30-07-2025 (Important News Clippings)
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Date: 30-07-25
From glory to decline
Gangaikonda Cholapuram does not need statues; it needs basic infrastructure
T. Ramakrishnan
Pomp and gaiety marked the AadiThiruvathirai festival, which is organised every year in Gangaikonda Cholapuram, about 105 kilometres from Tiruchi in Tamil Nadu, to mark the birth anniversary of Rajendra Chola I (1012 to 1044 CE).
The festival, which the DMK government in the State began holding from 2022, became a high-profile event this time thanks to Prime Minister Narendra Modi’s participation in the valediction ceremony. The festival also coincided with the completion of 1,000 years of the maritime expedition of the Chola emperor to Southeast Asia and the commencement of the construction of the iconic temple.
In his book, A History of South India: From Prehistoric Times to the Fall of Vijayanagar, historian K.A. Nilakanta Sastri states that Rajendra Chola’s empire was “the most extensive and most respected Hindu state of his time.” Gangaikonda Cholapuram, established by the Chola ruler, served as the capital of the imperial Cholas for about 250 years (1025 CE-1279 CE). Along with the Brihadeeswara temple in Thanjavur, built by Rajendra Chola’s father, Rajaraja Chola I, the temple at Gangaikonda Cholapuram was included by UNESCO in 2004 under the category of ‘Great Living Chola Temples’ and declared a World Heritage Site.
On July 27, Mr. Modi spent about two hours at the temple. Unlike most of his public events, which are characterised by formal speeches and the inauguration of projects and schemes, this event was different. Wearing a white dhoti, a half-sleeve shirt, and an angavastram (upper cloth), the Prime Minister enjoyed devotional renderings by a group of Oduvars (hymn singers) and by music director and composer Ilaiyaraaja. In his speech, Mr. Modi praised the contributions of the Cholas and explained how their rule remains an inspiration for modern India.
The Cholas undoubtedly set a benchmark in various aspects of governance. However, their erstwhile capital is to day one of the most backward districts of Tamil Nadu, Ariyalur. It is hard to believe that it was once the seat of power of a great empire for 250 years.
“It is all fine for the Prime Minister to announce the installation of statues for the two Chola emperors. But people in the district had expected him to unveil plans for infrastructure development in the region,” said N. Dhanapal, a resident of Thirumanur village in Ariyalur district. “We thought he would make a statement on the approval of two long-pending railway projects – from Kumbakonam to Namakkal through Ariyalur and Perambalur, and one connecting Pattukottai, Thanjavur, and Ariyalur. We were disappointed,” he added.
A predominantly agrarian district, Ariyalur has cement factories. These were established by large companies given the availability of good quality limestone in the region. After a spell of severe pest attacks about five years ago, farmers virtually stopped raising sugarcane. “The sugar mill that we had barely func tions,” a resident complained. Though the Small Industries Development Corporation set up an industrial estate at Mallur in the district about 10 years ago, it found few takers.
The district has a fossil tree park and a fossil museum, which are examples of palaeozoology. In fact, the geological community regards the Ariyalur region as important as the Grand Canyon in Arizona, U.S. Yet, the place barely gets any visibility.
In fact, despite being a World Heritage Site for more than 20 years, even the Gangaikonda Cholapuram temple does not attract as many international visitors as it should, primarily due to connectivity issues and lack of amenities.
It is not that there have not been efforts made to improve the district. On the eve of the festival, Chief Minister M.K. Stalin had announced that the Chola Gangam lake, locally known as the Ponneri lake, would be developed at a cost of *12 crore, and that facilities for tourists would be improved at a cost of 7.25 crore. He also said that renovation work of channels around the tank and other maintenance works would be undertaken. The State government has also planned to construct a museum, spread over 10 acres, at the cost of 22.10 crore.
However, these plans are not enough. What the people of the district, which was the seat of the ancient capital of the Cholas, want today is sustained attention and focus on economic development of the region. That is what finally matters to them.
