विकास के लिए वन्यजीवों को दांव पर नहीं लगाया जा सकता
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हाल ही में जिम कोर्बेट राष्ट्रीय उद्यान में लगभग छः हजार पेड़ों की कटाई की गई है। इस पर सर्वोच्च न्यायालय का रवैया बहुत सख्त रहा। न्यायालय के अनुसार, वन अधिकारियों और राज्य के एक शीर्ष नेता ने बाघ सफारी के दायरे का व्यापक विस्तार करने के लिए मिलीभगत की है। क्या पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पारिस्थितिकी तंत्र को दांव पर लगाया जा सकता है?
- न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि जंगलों में बाघों की उपस्थिति पारिस्थितिकी तंत्र की भलाई का सूचक है। जब तक बाघों के इर्द-गिर्द फैले पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा नहीं की जा सकती, तब तक पर्यटन और उससे संबंधित रोजगार के विकास के प्रयास का कोई अर्थ नहीं है।
- इसी संदर्भ में न्यायालय ने राष्ट्रीय उद्यान के आसपास के विभिन्न रिसॉर्टस् का उल्लेख किया है। इनमें अक्सर तेज आवाज में संगीत बजाया जाता है। यह जानवरों के लिए खतरा पैदा करता है।
केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण और राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण दोनों ही केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय से संबद्ध विशेष निकाय हैं। ये जंगली जानवरों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए जिम्मेदार हैं। इनके अनुसार सफारी का उद्देश्य इको टूरिज्म है, न कि वाणिज्यिक पर्यटन। हाल के दिनों में यह तर्क जोर पकड़ रहा है कि स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार सफारी क्षेत्र का विस्तार करे। उत्तराखंड सरकार का यह कदम इसी धारणा से प्रेरित है।
न्यायालय ने केंद्र सरकार से सफारी के संचालन पर दिशा-निर्देश विकसित करने की सिफारिश की है। सरकार को जल्द-से-जल्द इस पर अमल करना चाहिए।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधरित। 8 मार्च, 2024