Date: 30-07-25
भारत-यूके की ट्रेड डील कई अर्थों में महत्वपूर्ण है
संपादकीय
ट्रम्प काल का अमेरिका अलग है। लिहाजा जो ट्रेड मॉडल- फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (एफटीए) यूके के साथ भारत ने किया है, वह अमेरिका के साथ करना संभव नहीं होगा। अमेरिकी युवाओं को जॉब्स में खपाने के नाम पर ट्रम्प ने अमेरिकी कंपनियों को चीन में उत्पादन करने, भारतीय इंजीनियरों को नौकरी देने और आयरलैंड में कमाई करने के खिलाफ चेतावनी दी है। यूके से ट्रेड डील में भारत के छोटे उद्योगों के उत्पादों की खपत होगी, यानी लोगों को नौकरियां मिलेंगी, जबकि उच्च वर्ग द्वारा उपभोग की सामग्री जैसे महंगी शराब और लग्जरी कारें यूके से सस्ती आएंगी। इसके उलट यूएस अपने सस्ते जीएम कृषि उत्पाद (डेयरी भी) उस भारत में बेचना चाहता है, जो खुद कृषि-प्रधान है। भारत और यूके की डील इसलिए भी असाधारण है, क्योंकि दोनों दुनिया के चौथे और पांचवें नंबर की इकोनॉमी हैं। ट्रम्प को समझना होगा कि ब्रेन का विकल्प बेहतर ब्रेन ही हो सकता है। अगर भारतीय टेक्नोक्रेट्स दुनिया की बड़ी कंपनियों में शीर्ष पर हैं और भारत (या चीन) के युवा अपेक्षाकृत कम वेतन में बेहतर योगदान दे रहे हैं तो अमेरिका को महान बनाने की शर्त अपने यहां अच्छे दिमाग वाले टेक युवा पैदा करना है। पहले भी अमेरिका अपनी बेहतरीन शैक्षिक संस्थाओं के कारण ही महान बना था, जिसमें दुनिया के सर्वश्रेष्ठ दिमागों को प्रश्रय और सम्मान दिया जाता था। यूके से एफटीए के बाद ईयू से भी हमारी ऐसी ही डील संभव है। ट्रम्प की नीतियों से अमेरिका को जो क्षति हो रही है, उन्हें इसका अहसास होना चाहिए।
Date: 30-07-25
कामयाबी की बिसात
संपादकीय

पिछले कुछ वर्षों से भारतीय शतरंज का एक सुनहरा दौर चल रहा है और इसने वैश्विक स्तर पर कई प्रतियोगिताओं में अपनी अच्छी दखल दर्ज की है। इसी क्रम में सोमवार को जार्जिया के बातूमि में खेले गए फिडे महिला विश्व कप शतरंज, 2025 में दिव्या देशमुख ने भी एक शानदार अध्याय जोड़ा है। विश्व कप में हमवतन कोनेरू हम्पी को हरा कर बाजी मारने और इस प्रतिष्ठित प्रतियोगिता का खिताब अपने नाम करने के साथ ही सिर्फ उन्नीस वर्ष की उम्र में दिव्या ने ग्रैंडमास्टर का तमगा भी हासिल कर लिया। हालांकि इस प्रतियोगिता की शुरुआत में इस बारे में किसी के लिए सोचना भी मुश्किल था । अब दिव्या महिला विश्व कप जीतने वाली पहली भारतीय महिला हैं। इसके अलावा, वे ग्रैंडमास्टर बनने वाली सिर्फ चौथी खिलाड़ी हैं। इस खिताबी मुकाबले को दो पीढ़ियों के बीच संघर्ष के तौर पर देखा जा रहा था, जिसमें दिव्या ने अपने से दोगुनी उम्र की अनुभवी और कई अहम खिताब जीतने वाली हम्पी को हरा दिया। हालांकि कोनेरू हम्पी ने फाइनल में जगह बनाने के बाद ही यह कह दिया था कि अंतिम मुकाबला बहुत मुश्किल होने वाला है, क्योंकि दिव्या ने इस विश्व कप में बहुत ही उम्दा प्रदर्शन किया है। जाहिर है, दिव्या की इस जीत की जमीन पहले ही बन चुकी थी।
गौरतलब है कि एक ओर हम्पी दो बार विश्व रैपिड शतरंज का खिताब जीत चुकी हैं, तो दिव्या ने भी कई शानदार कामयाबियों के अलावा 2023 में इंटरनेशनल मास्टर का खिताब हासिल किया था और पैंतालीसवें शतरंज ओलंपियाड में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी। यानी कहा जा सकता है कि इस बार विश्वकप जीतने से पहले दिव्या ने शतरंज की दुनिया में अपने लिए एक मजबूत जगह बना ली थी, जहां उनसे उम्मीदें बढ़ गई थीं। अब उनकी इस जीत से निश्चित तौर पर शतंरज प्रतियोगिताओं की वैश्विक बिसात पर भारत की मजबूत जगह बनी है। पिछले साल चार भारतीय पुरुष खिलाड़ियों – डी गुकेश, अर्जुन एरिगेसी, आर प्रज्ञानानंद और अरविंद विश्व शतरंज की शीर्ष दस की रैंकिंग में शामिल हो गए थे। अब दिव्या की जीत को भी शतरंज में भारतीय कामयाबी की एक कड़ी और भविष्य की उम्मीद के तौर पर देखा जा रहा है।
Date: 30-07-25
खुदकुशी चिंता का सबब
संपादकीय
देश में सालों से प्रतिदिन छात्र खुदकुशी कर रहे हैं। यह किसी मूक महामारी की तरह नयी पौध को चपेटे में ले रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने आईआईटी खड़गपुर व ग्रेटर नोएडा की शारदा यूनीवर्सिटी में हुई आत्महत्याओं पर स्वतः संज्ञान लिया। पीठ ने पूछा छात्र आत्महत्या क्यों कर रहे हैं? अदालत दोनों संस्थानों से इस पर जवाब पहले ही मांग चुकी है। चूंकि दोनों ही मामलों में प्राथमिकी दर्ज की जा चुकी है इसलिए बहरहाल चार सप्ताह के लिए सुनवाई स्थगित कर दी। इसी दौरान अदालत के संज्ञान में आया कि 4 जून को दिल्ली आईआईटी में छात्र द्वारा की गई खुदकुशी पर अब तक एफआरआई भी नहीं दर्ज की गयी है। सबसे बड़ी अदालत ने शारदा यूनीवर्सिटी की चुप्पी पर भी सवाल उठाया। साथ ही खड़गपुर आईआईटी में बीते सात महीनों में हुई चार छात्रों की मौत के कारणों को पता लगाने को भी कहा। दोनों संस्थानों द्वारा उनके आचरण पर दिए जवाबों पर पीठ ने कहा हम यह अपने बच्चों और संतानों के लिए कर रहे हैं।
अदालत ने मई में देश भर में छात्रों की आत्महत्या के व्यापक मुद्दे और इस समस्या के समाधान के लिए जरूरी व्यवस्थागत बदलाव की जांच के लिए राष्ट्रीय कार्यबल का गठन भी किया है। जो सितम्बर में अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट दे सकती है। देश में छात्रों द्वारा की जा रही आत्महत्याएं चिंताजनक स्थिति पर पहुंच चुकी हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार प्रतवर्ष तेरह हजार से ज्यादा छात्र अपनी जान खुद लेते हैं, जिनमें परीक्षाओं में असफल होने वाले छात्रों की भी काफी संख्या में होती है। पढ़ाई का बेजा दबाव, समाजिक/ पारिवारिक स्थितियां बदलते मानदंड, बढ़ती प्रतिस्पर्धा और बच्चों से अपेक्षाएं छात्रों पर चौतरफा आघात करते हैं। असफलता व हताशा से जूझने की उन्हें कोई किरण नजर नहीं आती। शिक्षकों का सारा दबाव परीक्षा में अव्वल आने का होता है। उन्हें प्रशिक्षित करने की जिम्मेदारी शिक्षण संस्थानों को निभानी होगी। छात्रों की मानसिक दशा को लेकर न तो परिवार गंभीर होते हैं, न ही शिक्षण संस्थान । विशेषज्ञ कहते हैं, खुदकुशी का विचार बार-बार आता है। ऐसे हताश, तनावग्रस्त व अवसाद वालों को मनोवैज्ञानिक मदद के सहारे काफी हद तक उबारा जा सकता है। हैरत है, परीक्षा के दबाव पर ‘मन की बात’ करने वाले प्रधानमंत्री ने भी इस समस्या को कभी तवज्जो नहीं दी। अदालत द्वारा इस मुद्दे पर स्वतः संज्ञान लिया जाना सर्वोच्च संवेदनशीलता का द्योतक है। सरकारों और शिक्षण संस्थाओं को सख्त हिदायतें दी जाएं और ऐसे दंड का प्रावधान हो, जिससे ये छात्रों के जीवन से खिलवाड़ करना बंद करने को मजबूर हों।
Date: 30-07-25
टीकाकरण के मोर्चे पर एक मिसाल बन गया भारत
राजीव दासगुप्ता , ( प्रोफेसर कम्यूनिटी हेल्थ जेएनयू )

बाल मृत्यु दर के बारे में अनुमान लगाने वाली संयुक्त राष्ट्र अंतर- एजेंसी समूह ने अपनी नई रिपोर्ट में भारत को बाल स्वास्थ्य के क्षेत्र में वैश्विक उदाहरण के रूप में पेश किया है। उसके मुताबिक, यहां कुल जनसंख्या में ‘जीरो डोज’ बच्चों का अनुपात 2023 के 0.11 प्रतिशत के मुकाबले 2024 में घटकर 0.06 प्रतिशत रह गया है। यानी 2023 के 16 लाख के मुकाबले देश में उन बच्चों की संख्या घटकर 2024 में नौ लाख रह गई, जिनको जीवन रक्षक टीकों की एक भी खुराक नहीं लग सकी है। फिलवक्त दुनिया में ऐसे बच्चों की संख्या 1.43 करोड़ है। जाहिर है, भारत में कोविड के बाद टीकाकरण में भारी सुधार हुआ है, लेकिन इसकी कुछ जटिलताएं भी हैं, जिन पर ध्यान देना होगा।
‘जीरो डोज’ बच्चे उनको कहा जाता है, जिनको अपने जीवन के पहले वर्ष में डिप्थीरिया, टेटनस और पटुसिस का संयुक्त टीका डीटीपी की पहली खुराक नहीं लगी है। वंचित तबकों में आमतौर पर ऐसे बच्चे ज्यादा पाए जाते हैं। इनको अक्सर कई तरह की मुश्किलों और अभावों का सामना करना पड़ता है, जिनमें सामाजिक सेवाओं का न पहुंच पाना, सामाजिक-आर्थिक विषमताएं व लैंगिक बाधाएं शामिल हैं। सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (यूआईपी) का मकसद ऐसे ही तमाम तबकों तक टीकाकरण की सुविधा पहुंचाना है। इसके द्वारा देश भर में हर साल 1.3 करोड़ टीकाकरण सत्रों के माध्यम से 2.9 करोड़ गर्भवती महिलाओं और 2.6 करोड़ शिशुओं को मुफ्त में टीका लगाया जा रहा है।
इस अभियान की सबसे बड़ी चुनौती देश में सालाना लगभग 10 प्रतिशत आबादी का राज्य के अंदर या दूसरे राज्यों में पलायन करना है, जिनमें काफी संख्या में परिवार और छोटे बच्चे भी शामिल होते हैं। कोरोना महामारी के दौरान तमाम नियमित स्वास्थ्य कार्यक्रम प्रभावित हुए थे। यूआईपी भी अपवाद नहीं था। हालांकि, महामारी की शुरुआत में ही 15 अप्रैल, 2020 को टीकाकरण को ‘स्वास्थ्य सेवाओं का आवश्यक कार्य’ घोषित किया गया था। इसके बाद, फरवरी-मार्च 2021 के दौरान ‘इंटेसिव मिशन इंद्रधनुष 3.0’ और एक साल बाद ‘ इंटेसिव मिशन इंद्रधनुष 4.0’ सहित कई पूरक कार्यक्रम शुरू किए गए। फिर भी, 2019 से 2021 के बीच टीकाकरण से वंचित या टीकों की पहली खुराक से दूर बच्चों की संख्या दोगुनी हो गई। इसके बावजूद अगर भारत ने यह नई उपलब्धि हासिल की है, तो यह बताता है कि कोरोना की विनाशकारी डेल्टा लहर के दौरान भी भारत ने स्थिति को संभाले रखा।
9 अगस्त, 2024 को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने 11 राज्यों के 143 जिलों के लिए ‘जीरो डोज कार्यान्वयन योजना’ की घोषणा की थी। इसी बीच, प्रधानमंत्री द्वारा 29 अक्तूबर, 2024 को यू-विन प्लेटफॉर्म लॉन्च किया गया। टीकाकरण में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने के लिए डिजाइन किया गया यह डिजिटल प्लेटफॉर्म पांच प्रमुख काम करता है। ये हैं स्वयंया आशा कार्यकर्ताओं द्वारा गर्भवती स्त्रियों और बच्चों का पंजीकरण व टीकाकरण सेवाओं की ट्रैकिंग कभी भी, कहीं भी पहुंच; नाम- आधारित रिकॉर्डिंग, ताकि जीरो डोज बच्चों की पहचान हो सके; लक्षित योजना और कुशल कार्यान्वयन में स्वास्थ्य कर्मियों की सहायता; और, स्थायी डिजिटल टीकाकरण का दस्तावेज तैयार करना ।
बहरहाल, भारत में 2036 तक कुल जनसंख्या- वृद्धि में शहरी आबादी की हिस्सेदारी 73 प्रतिशत तक रहने की उम्मीद है। इसी कारण बीते कुछ वर्षों से शहरी और कस्बाई स्तर पर यूआईपी को मजबूत करने पर लगातार ध्यान दिया जा रहा है। सतत विकास लक्ष्य 3.2 द्वारा भी नवजात शिशुओं और पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मौतों को रोकने और खसरा, निमोनिया और दस्त से होने वाली मृत्यु दर को कम करने पर जोर दिया जा रहा है। भारत में कोविड-19 टीकाकरण की सफलता ने वैश्विक और घरेलू स्तर पर भारत के टीकाकरण कार्यक्रम में और अधिक विश्वास जगाया है। लिहाजा, यूआईपी पर दुनिया भर की नजर है। इसकी सफलता न सिर्फ नौनिहालों की जान बचाने की लिए अहम साबित होगी, बल्कि विभिन्न टीकाकरण अभियानों से मिले फायदे को बनाए रखने में भी जरूरी साबित होगी।